हमें ब्रिटिश राजवंश से सबक सीखने की जरूरत

punjabkesari.in Friday, Jun 29, 2018 - 03:29 AM (IST)

लंदन के अपने दौरे के दौरान मुझे एहसास हुआ कि प्रिंस हैरी तथा अमरीका की मेघन मार्केल की शादी के दौरान कैसे ब्रिटिश शाही परिवार ने खुद को शीर्ष पर साबित किया। शाही परिवार ने युवा राजकुमार के एक अफ्रीकी-अमरीकी लड़की, जो तलाकशुदा है और उनसे 3 वर्ष बड़ी भी है, के साथ प्रेम संबंधों के सामने झुकते हुए सभी को गलत साबित कर दिया। अपने जीवन में मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि बकिंघम पैलेस एक ऐसे समाज के लिए अपने द्वार खोल देगा जिसे कई वर्ष पूर्व वह नीची नजरों से देखता था। 

यदि आप शाही परिवार के इतिहास का अध्ययन करें तो उनके एक राजा को अपना सिंहासन इसलिए छोडऩा पड़ा था क्योंकि वह एक तलाकशुदा महिला से प्रेम करता था और उसे ब्रिटेन को भी छोड़कर जाना पड़ा। बाद में उसका छोटा भाई राजा बना। प्रिंसैस डायना को बहुत त्याग करना पड़ा था और देखें कि उनके साथ क्या हुआ। प्रिंस हैरी की शादी के दिन सारी दुनिया ने टैलीविजन देखा। यह एक शानदार अनुभव था क्योंकि ब्रिटिश राजशाही के साथ कई अश्वेत चेहरों को भी बैठे देखा गया। मुझे हैरानी होती है कि यदि इंगलैंड का शाही परिवार अपने सभी मतभेदों को एक तरफ रख कर अपने शाही महल में उस बात को स्वीकार करके जमीन पर आ सकता है, जो उसने कभी नहीं की थी? तो हम भारतीय ठीक वैसा क्यों नहीं कर सकते? 

मूलरूप से मैं यह कहना चाहती हूं कि शिक्षित और यहां तक कि समझदार अशिक्षित वर्ग भी हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई की जाति प्रथा से ऊब चुका है, जो मूर्खतापूर्ण है। हम सभी एक ही परमात्मा के बच्चे हैं। हम अपने शरीर पर कोई ठप्पा लेकर नहीं आए थे कि किस धर्म, किस जाति से संबंधित हैं। हम सब वही खाना खाते हैं, एक जैसे कपड़े पहनते हैं, एक ही घर में मिलकर रह सकते हैं और यहां तक कि कम या अधिक एक जैसे ही दिखाई देते हैं। फिर भी हमें यह पूछना पड़ता है कि आप किस जाति अथवा धर्म के हो। क्यों हमारे मन में इस तरह के मतभेद आते हैं। यह बहुत दुख की बात है। जीवन में पहली बार मैंने स्कूल में सुना था जब एक 9 वर्षीय छात्रा दूसरी को कह रही थी कि ‘‘अरे मैं तो ब्राह्मण हूं, मैं तो ऊंची जाति की हूं।’’ मैंने कभी भी स्थितियों को इस तरह दयनीय रूप में नहीं देखा था। 

दिल्ली, जहां देश की सबसे शक्तिशाली सोसाइटियां हैं, मैं नहीं समझती कि यहां कोई किसी पर ध्यान देता है कि आप कौन हो। हमारे साथ पारसी, मुसलमान, हिन्दू, ब्राह्मण सभी जातियों के लोग हैं, मगर हम सभी मिलकर बैठते हैं। हम मिलकर खाते हैं और सभी मिलकर राजनीति पर चर्चा करते हैं। इस तरह की बातें ही भारत को मजबूत बनाती हैं। अब जब भाजपा अथवा कांग्रेस समितियां बनाती हैं तो वे पूछते हैं कि ‘‘इसमें दलित हैं? इसमें ब्राह्मण/पंडित हैं?’’ क्यों? इस तरह की बातें सामने आना हैरानीजनक है। मैं समझती हूं कि हमें इससे ऊपर उठना होगा। 

मुझे वास्तव में एक आर्कबिशप पर तरस आता है जिसने एक पत्र जारी कर लोगों को बाहर निकल कर वोट करने के लिए कहा। उसे कैसे पता होता कि टैलीविजन पर इसका तमाशा बन जाएगा? हे भगवान, बेचारे की खूब छीछालेदर हुई मगर खुशी है कि वह अपने रुख पर डटा रहा। एक आर्कबिशप के नाते उसने लोगों को समझदारीपूर्वक वोट उस व्यक्ति को डालने को कहा जिसे वे देश के लिए अच्छा समझते हैं। इसमें गलत क्या है? 

यदि अमरीका ओबामा के रूप में एक एफ्रो-अमरीकी राष्ट्रपति को स्वीकार कर सकता है तो स्वाभाविक है कि वैश्विक स्तर पर समाज में बदलाव आया है। मैं हिन्दू हूं और भगवान राम तथा माता में बहुत विश्वास करती हूं मगर घर में कोई बौद्ध है अथवा गिरजाघर जाता है तो मैं उसे रोकने वाली कौन होती हूं। मैंने बच्चों को बेहतरीन शिक्षा दिलाई है, मैंने उनके लिए घर में सर्वश्रेष्ठ पूजा करवाई है लेकिन यदि कल को वे अपना खुद का रास्ता चुनना चाहते हैं तो मैं उन्हें कैसे रोक सकती हूं? यह मुझ पर निर्भर नहीं करता, यह व्यक्ति की समझ पर निर्भर करता है कि वह क्या करना चाहता है। 

मेघन को ऐसे मर्यादित तरीके से अपनाने के कारण ब्रिटिश राजवंश को दुनिया भर में प्रशंसा मिल रही है। हमें एक सबक सीखना चाहिए और हमें भी सभी समुदायों, सभी जातियों तथा धर्मों के लिए अपने दिल खोलने चाहिएं। आपको स्कूलों में नैतिक शिक्षा की कक्षाएं याद होंगी। हम कहीं से भी हों, हमें एक अच्छा इंसान बनने के लिए कहा जाता था। हम सभी यह कहते हैं कि ओबामा कितने महान राष्ट्रपति थे, हम उनकी जाति अथवा धर्म को नहीं देखते। वह एक अमरीकी मुसलमान थे जिनके शरीर में अफ्रीकी खून दौड़ता है और वह अच्छे भाग्य के लिए अपनी जेब में हनुमान की नन्ही प्रतिमा रखते थे। अब आप उनको किस श्रेणी में रखेंगे? मगर अमरीका के बेहतरीन राष्ट्रपतियों में से एक के तौर पर उनका नाम इतिहास में दर्ज हो गया है। 

अब ब्रिटिश राजवंश ने अपने अतीत को भुलाकर नई पीढ़ी, नए विचारों तथा एक आधुनिक समझदारीपूर्ण तरीके से रहने के लिए नई इच्छा को अपनाया है। सलाम है उनको। मैं वास्तव में आशा करती हूं कि हम बाहरी दुनिया से कुछ सबक सीखें। मगर ऐसा दिखता है कि हम उल्टी दिशा में जा रहे हैं।-देवी चेरियन


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Pardeep

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