‘आप’ से हिसाब चुकता करना चाहती है कांग्रेस

punjabkesari.in Tuesday, Jan 07, 2025 - 05:54 AM (IST)

कहावत है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है लेकिन दिल्ली की राजनीति  बदलती दिख रही है। छह महीने पहले लोकसभा चुनाव में ‘आप’ और कांग्रेस ने मिल कर दिल्ली में भाजपा के विरुद्ध ताल ठोंकी थी, पर भाजपा फिर भी सातों सीटें जीत गई। तब भी ‘आप’ से गठबंधन का विरोध हुआ था। 

दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली तो पार्टी छोड़ भाजपा में ही चले गए। तब कांग्रेस और ‘आप’ को भाजपा दुश्मन नंबर एक नजर आती थी। इसलिए जिस कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हुए ‘आप’ 2013 में सत्ता में आई थी, उसी के साथ 2023 में दो दर्जन दलों के विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल हो दोस्त बन गई। फिर 2024 के लोकसभा चुनाव दिल्ली, हरियाणा, गुजरात और गोवा में दोनों मिल कर भी लड़े। लोकसभा चुनाव के बाद वह दोस्ती फिर दुश्मनी में बदल रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए दोनों आमने-सामने हैं। बेशक कांग्रेस को भ्रष्ट बताने के बावजूद चंद महीने में ही उसके समर्थन से पहली बार मुख्यमंत्री बने केजरीवाल ने विधानसभा चुनाव में गठबंधन न करने की बात कही थी, लेकिन अब तो आपस में ही जंग के हालात बन गए हैं। 

 ‘आप’ के प्रमुख उम्मीदवारों की घेराबंदी की जा रही है। केजरीवाल के विरुद्ध नई दिल्ली सीट से संदीप दीक्षित को उम्मीदवार बनाया है, जो 15 साल तक दिल्ली की कांग्रेस मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे हैं। केजरीवाल सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया के विरुद्ध कांग्रेस ने पूर्व मेयर फरहाद सूरी को उम्मीदवार बनाया है।

मुख्यमंत्री आतिशी के विरुद्ध अलका लांबा को चुनाव मैदान में उतारा है, जो खुद भी ‘आप’ में रह कर आई हैं। चुनावी घेराबंदी से भी आगे बढ़ कर कांग्रेस ने ‘आप’ के विरुद्ध खुली राजनीतिक जंग का ऐलान कर दिया है। शराब घोटाले के बाद अब जिस महिला सम्मान योजना के संकट में ‘आप’ फंसती दिख रही है, उसकी शिकायत भी दिल्ली के उप राज्यपाल से कांग्रेस ने ही की। संदीप दीक्षित ने इसकी लिखित शिकायत करते हुए पंजाब पुलिस द्वारा कांग्रेस उम्मीदवारों की जासूसी और चुनाव के लिए पंजाब से दिल्ली कैश लाए जाने के आरोप भी लगाए। आश्चर्य नहीं कि तत्काल जांच के आदेश भी दे दिए गए। बदलते रिश्तों के पीछे बताया जा रहा है कि कांग्रेस ने उसको लगातार कमजोर करने वाली ‘आप’ से अंतत: हिसाब चुकता करने का फैसला कर लिया है। बेशक यह बहुत कुछ गंवा कर होश में आने जैसी स्थिति है। 

आगामी चुनावी राजनीति के मद्देनजर कांग्रेस ने इस जोखिम का साहस जुटाया है। 2029 में होने वाले अगले लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस वापस अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिश करना चाहती है। यह लंबी लड़ाई है और बेहद मुश्किल भी, लेकिन कांग्रेस दिल्ली में इसे ‘आप’ के विरुद्ध पायलट  प्रोजैक्ट की तरह परखना चाहती है। कांग्रेस दिल्ली में लगातार 15 साल सत्तारूढ़ रही। परंपरागत प्रतिद्वंद्वी भाजपा उसे हिला नहीं सकी, लेकिन 2013 में नई-नवेली आम आदमी पार्टी ने सत्ता से बेदखल कर दिया। तब भाजपा 31 विधायकों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी, लेकिन उसे रोकने के लिए कांग्रेस ने अपने आठ विधायकों के समर्थन से 28 विधायकों वाली ‘आप’ की सरकार बनवा दी। अजय माकन 11 साल बाद उसे ही कांग्रेस की पहली गलती बता रहे हैं। 

अब जबकि कांग्रेस हरियाणा और महाराष्ट्र में करारी हार झेल चुकी है तथा अगले लोकसभा चुनाव 2029 में होंगे, पार्टी आने वाले कम से कम चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में अकेले दम किस्मत आजमाना चाहती है। इनमें से दो राज्यों की सत्ता उससे ‘आप’ ने छीनी तो दो अन्य राज्यों में उसके चुनावी पराभव में भी उसी की बड़ी भूमिका रही। हरियाणा और महाराष्ट्र में हार के बाद मित्र दलों के बदलते तेवरों से कांग्रेस को यह भी समझ में आ गया कि अपने पैरों के नीचे जमीन बिना गठबंधन राजनीति में कोई नहीं पूछता। पहला मोर्चा दिल्ली में खुला है। इसलिए वह ‘आप’ से जोर आजमाइश कर दिल्ली, पंजाब, गुजरात और गोवा में अपना खोया हुआ जनाधार वापस लेना चाहती है।

दिल्ली में विधानसभा चुनाव फरवरी, 2025 में होने हैं तो पंजाब, गुजरात और गोवा में 2027 में। पंजाब में तो सीधा मुकाबला ही अब ‘आप’ और कांग्रेस के बीच रह गया है, जबकि शेष तीन राज्यों में वह चुनावी संघर्ष का तीसरा कोण है। कांग्रेस को लगता है कि इन तीनों राज्यों में ‘आप’ से अपना जनाधार वापस ले पाई तो भविष्य में ‘एकला चलो’ की स्थिति न भी बने, पर गठबंधन राजनीति में उसकी हैसियत इतनी अवश्य हो जाएगी कि कोई छोटा दल उसे आंखें न दिखा पाए।-राज कुमार सिंह 
 


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