हमें कृषि क्षेत्र का पुनर्निर्माण करना चाहिए

punjabkesari.in Tuesday, Mar 21, 2023 - 06:25 AM (IST)

महाराष्ट्र के किसानों का प्याज को लेकर प्रदर्शन अब लगता है फिर से राज्य सरकार के लिए आफत बनने जा रहा है। आखिर बार-बार ऐसा होता क्यों है। यह सब समझने के लिए मैं नासिक गया और वहां के किसानों से मिलने का और उनकी समस्याओं को जानने का मुझे हाल ही में मौका मिला। इस साल मौसम का बदलाव किसानों के अनुकूल  नहीं रहा। नासिक के किसान इस बार इस बात को लेकर खुश थे कि फसलों पर कीड़ों का प्रकोप नहीं दिखा। तापमान बढ़ता है तो कीड़ों का असर कम रहता है।

इस तरह से गर्मी का ज्यादा असर प्याज की फसल पर तो नहीं था मगर नासिक में इन दिनों शाम का तापमान अचानक से कम हो रहा है। जब शाम का तपामान कम होता है तो नमी बढ़ जाती है जो कि प्याज की गांठों के लिए सही नहीं है। रबी की जब प्याज की पहली फसल आती है तो ज्यादा नमी की वजह से यह प्याज भंडारण के लिए अधिक उपयुक्त नहीं रहती। इसे ज्यादा दिन तक सहेज कर नहीं रखा जा सकता। खरीफ की फसल सर्दियों में होती है और ज्यादा नमी की वजह से उस प्याज का भंडारण संभव नहीं होता मगर रबी की फसल का भंडारण 5 से 6 महीने तक किया जा सकता है।

मगर रबी की अगेती फसल में ज्यादा नमी पाई जा रही है। इसलिए इस प्याज को 7-8 दिन से ज्यादा संरक्षित नहीं रखा जा सकता। ऐसे में व्यापारी इस प्याज को खरीदने से संकोच कर रहा है। दूसरी ओर पैदावार बढ़ गई है, इसलिए किसान को इसे निकालना ही है। किसान भी जानते हैं कि इस प्याज को स्टोर करके नहीं रखा जा सकता। महाराष्ट्र में प्याज के किसानों के संकट का एक कारण तो यह समझ में आया है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि देश के कुल प्याज उत्पादन का 40 फीसदी महाराष्ट्र में ही होता है।

नासिक में किसानों को जो दाम मिल रहा है वह 300 से 350 रुपए प्रति किंवटल का मिल रहा है। दूसरी ओर किसान को उसकी लागत प्रति किलोग्राम 10 से 12 रुपए आती है। इसलिए किसानों का गुस्सा हम सबके सामने है। यही वजह है कि प्याज के किसान नासिक से मुम्बई के लिए पैदल मार्च कर रहे हैं। किसान पांच साल बाद फिर से पैदल मार्च पर हैं। महामारी काल में हमने देखा कि जब अर्थव्यवस्था तेजी से नीचे आई तो उस समय कृषि क्षेत्र ने ही सबसे अच्छा साथ दिया।

पिछली तिमाही में भी कृषि विकास दर सबसे अच्छी थी। पता नहीं क्यों हमारे नीति निर्धारकों को यह समझ नहीं आता कि कृषि क्षेत्र पूरे देश की अर्थव्यवस्था से जुड़ी समस्याओं को खत्म करने में बड़ी भूमिका निभा सकता है। हमारी सबसे बड़ी दिक्कत हमारी सोच है, जो संभवत: कृषि समर्थक नहीं  है। हम उद्योग के लिए कृषि क्षेत्र का बलिदान देना चाहते हैं। नीति निर्धारकों का मानना है कि जब तक हम लोगों को गांवों से निकालकर शहरों में नहीं ले आते तब तक आर्थिक विकास का रास्ता सुदृढ़ नहीं होगा।

यह कोई मौलिक सोच नहीं है बल्कि देखा जाए तो यह पश्चिम की नीतियों का कट-कॉपी-पेस्ट है। यानी नकल है। इस नकल को ही आर्थिक सुधार कहा जा रहा है। यही वजह है कि हमारे देश में कृषि क्षेत्र की अनदेखी हो रही है। हमारे पास दो आॢथक पैमाने होते हैं-एक सकल उत्पादन (जी.बी.ओ.), इसमें हम कृषि के कुल उत्पादन को नाप लेते हैं। यह 50 लाख करोड़ रुपए का उत्पादन है। इसके अलावा दूसरा सकल मूल्य अतिरेक होता है।

इसका अर्थ है कि आप अपनी लागत को निकाल दें तो जो बाकी लाभ है उसे सकल मूल्य अतिरेक (जी.बी.ए.) कहते हैं। यह जी.बी.ए. लगभग 40 लाख करोड़ रुपए है। इस तरह  कृषि क्षेत्र का जी.बी.ओ. और जी.बी.ए. का जो अनुपात है 80 फीसदी से अधिक है। यह भारत के अन्य सभी आर्थिक सैक्टरों चाहे वह वित्त है, सेवाएं हैं, भारी उद्योग है, में सबसे ज्यादा बेहतर कृषि क्षेत्र का है। इस तरह उत्पादकता के लिहाज से सबसे कुशल क्षेत्र कृषि क्षेत्र है।

दूसरी ओर कृषि से जो आय है वह इसलिए सबसे कम है, क्योंकि वह जितनी मिलनी चाहिए उतनी किसानों को नहीं दी जा रही। किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य देने से सरकार ने हमेशा इंकार किया है। सबसे कुशल क्षेत्र होने के बावजूद वहां किसान की आय नहीं बढ़ी है तो इसके कारण अब स्पष्ट होने चाहिएं। मीडिया में भी यह गलत छवि बनाई जा रही है कि कृषि देश पर बोझ है। ऐसा नहीं है, बल्कि अगर इसे आगे बढ़ाया जाता है तो इसमें हमारी आॢथक समस्याओं के समाधान भी छुपे हैं। अब तो अर्थशास्त्री भी इस बात को मान रहे हैं कि देश में कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ है। इसके बावजूद हमारे नीति निर्धारक उसी पुरानी सोच से काम कर रहे हैं।

कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन लाजवाब है। यूक्रेन जंग से दुनिया के सामने जो अनाज संकट उत्पन्न हो गया था उससे बचाने में भारत ने अग्रणी भूमिका निभाई। इसके अलावा कोविड काल में 80 करोड़ लोगों को सरकार अगर मुफ्त अनाज दे पा रही है तो वह भी किसानों की मेहनत का ही नतीजा है। कोरोना काल में माना जा रहा है कि शहरों से करीब 10 करोड़ लोगों का पलायन हुआ। इनमें से काफी लोग वापस शहर नहीं आए। हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि हमारे अर्थशास्त्री कभी खेत में जाते ही नहीं हैं, कभी गांव में रहते ही नहीं हैं इसलिए वे इसका महत्व नहीं जान पाए। हमें कृषि क्षेत्र का पुनर्निर्माण करना चाहिए। -डा. देविंदर शर्मा 


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