चीन के निर्यात की कमजोर होती मांग

punjabkesari.in Tuesday, Nov 16, 2021 - 05:35 AM (IST)

चीन की आर्थिक दशा अब गिरावट की ओर बढऩे लगी है, विदेशों में चीनी सामानों की मांग लगातार घट रही है। ऐसा नहीं है कि वैश्विक स्तर पर देशों को चीन के सामान की जरूरत नहीं है, लेकिन अब दुनिया के बाकी देश अपनी जरूरत का सामान दूसरे देशों से मंगाने लगे हैं। यानी उन्हें अगर कोई सामान चीन के अलावा कहीं और से मिल रहा है तो वह अपने विकल्प में दूसरे देश को चीन पर तरजीह दे रहे हैं। 

फिलहाल सारी दुनिया में उथल-पुथल का दौर जारी है और ऐसे में चीन की भूमिका सवालों के घेरे में है। चीन ने शुरूआत में जितने भी बखेड़े खड़े किए अब उनका खामियाजा चीन को भुगतना पड़ रहा है। सबसे बड़ा नतीजा उसे आर्थिक मोर्चे पर भुगतना पड़ा क्योंकि कई देशों, जो चीन का बड़ा बाजार हैं, में चीन ने आर्थिक पहलू को पीछे रख कर अपने सैन्य बल पर सीमा विवाद को एक बार फिर हवा दी। इन्हीं देशों में से एक भारत के साथ भी चीन ने छल किया। पिछले साल गलवान घाटी में चीन ने भारतीय सैनिकों पर हमला किया। फिर जो हुआ उसे दुनिया ने देखा। 

भारत चीनी उत्पादों का एक बड़ा बाजार है लेकिन अब यह पूरी तरह चीन से आयात को खत्म करने के मूड में दिख रहा है, जिससे उसे 5.7 लाख करोड़ डॉलर का नुक्सान होगा, जिसका असर चीन की अर्थव्यवस्था पर साफ तौर पर दिखाई देगा। भारत को इससे ज्यादा असर नहीं पड़ेगा क्योंकि चीन भारत से बहुत कम आयात करता है। अगर हम चीन के सरकारी व्यापार के आंकड़ों पर भरोसा करें तो वर्ष 2019 में चीन के साथ भारत का आपसी व्यापार 92.68 अरब डॉलर रहा। इस सांझेदारी में भारत को 56.77 अरब डॉलर का नुक्सान हुआ था, जिसे भारत खत्म कर सकता है। 

चीन में एक सर्वेक्षण किया गया, जिसकी रिपोर्ट के अनुसार चीन की निर्यात मांग कमजोर होने से अगस्त महीने में विनिर्माण गतिविधियों में सुस्ती देखी गई। इस रिपोर्ट की पुष्टि चीन के सांख्यिकी ब्यूरो के साथ एक और आधिकारिक रिपोर्ट ने की, जिसका कहना है कि औद्योगिक क्षेत्र में हर महीने तैयार उत्पाद का मासिक क्रय-प्रबंधन सूचकांक जुलाई में 50.4 फीसदी से घटकर 50.1 फीसदी हो गया, जो इस तरफ साफ इशारा करता है कि अब चीन के कम होते निर्यात का असर उसके विनिर्माण क्षेत्र में होने लगा है। अगर यही क्रम लगातार जारी रहा तो आने वाले दिनों में चीन के विनिर्माण क्षेत्र में बेरोजगारी देखने को मिलेगी, जिसका सीधा असर कच्चे माल उत्पादकों और आपूर्ति शृंखला पर पड़ेगा और अंतत: इसका अंतिम असर चीन की मुद्रा और उसके बैंकिंग क्षेत्र पर पड़ेगा। 

इसके साथ ही इस बरसात में चीन के कई जगहों पर बाढ़ आने और कोरोना महामारी पर लगाम लगाने के तरीकों से हुए असर के कारण भी निर्यात, उपभोक्ता गतिविधियों और विनिर्माण क्षेत्र में कमी होने का अंदेशा जताया गया है। वहीं चीनी निवेश बैंक के आर्थिक शोधार्थियों की टीम का कहना है कि वैश्विक स्तर पर मांग में कमी जारी रहने की प्रबल आशंका है। इसका अर्थ यह हुआ कि आने वाले समय में भी चीन के निर्यात की मांग में मंदी जारी रहने की आशंका बरकरार है। 

हालांकि जुलाई के महीने में चीन की निर्यात और आयात की रफ्तार पहले के महीनों की तुलना में बढ़ी थी, बावजूद इसके यह बहुत सुस्त थी। जुलाई के महीने में चीन का निर्यात पिछले वर्ष के जुलाई की तुलना में 18 फीसदी बढ़ा था जो 283 अरब डॉलर तक जा पहुंचा था लेकिन अगर इसका आकलन हर महीने में होने वाले उतार-चढ़ाव से किया जाए तो चीन का निर्यात लगातार कम हो रहा है। 

इसके पीछे दूसरे देशों के प्रति चीन की आक्रामकता है, जिसने आर्थिक हितों को किनारे रखते हुए अपने बाहुबल से पड़ोसियों की जमीनें हथियाने का काम आगे बढ़ाया। परिणामस्वरूप अब जिस देश को अपनी जरूरत का सामान और औद्योगिक उत्पाद किसी दूसरे देश से मिल रहा है, वह चीन से उस सामान को नहीं खरीद रहा क्योंकि सभी देशों को इस बात का डर है कि चीन आर्थिक तौर पर जितना मजबूत होगा वह उतनी ही अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाएगा और फिर उन देशों की जमीनें हथियाएगा।


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News