हमें उन न्यायाधीशों का सम्मान करना चाहिए, जो अंतरात्मा से सच्चे हैं
punjabkesari.in Friday, Sep 22, 2023 - 04:52 AM (IST)

मद्रास उच्च न्यायालय को न्यायमूर्ति आनंद वैंकटेश पर गर्व होना चाहिए जिन्होंने स्वयं संज्ञान लेते हुए द्रमुक के उच्च शिक्षा मंत्री के. पोनमुडी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले को फिर से खोलने का आदेश दिया। अगस्त के उसी महीने में न्यायमूर्ति वैंकटेश ने के.के.एस.एस.आर. रामाचंद्रन और थंगम थेनारासू के खिलाफ भी भ्रष्टाचार के एक मामले को फिर से खोलने का आदेश दिया जिसमें आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक सम्पत्ति का कब्जा शामिल था। रामाचंद्रन राजस्व मंत्री और थंगम वित्त मंत्री थे। मंत्री पोनमुडी के खिलाफ मूल मामले की सुनवाई विल्लुपुरम की एक अदालत में होनी थी। अज्ञात कारणों से इसे मद्रास उच्च न्यायालय के प्रशासनिक पक्ष द्वारा वैल्लोर के प्रधान न्यायाधीश की अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति वैंकटेश ने महसूस किया कि वैल्लोर की अदालत ‘बहुत जल्दबाजी’ में थी और उसने मंत्री को बरी करने के लिए कोई ठोस कारण नहीं बताया। विरुधूनगर जिले के विल्लीपुथुर में विशेष अदालत द्वारा मंत्री रामंचद्रन और थेनारासू के खिलाफ मामले उनके आरोपमुक्त होने के साथ समाप्त हो गए। मामले महीनों और वर्षों के लिए स्थगित कर दिए गए थे जिसके बाद दोनों आरोपी मंत्रियों को तमिलनाडु मंत्रिमंडल में बहाल कर दिया गया था। जिस जांच पुलिस अधिकारी ने आरोप पत्र दायर किया था उसकी जगह दूसरे ने ले ली जिसने अन्नाद्रमुक के समय स्थापित मूल निष्कर्षों को सफेद कर दिया। सरकार को यह स्पष्ट था कि जो सत्ता में था उसके अनुसार सच्चाई बदल गई। यदि इस तरह से भारत मेें ‘कानून का शासन’ लागू किया जाएगा तो नागरिक ‘अपने प्यारे देश के लिए रोने’ के लिए मजबूर हो जाएंगे। आजकल जो चलन चल रहा है वह वाकई डराने वाला है।
सूरत जिला अदालत में कांग्रेसी नेता राहुल गांधी के खिलाफ बिना सोचे-समझे किए गए एक घटिया मजाक के मामले को ही ले लीजिए। मामला सूरत में मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट के समक्ष आया। अभियोजन पक्ष ने स्पष्ट रूप से मैजिस्ट्रेट को असहयोगी पाया। इसने अहमदाबाद में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की जिसे मंजूर कर लिया गया। जब कई महीनों के बाद मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट का स्थानांतरण हो गया तो अभियोजन को मूल कार्रवाई फिर से शुरू करने के लिए उच्च न्यायालय की अनुमति मिल गई।
हम सभी जानते हैं कि उस घटिया मजाक के लिए राहुल गांधी को 2 साल की जेल की सजा सुनाई गई। एक सांसद जिसे 2 वर्ष की सजा सुनाई जाती है उसकी लोकसभा की सदस्यता छीन ली जाती है। गुजरात उच्च न्यायालय में इसे पाने में विफल रहने के बाद राहुल को निवारण के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा। सर्वोच्च न्यायालय ने तीखी टिप्पणी की कि ‘गुजरात में उच्च न्यायालय में कुछ गड़बड़ है’। आशा है राहुल गांधी ने उस प्रकरण से सबक सीखा होगा। उन्हें ऐसे शब्द बोलकर अपने राजनीतिक विरोधियों पर हमला करने के अपने उत्साह पर अंकुश लगाना चाहिए जो परेशानी को आमंत्रित करने वाले हैं, लेकिन ऊपर दिए गए दो मामलों से हम अपनी न्याय व्यवस्था के बारे में क्या निष्कर्ष निकालेंगे क्योंकि हम भारत के नागरिक हैं। इन दोनों मामलों में एक समान सूत्र चलता है।
तमिलनाडु में जहां विपक्षी सरकार सत्ता में है और दूसरा गुजरात में ‘डबल इंजन’ सरकार सत्ता में है। राज्य में सत्ता में रहने वाली पार्टी कुछ न्यायाधीशों को प्रभावित कर सकती है। यह जानना परेशान करने वाला है कि राजनीतिक सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों के सक्रिय डिजाइन से आपराधिक मुकद्दमे पटरी से उतर सकते हैं। जैसा कि न्यायमूर्ति वैंकटेश ने अपने आदेश में कहा है।
यदि परेशान नागरिक ‘न्यायालय की अवमानना’ कार्रवाई के रूप में प्रतिशोध के डर से न्यायिक अखंडता के प्रति इस उपेक्षा पर शोक नहीं जताते हैं तो हमारा देश पहले जैसा नहीं होगा। यह न्यायालय की आत्महत्या है जिस पर भारत के नागरिकों को विस्तार से विचार करना चाहिए। यह अत्यंत जरूरी है कि संबंधित नागरिक उस डर को त्याग दें जो अपनी आवाज उठाने से डरते हैं कि कहीं उन्हें अपनी मातृभूमि के प्रति अपना कत्र्तव्य निभाने के लिए जेल न भेज दिया जाए। नागरिकों से निरंतर कहा जाता है कि वे राजनीतिक वंशवाद को राजनीतिक व्यवस्था से बाहर कर दें। ऐसे संदिग्ध साधनों पर लगाम लगाना कहीं अधिक जरूरी है जो राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करते हैं और बेईमानी तथा भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं। जब मोदी जैसे अधिक गैर-वंशवादी राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करेंगे तो राजवंश अपनी स्वाभाविक मौत मरेंगे।
संघ के अधिकांश राज्यों में न्यायमूर्ति वैंकटेश जैसे कई ईमानदार और कत्र्तव्यनिष्ठ न्यायाधीश हैं हमें उनकी प्रशंसा करनी चाहिए। न्याय और सुरक्षा के लिए न्यायपालिका और भारत की सशस्त्र सेनाएं हमारी अंतिम शरणस्थली हैं। उन्होंने अभी तक पुलिस, सिविल सेवा और मीडिया की तरह घुटने नहीं टेके हैं लेकिन हमला गंभीर और निरंतर है। हम नागरिकों को उन न्यायाधीशों की प्रशंसा करनी चाहिए जो अपनी अंतर्रात्मा के प्रति सच्चे हैं।-जूलियो रिबैर(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)