हम युगों-युगों से इसी धरती की संतान हैं

punjabkesari.in Thursday, Mar 02, 2017 - 10:03 PM (IST)

भारत एक सभ्यता के रूप में कितना प्राचीन है और भारतवर्ष का उद्गम स्थल कहां है? इन दोनों यक्ष प्रश्नों का उत्तर अभी हाल ही की एक महत्वपूर्ण घटना से पुन: स्पष्ट हो जाता है। प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका ‘नेचर’ में छपा शोध-लेख प्रमाण है कि हमारी सभ्यता लगभग 8000 वर्ष पुरानी है और हम भारतीय कहीं बाहर से नहीं आए। हमारे पूर्वजों की उत्पत्ति, उनका विकास और सनातन संस्कृति का जन्म विश्व के इसी भू-भाग में हुआ। 

जब 22 फरवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कालेज में वामपंथियों का राष्ट्रविरोधी बवाल चल रहा था, तब दिल्ली से लगभग 180 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में भारत के प्राचीन इतिहास को खंगालने की तैयारी जोर पकड़ रही थी। भारतीय सभ्यता विश्व की सबसे प्राचीन है, किन्तु इससे संबंधित साक्ष्यों व तर्कों को वामपंथी चिंतक-इतिहासकार मिथक की संज्ञा देते हैं। सहारनपुर से 12 किलोमीटर दूर स्थित सकतपुर गांव के गर्भ में छिपा 4000 वर्ष पुराना इतिहास, एक बार फिर से वामपंथी दावे और उनके द्वारा रचित वांग्मय को आईना दिखा रहा है। 

देश में ऐसा पहली बार हुआ है, जब यमुना के पूर्वी भाग में हिंडन नदी के निकट हड़प्पाकालीन अवशेष मिले हों। सकतपुर गांव गत वर्ष जून में तब चर्चा में आया था, जब ईंट-भट्टे के लिए किसी के खेत से मजदूर मिट्टी की खुदाई कर रहे थे जिसमें तांबे की कुल्हाड़ी, मिट्टी के बर्तन व प्राचीन सिक्के निकले थे। जांच में आगरा पुरातत्व विभाग ने इन्हें 4000 वर्ष पुराना आंका है। इसके बाद पुरातत्व विभाग ने जिलाधिकारी से खुदाई की अनुमति लेकर 24 फरवरी को सकतपुर गांव में दो स्थानों को चिन्हित किया और उत्खनन का कार्य प्रारम्भ कर दिया। 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को उत्खनन के पहले ही दिन यहां से चूल्हा और सिलबट्टा मिला। ऐतिहासिक महत्व के ये पुरावशेष, पाकिस्तान स्थित पंजाब प्रांत के मिंटगुमरी जिले में रावी नदी के तट पर उत्खनन में मिले सिलबट्टे जैसे ही हैं। पुरातत्वविदों के अनुसार प्रयोगशाला में जांच के बाद ही पता चलेगा कि ये हड़प्पाकालीन हैं या नहीं। उत्खनन कर रहे विशेषज्ञों को विश्वास है कि जिस स्थान पर उत्खनन किया जा रहा है, वहां अब तक मिले अवशेषों से यह संभावना प्रबल हुई है कि उन्हें पौराणिक वस्तुएं भी मिल सकती हैं। 

अब तक भारतीय उपमहाद्वीप (भारत सहित) में हजारों हड़प्पाकालीन स्थलों को चिन्हित किया जा चुका है। अब तक पहचाने गए स्थलों से साफ है कि सिन्धु-सरस्वती घाटी के कारण हड़प्पा सभ्यता का उदय हुआ, जिस तरह मेसोपोटामिया सभ्यता का जन्म टिगरिस और यूफ्रेट्स नदियों के कारण हुआ। 

सकतपुर में हड़प्पाकालीन अवशेषों से पूर्व भारत में सोठी, लोथल, कालीबांगान, धौलावीरा, बनावाली, राखीगढ़ी, सुरकोटड़ा, कुणाल आदि स्थानों पर सरस्वती और इसकी पूर्व सहायक नदियों की घाटी में और पाकिस्तान में रहमानधेरी, कोटदिजी,आमरी, बालाकोट, मेहरगढ़ आदि सिन्धु, सरस्वती-हाकड़ा और उसकी सहायक नदियों की घाटियों में हुई खुदाई दर्शाती है कि यहां विकसित हुई सभ्यता देशज थी, जिसमें आरम्भिक-काल से पूर्ण विकसित दौर तक धीरे-धीरे बदलाव हुए। बाद में व्यापार और वाणिज्य मजबूत हुआ जैसा कि बाट, माप-तोल, मुद्राओं आदि की खोज से पता चलता है। लोथल में तो गोदी (डॉक) के अस्तित्व का भी पता चला था। 

