हमें सुलभ और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की जरूरत
punjabkesari.in Friday, Nov 11, 2022 - 04:24 AM (IST)

सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश में निजी मैडीकल कालेजों की फीस में बेतहाशा बढ़ौतरी पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि शिक्षा मुनाफा कमाने वाला व्यापार नहीं है और ट्यूशन फीस हमेशा वहन करने योग्य होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश सरकार के निजी मैडीकल कालेजों की फीस बढ़ाने का आदेश रद्द करने के हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए निजी कालेज की अपील खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ बढ़ाई गई फीस की रकम वापस करने के हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, बल्कि अपीलकत्र्ता निजी कालेज और आंध्र प्रदेश सरकार पर 5 लाख रुपए जुर्माना भी लगाया।
कड़वी हकीकत है कि आज के दौर में शिक्षा एक कामयाब व्यवसाय बन चुकी है और प्रभावशाली लोग इस शिक्षा रूपी इंडस्ट्री से जुड़ चुके हैं। काफी लोग तो यह भी विचार रखते हैं कि पॉलिटिक्स के बाद आज का सबसे हरित उद्योग शिक्षा है। हमें याद है कि कोरोना के चलते जब लॉकडाऊन लगाए गए, सभी गतिविधियां थम गईं, लोग घरों में कैदी बन गए लेकिन शिक्षा की फैक्टरियां ‘ऑनलाइन’ के नाम से चलती रहीं और उत्पादन होता रहा! न फीस में कोई बड़ी कमी हुई, न ही इसके बारे में कोई चर्चा हुई कि ऑनलाइन पढ़ाई ऑफलाइन पढ़ाई के स्तर की हो रही है अथवा नहीं। हकीकत में अच्छी शिक्षा कम लागत पर सबको मिले, यह सुनिश्चित करना अग्र स्थान पर होना चाहिए। शिक्षा हरगिज व्यवसाय नहीं है। युवा पीढ़ी को मिल रहे शिक्षण से ही देश का भविष्य जुड़ा है।
हमारे देश में विकास के लिए शिक्षा के क्षेत्र का क्या महत्व है, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं। भारत के करोड़ों बच्चे हर सुबह अपना बस्ता लेकर स्कूल जाते हैं। हर माता-पिता की तमन्ना रहती है कि उनका बच्चा पढ़-लिखकर एक काबिल इंसान बने और दुनिया में खूब नाम रौशन करे। इन सपनों को पूरा करने में स्कूल और हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि लोगों के जीवन के लिए शिक्षा रूपी संजीवनी एक ऐसे अवांछित व्यवसाय का रूप ले चुकी है, जिसने अच्छी शिक्षा को पैसे वालों की कठपुतली बना कर रख दिया है।
अब साधारण तथा मध्यमवर्गीय परिवार तो बस बड़े स्कूलों को दूर से ही टकटकी लगाकर देखते हैं और सोचते हैं कि काश उनका बच्चा भी ऐसे स्कूलों में पढ़ पाता। इस असंतुलन को ठीक करना होगा। आजकल शहरों में तो क्या, गांवों में भी शिक्षा का व्यवसायीकरण हो गया है। यदि आंकड़ों को देखा जाए तो सरकारी स्कूलों में केवल निर्धन वर्ग के लोगों के बच्चे ही पढऩे के लिए आते हैं, क्योंकि निजी शिक्षा संस्थानों में फीस के नाम पर बड़ी-बड़ी रकमें वसूली जाती हैं, जिन्हें केवल पैसे वाले ही चुका पाते हैं। उच्च शिक्षा संस्थानों में कमोबेश ऐसी ही स्थिति है।
अच्छी शिक्षा का व्यवसायीकरण क्यों हो रहा है? बेहतर शिक्षा संस्थानों के निवेशक गैर-शिक्षा से जुड़े लोग क्यों पाए जाते हैं, इन मुद्दों पर सोचने की जरूरत है। अनेक शिक्षण संस्थानों के संचालक मनमर्जी की फीस वसूल कर रहे हैं या यूं कहें उन्होंने शिक्षा का बाजार लगाकर लूट मचा रखी है। जहां एक तरफ आम आदमी के लिए शिक्षा का खर्चा उफान पर है, वहीं दूसरी तरफ उतना ही स्कूलों-कॉलेजों में शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर गिरता जा रहा है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस सबके लिए कहीं न कहीं हम सब भी जिम्मेदार हैं।
अच्छे शिक्षा संस्थान का मतलब सिर्फ 5 सितारा मूलभूत ढांचा नहीं, बल्कि उनके द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही भारतीय संस्कार युक्त शिक्षा की बेहतर अकादमिक गुणवत्ता भी है। यह कैसे संभव हो सकेगा? हममें से ज्यादातर लोगों की यह गलत सोच है कि शहर का सबसे महंगा स्कूल ही सबसे अच्छा है और हम अपने बच्चों को उसी महंगी दौड़ का हिस्सा बना देते हैं। फीस का खर्च न उठा पाने के कारण अधिकतर लोग तो अपने बच्चों को महंगे स्कूल भेजने में भी असमर्थ हैं। पिछले कुछ समय के दौरान सरकारी स्कूल बेहतर हुए हैं, हमें इन स्कूल के प्रति पूर्वाग्रह त्यागने होंगे।
माननीय सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का सम्मान करते हुए कुछ कदम उठाने चाहिएं ताकि शिक्षा का मौलिक अधिकार प्रत्येक बच्चे को प्राप्त हो सके। इस मनमानी को रोकने के लिए चाहिए कि शिक्षा का व्यवसायीकरण रोका जाए। देश के लोगों को सुलभ और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की जरूरत है, इसके लिए तेजी से काम किया जाए। यह काम शिक्षा से जुड़े विद्वानों के सुपुर्द होना चाहिए। देशहित मेें हमें शिक्षा को व्यवसाय नहीं, एक पवित्र मिशन बनाना होगा और यह जिम्मेदारी किसी एक की न होकर सामूहिक है।-डा. वरिन्द्र भाटिया