मालदा में भड़की हिंसा के पीछे ‘असली किस्सा’ क्या है

punjabkesari.in Thursday, Feb 11, 2016 - 12:54 AM (IST)

पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुल जिले के मालदा शहर से दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित कालियाचक्क में गत 3 जून को बड़े स्तर पर  हिंसा भड़क उठी। कई हजार मुस्लिम कथित रूप में हिन्दू महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष कमलेश तिवारी द्वारा उत्तर प्रदेश में हजरत मोहम्मद साहिब के विरुद्ध की गई एतराजयोग्य टिप्पणी के विरुद्ध रोष व्यक्त करने के लिए एकत्रित हुए थे। 

बिल्कुल अज्ञात से संगठन-‘अंजुमन अहले सुन्नातुल्ल जमात’ द्वारा   पैगम्बर साहिब के बारे में तिवारी की टिप्पणी के विरुद्ध रोष व्यक्त करने के लिए रैली का आह्वान किया था। गुस्से में आई भीड़ ने कालियाचक्क के थाने पर हल्ला बोल दिया और वहां तोड़-फोड़ की, पुलिसिया और निजी वाहनों को आग लगा दी तथा कुछ आग्नेयास्त्र लूट लिए। इलाके के कुछ घर और दुकानें भी जला दी गईं। आखिर भीड़ इतनी क्यों भड़की हुई थी कि बहुत दूर यू.पी. में किसी द्वारा पैगम्बर के बारे में कुछ कहे जाने का बहाना बनाकर थाने पर ही हल्ला बोल दिया? इसके पीछे भी एक किस्सा है और यह किस्सा ही हमें उस दिन की घटनाओं की पृष्ठभूमि में झांकने का अवसर उपलब्ध करवाएगा। 
 
पृष्ठभूमि में जाने से पहले एक तथ्य का उल्लेख जरूरी है। पश्चिम बंगाल की मीडिया के साथ-साथ इलैक्ट्रानिक मीडिया ने भी कालियाचक्क की घटनाओं की रिपोॄटग करने में बेहद सावधानी और संयम बरता था। लेकिन दिल्ली से परिचालन करने वाले कथित राष्ट्रीय टी.वी. चैनल अभी भी कालियाचक्क मुद्दे को जिन्दा रखे हुए हैं तथा बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस एवं इसकी नेता व मुख्यमंत्री  ममता बनर्जी के विरुद्ध सतत् राजनीतिक प्रापेगंडा जारी रखे हुए हैं। 
 
इस प्रापेगंडे का आधारबिन्दु यह है कि अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित साम्प्रदायिक तत्वों को न केवल पोषित किया जा रहा है, बल्कि उन्हें संरक्षण भी दिया जा रहा है और इसी कारण पुलिस उनके विरुद्ध कोई कदम उठाने से डरती है। ऐसे प्रापेगंडे का उद्देश्य स्पष्ट है : आगामी विधानसभा चुनाव दौरान पश्चिम  बंगालके मतदाताओं का साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण करना। 
 
अब प्रस्तुत हैं कुछ अकाट्य सच्चाइयां: मालदा जिला बंगलादेश से सटा हुआ है। यहां पर 4 तरह के अपराध फल-फूल रहे हैं : पहला, पशुओं की तस्करी; दूसरा, पाकिस्तान में छपी हुई जाली करंसी की धंधेबाजी और बंगलादेश से भारत में इसकी स्मगङ्क्षलग; तीसरा, पोस्त की अवैध खेती, जिससे अफीम तैयार की जाती है और चौथा महिलाओं की तस्करी। (बंगलादेशी महिलाओं को बहला-फुसला कर भारत लाया जाता है।
 
 इनमें से कुछ तो थोड़े समय के लिए ‘पेशा करने के बाद’ वापस लौट जाती हैं। लेकिन शेष महिलाएं स्थानीय समर्थन के बूते यहीं टिकी रहती हैं।) हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही इन चारों तरह के अपराधों में संलिप्त हैं। मालदा चूंकि मुस्लिम बहुल जिला है, इसलिए हिन्दुओं की तुलना में अवैध कारोबारों में संलिप्त मुस्लिमों की संख्या अधिक है। 
 
गत कुछ समय से मालदा में पुलिस अपराधियों के विरुद्ध सक्रिय हुई है। कालियाचक्क घटना से केवल एक ही दिन पूर्व स्थानीय पुलिस ने अपराधियों के ऐसे गिरोह को पकड़ा था, जो हर तरह के अपराधों में संलिप्त था। इसलिए पुलिस के विरुद्ध गुस्सा जमा होने का कारण साम्प्रदायिक नहीं बल्कि इतना था कि पुलिस अपराधियों के लिए खुलकर काम करने और ढेर सारा पैसा कमाने के रास्ते में रोड़ा बन रही थी। 
 
