हमारी आजादी को किससे खतरा?

punjabkesari.in Thursday, Aug 15, 2024 - 06:29 AM (IST)

देश आज अपना 78वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। सभी पाठकों को इस अवसर पर ढेरों बधाई। यह अवसर जश्न मनाने के साथ-साथ आत्मङ्क्षचतन करने का भी है। वर्ष 1947 में जब हम आज के दिन ब्रितानी दास्तां से मुक्त हुए, तब इसके कुछ घंटे पहले हमारा मुल्क इस्लाम के नाम पर खंडित हो चुका था। पाकिस्तान के पैरोकार मोहम्मद बिन कासिम, गौरी, गजनवी, बाबर, औरंगजेब, अब्दाली, टीपू सुल्तान आदि आक्रांताओं में अपना नायक खोजते हैं, जिन्होंने इस भूखंड की सनातन संस्कृति और उससे प्रेरित सिख गुरु परंपरा को कुचलने का प्रयास किया था। जो एक चौथाई हिस्सा तब हमसे अलग हुआ था, वह 1971 में फिर 2 और हिस्सों में बंट गया। 

वही विक्षेपित भारतीय भूखंड  पाकिस्तान और बंगलादेश नाम से जाने जाते हैं, जिस पर इस्लाम का कब्जा है। वहां सनातन भारत की कालजयी बहुलतावादी, लोकतांत्रिक और पंथनिरपेक्षी जीवन मूल्यों का दम घुट चुका है। इसका प्रमाण बंगलादेश के हालिया घटनाक्रम में दिख जाता है, जो अपने भीतर खंडित भारत के लिए गहरा भाव समेटे हुए है। जैसे ही 5 अगस्त को बंगलादेश के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर शेख हसीना अपना देश छोडऩे और भारत में शरण लेने को मजबूर हुईं, वैसे ही इस इस्लामी देश में महीनों से ‘सत्ता-विरोधी’ और ‘छात्र क्रांति’ के नाम पर चल रहा आंदोलन, अपने असली चरित्र अर्थात घोर इस्लामी प्रदत्त अल्पसंख्यक ङ्क्षहदू-बौद्ध, ईसाई और उदारवादी मुसलमान विरोधी जेहाद में परिवर्तित हो गया। बंगलादेश मीडिया के अनुसार, देश के 64 में से 52 जिलों में हिंदुओं को लक्षित करते हुए 205 से अधिक हमले हो चुके हैं। 

हिंदुओं को चिन्हित करके उनके घर-दुकानों के साथ-साथ मंदिरों को फूंका जा रहा है, उनकी बहू-बेटियों की अस्मत से खिलवाड़ किया जा रहा है और उनकी संपत्ति तक लूटी जा रही है। भारत-बंगलादेश सीमा पर प्रवेश के लिए पीड़ित हिंदुओं का तांता लगा हुआ है। इससे संबंधित कई वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल भी हैं। एक बंगाली मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लाम पूरे बंगलादेश के अलावा भारत से सटे क्षेत्रों के साथ नेपाल, म्यांमार के कुछ एक इलाकों को मिलाकर ‘गजवा-ए-ङ्क्षहद’ अवधारणा के तहत उस पर इस्लामी परचम लहराना चाहते हैं। क्या शेख हसीना को उनकी तथाकथित ‘तानाशाही’ और ‘अलोकतांत्रिक’ होने के कारण हटना पड़ा? इस प्रश्न का उत्तर खोजने से पहले बंगलादेश की आर्थिकी का हाल जान लेते हैं। शेख हसीना के पिछले 15 साल से अधिक के शासन में बंगलादेश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह बदल गई है। यहां तक कि कुछ मामलों में उसने भारत को भी पीछे छोड़ दिया है।

बंगलादेश ने विश्व स्तरीय रैडीमेड गार्मैंट्स (आर.एम.जी.) उद्योग खड़ा किया है, जो भारत से अधिक निर्यात कर रहा है। बंगलादेश की प्रति व्यक्ति जी.डी.पी. आय 2600 डालर है, जोकि लगभग भारत के बराबर है। कई सामाजिक संकेतकों में बंगलादेश की स्थिति अच्छी है। फिर भी बंगलादेश में शेख हसीना के प्रति गहरी घृणा का कारण क्या है, जिसके चलते उन्हें अपनी जान बचाने हेतु देश छोड़कर भागना पड़ा? सुधि पाठकों को याद होगा कि शेख हसीना के पिता और बंगलादेश के जनक ‘बंगबंधु’ शेख मुजीबुर रहमान की 15 अगस्त, 1975 को उनके परिवार के कई सदस्यों के साथ उनके घर में मौत के घाट उतार दिया गया था। जिन कारणों से उनकी हत्या की गई थी, उन्हीं कारणों ने शेख हसीना को बंगलादेश से भागने पर विवश किया है। 

अपने पिता की भांति हसीना भारत के साथ अच्छे संबंध रखने की पक्षधर रही हैं, जिसे जेहादी सहित इस्लामी कट्टरपंथी ‘काफिर’ मानते हैं। वर्ष 1971 के ‘बंगलादेश मुक्ति युद्ध’ के दौरान पाकिस्तानी सेना और जेहादी रजाकारों ने स्थानीय हिंदू-बौद्ध समुदाय का नरसंहार करते हुए उनकी लाखों महिलाओं के साथ बलात्कार किया था। वैसा मजहबी नरसंहार बंगलादेश में दोबारा न दोहराया जाए, उसके लिए शेख मुजीबुर रहमान ने हिंदू-बौद्ध अनुयायियों को ‘काफिर’ मानने से इंकार कर दिया। पिता की तरह शेख हसीना भी अपने कार्यकाल में ऐसा ही करने की कोशिश कर रही थीं, जो जेहादियों को मुजीबुर के समय भी नागवार गुजरा था और उन्हें ऐसा आज भी मंजूर नहीं है। सच तो यह है कि अविभाजित भारत में जिन शक्तियों ब्रितानियों, वामपंथियों और जेहादियों के गैर-मुकद्दस गठजोड़ ने पाकिस्तान का खाका खींचा, उसने ही शेख मुजीबुर रहमान को रास्ते से हमेशा के लिए हटा दिया और उनकी बेटी शेख हसीना को देश निकाला दे दिया। इसमें फर्क केवल इतना है कि औपनिवेशी के रूप में ब्रितानियों का स्थान अमरीका ने ले लिया है। 

स्वतंत्रता के बाद भारत का एक राजनीतिक वर्ग दशकों से ‘सैकुलरवाद’ के नाम पर उसी इस्लामी कट्टरता को प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से बढ़ावा दे रहा है, जो पहले भी देश का इस्लाम के नाम पर विभाजन कर चुका है। यह राजनीतिक कुनबा वोट बैंक की राजनीति हेतु गाजा-फिलिस्तीन के मुस्लिमों के प्रति सहानुभूति तो रखता है, परंतु बंगलादेशी हिंदुओं के दमन को अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बताकर चुप रहता है। ऐसे दोहरे मापदंड रखने वालों को पहचानने की आवश्यकता है, जिनसे भारत की स्वतंत्रता, संप्रभुता, सुरक्षा और उसके सांस्कृतिक अस्तित्व को सर्वाधिक खतरा है।-बलबीर पुंज 
     


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