रूस के इरादे आखिर क्या हैं

punjabkesari.in Sunday, Jan 16, 2022 - 07:15 AM (IST)

नए साल के उदय के साथ ही 2 घटनाक्रमों ने हमारा ध्यान एक बार फिर रूस की ओर आकर्षित किया है। पहला है यूक्रेन के साथ लगती इसकी सीमा पर भारी संख्या में सैन्य जमावड़ा। यूक्रेन किसी समय पूर्ववर्ती सोवियत संघ का हिस्सा था। दूसरा है कजाखस्तान में घरेलू अशांति में स्थिरता लाने के लिए रूस की दखलअंदाजी। इससे स्वाभाविक तौर पर प्रश्न उठता है कि क्या रूस अफगानिस्तान से अमरीका की वापसी के बाद खुद को फिर से स्थापित कर रहा है और इसके क्या परिणाम होंगे? 

उपलब्ध जानकारी के अनुसार वर्तमान में रूसी सेनाएं यूक्रेन को तीन ओर से घेर रही हैं। द न्यूयार्क टाइ स में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि सैनिक, भारी बख्तरबंद गाडिय़ां तथा मध्यम से लंबी दूरी की आर्टीलरी को इस तरह से तैनात किया गया है कि युद्ध की स्थिति में तुरन्त यूक्रेन पर धावा बोल दिया जाए। यूक्रेन की पूर्वी तथा उत्तरी सीमाएं इसकी राजधानी कीव  के काफी करीब हैं तथा रूसी सेना व्यूह रचना बनाकर खड़ी है। 1990 के दशक के शुरू से ही रूस यूक्रेन तथा जार्जिया के नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन (नाटो) के सदस्य बनने को लेकर पागल है। 

रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि रूस ने 2014 में ही यूक्रेन में घुसपैठ के लिए अपने सशस्त्र बलों को तैनात करना शुरू कर दिया था जब इसने क्रीमिया पर कब्जा किया था। हालांकि इस बात को लेकर स्पष्टता नहीं है कि क्यों क्रेमलिन ने यूक्रेन में झगड़े का यह जोखिमपूर्ण मार्ग चुना है जिसके परिणाम केवल पूर्वी यूरोप तक ही सीमित नहीं रहेंगे। यदि अमरीका तथा रूस में जिनेवा में जारी वार्ता का कोई परिणाम नहीं निकला तो नाटो भी इस झगड़े में कूद सकता है। इसकी आर्थिक बाध्यताएं भी होंगी क्योंकि यूरोप पहले से ही प्राकृतिक गैस के बहुत ऊंचे दामों का सामना कर रहा है क्योंकि गैजप्रोम ने यूरोप के लिए गैस की आपूर्ति को रोक दिया है। यूरोप के दुखों में और भी वृद्धि अमरीका द्वारा एक नई गैस पाइपलाइन नॉर्ड स्ट्रीम-2 को सर्टीफिकेट न देने तथा प्रतिबंध लागू करने से हो गई है।

पूर्व की ओर पूर्ववर्ती सोवियत संघ के एशियाई क्षेत्र की ओर बढ़ें तो स्रोतों से भरपूर कजाखस्तान संघर्ष का एक और बिंदू बन गया है। सोवियत  संघ का यह पूर्व गणराज्य रूस तथा चीन के बीच स्थित है। यह चारों ओर से जमीन से घिरा सबसे बड़ा ‘वैस्टफेलियन’ राज्य है जिसकी जनसंख्या मात्र 1.90 करोड़ है। 

2 जनवरी 2022 को हजारों की सं या में कजाख सड़कों पर उतर आए। इसका सदृश्य कारण सरकार द्वारा एल.पी.जी. की कीमतों पर लगाई गई ऊपरी सीमा को हटाना था। हालांकि इसका प्रमुख कारण यहां पर व्याप्त सामाजिक तथा आर्थिक असमानताएं हैं जिस कारण एक पार्टी के शासन वाले अत्यंत तानाशाहीपूर्ण राज्य के खिलाफ गहरा गुस्सा व्याप्त है। सरकारी इमारतों को आग लगा दी गई तथा गुस्साई भीड़ों ने हवाई अड्डे तथा अन्य सार्वजनिक इमारतों पर कब्जा कर लिया जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट टोकायेव को मदद के लिए मास्को का रुख करना पड़ा। कजाखस्तान में बन रही स्थिति ने मास्को के लिए एक अन्य खतरा पैदा कर दिया है। 8 वर्षों से भी कम समय में अधिनायकवादी क्रेमलिन समॢथत कुलीन तंत्र के खिलाफ यह तीसरा विद्रोह है। 2014 में यूक्रेन में जबरदस्त लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन हुए जिसके बाद 2020 में बेलारूस में। 

दिलचस्प बात यह है कि कजाखस्तान का अमरीका तथा चीन दोनों के लिए भी महत्व है, हालांकि कारण अलग हैं। एक्सन मोबिल तथा चेवरन जैसी प्रमुख अमरीकी तेल क पनियों ने कजाखस्तान के पश्चिमी क्षेत्र में खरबों डालर का निवेश किया है जो वर्तमान प्रदर्शनों का केंद्र है। चीन की भी इसमें चिंताएं सांझी हैं क्योंकि पड़ोसी कजाखस्तान के साथ यह 1782 कि.मी. ल बी सीमा सांझी करता है और यदि वहां कोई गंभीर विद्रोह होता है तो चीन में भी प्रदर्शन हो सकते हैं। 

कजाखस्तान में रूस की दखलअंदाजी विश्व के लिए कई मायनों में असामान्य है। यह कोलैक्टिव सिक्योरिटी ट्रीटी आर्गेनाइजेशन के अधीन है जो रूस तथा इसके सोवियत जगत के बाद के सबसे मजबूत सुरक्षा संघ पर आधारित एक सैन्य सहयोग है। इस समझौते में आर्मेनिया, बेलारूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान तथा ताजिकिस्तान शामिल हैं। तो क्या रूस अपने पूर्ववर्ती प्रभाव क्षेत्र में एक नया वैश्विक खेल शुरू कर रहा है, यह देखते हुए कि अमरीका अपने इतिहास के जैफरसन काल की ओर वापस लौट रहा है? केवल समय ही बताएगा कि क्या होने वाला है?-मनीष तिवारी


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