लोगों को भड़काने के लिए हिन्दू महासभा के नेता की टिप्पणियां ऐसी स्थिति में इन अपराधियों के लिए बहुत कारगर सिद्ध हुईं। स्वाभाविक रूप में पुलिस ही मुख्य लक्ष्य थी, हालांकि अन्य लोग भी बच नहीं पाए। स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए अन्य क्षेत्रों से पुलिस की टुकडिय़ां कालियाचक्क के लिए फटाफट रवाना की गईं। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर कर दिया, लेकिन स्थिति के बिगडऩे के डर से कोई गिरफ्तारी न की। लेकिन पुलिस के आने तक स्थिति पहले ही साम्प्रदायिक रूप ग्रहण कर चुकी थी। 
 
स्थानीय लोगों का मानना है कि किसी को भी गिरफ्तार न करने का पुलिस का निर्णय राज्य सरकार के आदेशों के दबाव में लिया गया था। यह बिल्कुल ताॢकक महसूस होता है। आखिर इसी वर्ष चुनाव भी होने जा रहे हैं। ऐसे में सत्तारूढ़ पार्टी भी अल्पसंख्यकों को अपने विरुद्ध नहीं करना चाहती। फिर भी तृणमूल कांग्रेस के साथ इन्साफ करते हुए यह तो कहना पड़ेगा कि ङ्क्षहसा के बाद कालियाचक्क पुलिस थाने से बड़ी संख्या में पुलिस कर्मियों का तबादला किया गया था। 
 
पुलिस को ये हिदायतें दी गई थीं कि ऐसी किसी भी बात की अनुमति न दें, जिससे तनाव बढऩे की संभावना हो। इसी आदेश के अनुरूप पुलिस ने 7 जनवरी को भाजपा विधायक शमिक भट्टाचार्य के नेतृत्व में आए 10 सदस्यीय भाजपा डैलीगेशन को कालिया चक्क में प्रवेश करने से रोक दिया था। 
 
साम्प्रदायिक विभाजन ने राजनीतिक पाॢटयों को गतिशील कर दिया। मालदा में भाजपा का परम्परागत रूप में आधार रहा है। यहां आर.एस.एस. की भी मजबूत उपस्थिति है और यह जिला भर में काफी सक्रिय है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मालदा में 19 प्रतिशत मत हासिल हुए थे, जबकि शेष पश्चिम बंगाल में इसका मत प्रतिशत 17 था। कांग्रेस का भी इस जिले में काफी मजबूत आधार है। मालदा, मुॢशदाबाद और उत्तर दीनाजपुर अब केवल 3 ही ऐसे जिले हैं, जहां कांग्रेस का कोई वजूद बाकी है। 
 
अतीत में मालदा जिले में पाॢटयों को राजनीतिक समर्थन के मामले में मुस्लिम बंटे हुए थे। कुछ कांग्रेस के पक्ष में जाते थे जबकि अन्य माकपा  और आर.एस.पी. के। लेकिन गत एक वर्ष से (और आगामी चुनाव के मद्देनजर मुस्लिम धीरे-धीरे अन्य पाॢटयों की ओर से हटकर तृणमूल कांग्रेस की ओर मुड़ रहे हैं। हिन्दू भी ऐसा कर रहे हैं।)
 
परन्तु मालदा में तृणमूल कांग्रेस बुरी तरह बंटी हुई है और दोनों खेमे एक-दूसरे के विरुद्ध लगातार लड़ते-झगड़ते रहते हैं। एक का नेतृत्व सावित्री मित्रा करती है, जबकि दूसरे का नेतृत्व कृष्णेन्दु चौधरी के हाथों में है। दोनों ही ममता सरकार में मंत्री हैं। पार्टी में नए शामिल होने वाले सदस्य भी दोनों में से किसी एक गुट की ओर ही जा रहे हैं। 
 
दोनों ही समुदायों के समाज विरोधी तत्वों ने सत्तारूढ़ पार्टी का आश्रय लिया हुआ है, लेकिन पार्टी का उन पर कोई नियंत्रण नहीं है। अपने शासन के यौवन काल में माकपा ने भी अपराधी तत्वों का अपने हित में इस्तेमाल किया था, लेकिन इसने उन पर कड़ा नियंत्रण बनाए रखा था। गत 6 माह से इस जिले में अपराध लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
 
भाजपा और कांग्रेस दोनों ही तृणमूल कांग्रेस की कट्टर दुश्मन हैं। कांग्रेस का रवैया यह है कि तृणमूल कांग्रेस को हर हालत में हराया जाना चाहिए, चाहे ऐसा करते हुए भाजपा के उम्मीदवार ही क्यों न जीत जाएं।  भाजपा की नीति है कि मतदाताओं का साम्प्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण किया जाए। इसका मानना है कि यदि इसकी यह चुनावी रणनीति सफल रही तो पार्टी जिले की 11 विधानसभा सीटों में से कम से कम 3 तो अवश्य हथिया लेगी। यह इसके लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी। भाजपा के इस लाभ का कांग्रेस कोई बुरा नहीं मनाएगी क्योंकि  तृणमूल कांग्रेस का विरोध इसकी बीमारी बन चुका है। 
(मंदिरा पब्लिकेशन्स)

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