हड़प्पाकालीन वासियों और वर्तमान भारतीयों के सामाजिक-धार्मिक व्यवहार में काफी स्पष्ट समानताएं हैं। सामान्यत: हर भारतीय अभिवादन करने के लिए हथेली जोड़कर ‘नमस्ते’ या ‘नमस्कार’ करता है। पुरातत्वविदों को उत्खनन में मिट्टी की बनी कुछ हड़प्पाकालीन मूॢतयां ‘नमस्ते’ करती हुई अवस्था में मिली हैं। उस कालखंड की नर्तकी की छवि में जिस प्रकार की घुमावदार चूडिय़ां दिखती हैं, वे आज भी हरियाणा, राजस्थान, गुजरात आदि की महिलाओं के हाथों में देखी जा सकती हैं, साथ ही हड़प्पाकालीन महिलाओं की तरह ही वर्तमान समय में आज भी हिन्दू परिवारों में महिलाएं सिंदूर लगाती हैं। इसी प्रकार उस काल की अग्नि उपासना आज भी हवन के रूप में हिन्दू घरों में की जा रही है। इन 2 कालों के कुछ अन्य  सांझा चिन्ह हैं, जैसे वृक्ष पूजा, घरों  के द्वार पर स्वास्तिक बनाना और आसन करने का तरीका आदि। 

हाल के शोध से यह भी स्पष्ट हुआ है कि सरस्वती नदी मिथ्या नहीं, बल्कि एक वास्तविकता है। 2015 में हरियाणा में यमुनानगर के आदिबद्री से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर सरस्वती नदी की खोज में खुदाई शुरू हुई थी, जिसमें धरातल से कुछ ही फीट की खुदाई पर जलधारा एकाएक फूट पड़ी। सरस्वती नदी पौराणिक हिन्दू ग्रंथों और ऋग्वेद में वॢणत मुख्य नदियों में से एक है। ऋग्वेद में लगभग 50 जगह सम्मानसूचक शब्दों में सरस्वती का जिक्र है। सरस्वती को ‘सर्वोत्तम मां, सर्वोत्तम नदी, सर्वोत्तम देवी’ बताया गया है। नदी स्तुति सूत्र में तो गंगा, यमुना, सरस्वती और सुतुदोरी (सतलुज) सहित कुछ नदियों और सरस्वती, यमुना तथा सतलुज के बीच के स्थानों का वर्णन मिलता है। 

सरस्वती नदी इसलिए इतनी विशाल थी क्योंकि उसका उद्गम हिमालय के ग्लेशियरों से हुआ था और जब सतलुज इससे आ मिली तो वह और अधिक चौड़ी व विराट हो गई। पुरातात्विक जानकारियां बताती हैं कि क्षेत्रों में चट्टानों के ऊपर-नीचे होने के कारण सतलुज और यमुना दोनों सरस्वती से अलग हो गईं। 

पश्चिमी विद्वानों और उनके चितन का भार ढो रहे कुछ भारतीय आज भी यह कुप्रचार करते हैं कि 1000-1500 ईसा पूर्व के बीच मध्य-एशियाई खानाबदोश अर्थात ‘आर्यों’ ने भारत पर आक्रमण किया और इसके परिणामस्वरूप भारत में वैदिक सभ्यता का जन्म हुआ। ‘आर्य आक्रमण’ की धारणा पूर्णत:निराधार है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार, ‘हमारे ग्रंथों में ऐसा एक भी शब्द नहीं है, जो यह सिद्ध कर सके कि आर्य कभी भारत के बाहर से आए थे।’ संविधान निर्माता डा. बी.आर. अम्बेदकर ने भी उल्लेख किया था, ‘आर्य आक्रमण की धारणा एक दिमागी उपज है।’ यदि ऋग्वेद में 7 नदियों के बारे में दिए गए संदर्भों को देखें तो उनमें से किसी में भी आक्रमण का उल्लेख नहीं मिलेगा। कुल मिलाकर हजारों वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज एक साधन सम्पन्न और विकसित सभ्य समाज की रचना कर चुके थे। यह स्थापित सत्य है कि हमारे पूर्वज कहीं बाहर से नहीं आए थे बल्कि हम सभी युगों-युगों से इसी धरती की संतान हैं।


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