‘नारी शक्ति में निहित समाज का कल्याण’

punjabkesari.in Monday, Mar 08, 2021 - 03:04 AM (IST)

संस्कृत में श्लोक है :
यत्र पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:।
अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। 

नारी यानी दिव्य स्वरूप, प्रेम, करुणा, दया की प्रतिमूर्ति, दिव्य शक्ति व शुभ का सूचक... इत्यादि। मनुष्य के जीवन में नारी कई रूपों में मौजूद है। माता, बहन, बेटी, पत्नी मतलब सृष्टि की कल्पना नारी के बिना अधूरी है। शायद यही कारण है कि नारी सृजनात्मक शक्ति का प्रतीक होने के साथ ही सनातन संस्कृति एवं परंपराओं की संवाहक कही गई है। नारी, मानव की ही नहीं बल्कि मानवता की भी जन्मदात्री है, क्योंकि मानवता के आधार रूप में प्रतिष्ठित सम्पूर्ण गुणों की वही जननी है। 

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं की आॢथक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। 8 मार्च,1908 को जब 15000 महिलाओं ने न्यूयार्क शहर की सड़कों पर अपने अधिकार को लेकर प्रदर्शन किया, तबसे इस उत्सवरूपी दिवस का जन्म माना जाता है। बेहतर वेतन और मतदान का अधिकार उनकी मांग थी। पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस कार्यक्रम 1911 में आयोजित किया गया था। 

वैसे तो महिलाओंं को प्रेरित करने के लिए खास दिन की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए लेकिन, देश व दुनिया में जो परम्पराएं रही हैं उसमें महिलाओं को क्षमता रहित समझकर नारी की सुरक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता से वंचित होना पड़ता है जबकि इसमें कोई सच्चाई नहीं है। इतिहास गवाह है कि नारी ने हमेशा से परिवार संचालन का उत्तरदायित्व संभालते हुए समाज निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। राष्ट्र की प्रगति व सामाजिक स्वतंत्रता में शिक्षित महिलाओं की भूमिका उतनी ही अहम है जितनी कि पुरुषों की। लेकिन महिला दिवस पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों के माध्यम से समाज के विकास में महिलाओं की सच्ची महत्ता और अधिकार के बारे में जनजागरूकता लाने का प्रयास किया जाता है। इस तरह के कार्यक्रम महिलाओं के उत्थान की दिशा में तेजी से कार्य करने में बड़ी मदद करते हैं। 

भारत की सभ्यता व संस्कृति में हमेशा से नारी सम्मान को प्रमुखता दी गई। प्राचीन ग्रंथ स्पष्ट करते हैं कि प्राचीन भारत में महिलाओं को ज्यादा आजादी थी। उस समय महिलाओं को जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ बराबरी का दर्जा हासिल था। अरून्धती (महॢष वशिष्ठ की पत्नी), लोपामुद्रा (महर्षि अगस्त्य की पत्नी) अनुसूया (महर्षि अत्रि की पत्नी) आदि नारियां ईश्वरीय प्रतिभा की साक्षात स्वरूप थीं। पतंजलि और कात्यायन जैसे प्राचीन भारतीय व्याकरणविदों का कहना है कि प्रारम्भिक वैदिक काल में महिलाओं को शिक्षा दी जाती थी। 

ऋग्वैदिक ऋचाएं यह बताती हैं कि महिलाओं की शादी एक परिपक्व उम्र में होती थी और संभवत: उन्हें अपना पति चुनने की भी आजादी थी। ऋग्वेद और उपनिषद जैसे ग्रंथ कई महिला साध्वियों और संतों के बारे में बताते हैं जिनमें गार्गी और मैत्रेयी के नाम उल्लेखनीय हैं। पवित्र धार्मिक ग्रंथ रामायण में माता सीता और महाभारत में महारानी द्रौपदी नारी शक्ति की प्रतीक हैं। प्राचीन परंपराओं में दुर्गा के सामने सभी देवताओं को शीश नवाए देखा जा सकता है। 

अध्ययनों के अनुसार मध्यकाल में महिलाओं की स्थिति में गिरावट आनी शुरू हो गई और मुगलों व बाद में गुलामी के दौर में महिलाओं की आजादी और अधिकारों को सीमित कर दिया। माना जाता है कि बाल विवाह की प्रथा छठी शताब्दी के आसपास शुरू हुई थी। भारत पर विदेशी आक्रांताओं के बाद तो हालात बद से बदतर हो गए। इसी समय पर्दा-प्रथा, बाल-विवाह, सती-प्रथा, जौहर और देवदासी जैसी घृणित धार्मिक रूढिय़ां प्रचलन में आईं।

अंग्रेजी शासन ने अपनी तरफ से महिलाओं की स्थिति को सुधारने के कोई विशेष प्रयास नहीं किए, लेकिन 19वीं शताब्दी के मध्य में उपजे अनेक धार्मिक सुधारवादी आंदोलनों जैसे ब्रह्म समाज (राजा राम मोहन राय), आर्य समाज (स्वामी दयानंद सरस्वती), थियोसोफिकल सोसाइटी, रामकृष्ण मिशन (स्वामी विवेकानंद), ईश्वर चंद्र विद्यासागर (स्त्री-शिक्षा),महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले (दलित स्त्रियों की शिक्षा) आदि ने महिलाओं के हित में कार्य किया। 

पिछला वर्ष कोरोना काल में बीत गया। हैरानी की बात है कि इस दौरान महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के आंकड़े बढ़े हैं। मुझे स्मरण है कि श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व में श्रम मंत्री के रूप में मेरे मंत्रालय ने महिलाओं को समान वेतन का अधिकार दिया। प्रसूति अवकाश का लाभ जो कानूनन 12 हफ्ते का था, उसे बढ़ाकर 26 हफ्ते कर दिया गया। यह अंतर्राष्ट्रीय मानकों से कहीं ज्यादा था। यहां तक कि कई विकसित राष्ट्रों से अधिक है। मोदी सरकार ने ही रात्रि शिफ्ट में कामकाजी महिलाओं के लिए रक्षा व परिवहन की व्यवस्था को कानूनी तौर पर अमलीजामा पहनाया। कस्तूरबा बालिका विद्यालयों के लिए अलग से व्यवस्था की गई।-बंडारू दत्तात्रेय


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News