नई पीढ़ी को सावन के झूलों से क्या लेना

punjabkesari.in Tuesday, Jul 23, 2024 - 06:29 AM (IST)

पड़ गए झूले सावन ऋतु आई रे। सावन के दिनों में ऐसे न जाने कितने गीत कानों में गूंजते रहते हैं। गांवों में तमाम बड़े पेड़ विशेष रूप से नीम पर खूब झूले डाले जाते थे। आम के पेड़ों को झूलों के लिए नहीं चुना जाता था। कहा जाता था कि इसकी लकड़ी इतनी मजबूत नहीं होती कि इन पर झूले डल सकें। नारियल की रस्सी से बनाए झूले पर पटली लगाई जाती थी। कई बार दो रस्सियों के अलग-अलग झूले डालकर, उन पर वान से बने छोटे खटोले लगा दिए जाते थे। इन पर बैठकर छोटे बच्चे भी खूब झूल सकते थे। विशेषकर लड़कियां। उत्तर भारत, विशेष तौर पर ब्रज प्रदेश में सावन के दिनों में लड़कियां अपने मायके आती थीं। वे खूब झूला झूलती थीं। साथ में सावन के गीत भी खूब गाती थीं। हथेलियों पर मेहंदी, पैरों में महावर या आलता, तरह-तरह के शृंगार व हाथों में हरी-लाल चूडिय़ां।


बदले वक्त ने महिलाओं के शृंगार में बहुत परिवर्तन कर दिया है, मगर वक्त चाहे जितना बदल जाए सावन की महिमा से इंकार नहीं किया जा सकता। सावन में ही तीज आती है। तीज अविवाहित लड़कियों का त्यौहार है। इस दिन पीली मिट्टी से गौरी बनाकर उन्हें भी झूले की पटली पर बिठाया जाता था। उनकी पूजा पूरी-पकवान, मिठाइयों से की जाती थी। यह ब्रज प्रदेश का इकलौता त्यौहार है जो अविवाहित लड़कियों से जुड़ा है। तीज के दिन लड़कियां खूब इठलाती फिरती थीं। अक्सर उनके लिए नए कपड़े भी बनते थे। आज भी ऐसा होता है। मगर शहरों में इन दिनों काम करने वाले स्त्री-पुरुष चौबीस घंटे की नौकरी में इतने व्यस्त हैं कि बहुत-सी चीजें दिखाई नहीं देतीं। झूले भी कहीं नजर नहीं आते। हां, होटलों आदि में कई बार सावन महोत्सव मनाए जाने के विज्ञापन जरूर दिखाई देते हैं। एक समय में फिल्मों में सावन को बहुत सैलीब्रेट किया जाता था। इससे जुड़े मधुर गीत बनाए जाते थे। वे लोगों की जुबान पर चढ़ जाते थे। आज शायद ही किसी हिंदी फिल्म में सावन का उल्लास दिखता हो। 

न जाने क्यों मान लिया गया है कि नई पीढ़ी को इस उल्लास से क्या मतलब। एक तरफ स्त्री विमर्श का जोर है, तो दूसरी तरफ जिस माह ने स्त्रियों को इतना महत्व दिया, पता नहीं क्यों फिल्मकारों और समाज के एक वर्ग ने उसे भुला दिया या उसका महत्व कम कर दिया।सावन में ही रक्षाबंधन का त्यौहार आता है। इसे फिल्मों और धारावाहिकों ने अब लगभग अखिल भारतीय त्यौहार बना दिया है। अब कामकाजी लड़कियों को इतनी फुर्सत भी नहीं कि वे सावन के दिनों में पूरे महीने अपने मायके में रह सकें। इसलिए रक्षा बंधन से पहले ही आपने देखा होगा कि बसों, रेल गाडिय़ों में भीड़ बढ़ जाती है। या तो बहनें अपने भाइयों को राखी बांधने जा रही होती हैं या भाई अपनी बहनों से राखी बंधवाने के लिए उनके पास जाते हैं। रक्षाबंधन के दिन तो दिल्ली जैसे महानगर में सड़कों पर इतनी भीड़ होती है कि कई- कई घंटे ट्रैफिक में फंसना मामूली-सी बात है। अन्य शहरों का भी यही हाल होता होगा। 

मोटरसाइकिल तेज गति से भागते नजर आते हैं। जिन पर सजी- संवरी महिलाएं बैठी रहती हैं। रक्षा बंधन के दिन किसी कंडे या उपले पर गेहूं बोए  जाते हैं। इन दिनों मिट्टी के कटोरों में गेहूं के पौधे दिखते हैं। इन्हें राखी बांधने के बाद भाइयों को दिया जाता है। कई जगह उनके कान के पीछे लगाया जाता है। मतलब यही है कि स्त्रियों का मायका,  उनके भाई-बांधव फूलें-फूलें, उन्हें ढेरों शुभकामनाएं। इस प्रकार से ये नवान्न के स्वागत का भी त्यौहार है। और खेती, क्यारी में हमारे देश की स्त्रियों की बड़ी भूमिका भी है। वे घर में तो मेहनत करती ही हैं, खेती, क्यारी में भी हाथ बंटाने से पीछे नहीं रहतीं। पहाड़ी क्षेत्रों और हरियाणा, पंजाब में ऐसी औरतें बड़ी संख्या में देखी जाती रही हैं। देखा जाए तो सावन लड़कियों और स्त्रियों द्वारा सैलीब्रेट करने का महीना है। और यह आज से नहीं है। परम्परा और लोक से चलता चला आया है। कहते हैं कि सावन में झूला झूलने की परंपरा इसलिए शुरू हुई कि कभी शिव जी ने पार्वती जी को झूला झुलाया था। इसीलिए गौरी पूजन के वक्त बुजुर्ग स्त्रियां अपनी बेटियों से अक्सर कहती पाई जाती हैं कि उन्हें भी शिव जी जैसा भोला-भंडारी पति मिले। इसे राधा-कृष्ण से भी जोड़ा जाता है। पति कृष्ण की तरह प्रेम करने वाला भी हो।

दरअसल ये लड़कियों के अच्छे भविष्य की कामना है क्योंकि अगर पति अच्छा, तो किसी भी स्त्री का जीवन सुधर जाता है। हमारे यहां स्त्रियों की सबसे बड़ी कामना या कहें कि इच्छा यही रही है कि उनका पति अच्छा हो तो जीवन ठीक से चले। पहले बहुत से लोग सावन को विरह का महीना भी कहते थे क्योंकि महिलाएं इस माह में अपने पति से दूर रहती थीं। जो भी हो सावन स्त्रियों के महत्व को रेखांकित करता है। और करे भी क्यों न, आखिर स्त्रियों के बिना यह दुनिया चल भी नहीं सकती। वे जीवन में अनेक भूमिकाओं में होती हैं। इसलिए साल में अगर एक महीना उनके महत्व को बताने के लिए हो तो क्या बड़ी बात है। सावन का अर्थ ही है हरियाली, बारिश की रिमझिम, पकौड़े, भुट्टे, चाट, सेवइयां, खीर आदि। गीत-संगीत। तो चलिए मनाएं सावन । अपने घर और आसपास की स्त्रियों-बच्चियों  के महत्व को पहचानें।-क्षमा शर्मा
 


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