वेदांता ध्यान रखे कि वह भारत का अगला अडानी न बन जाए

punjabkesari.in Thursday, Mar 02, 2023 - 05:13 AM (IST)

अत्यधिक फायदा लेने वाले भारतीय अग्रणी कारोबारियों के पास कठिन समय है। गौतम अडानी का 236 बिलियन डालर का इंफ्रास्ट्रक्चर साम्राज्य एक महीने में 3 से 5वें स्थान तक सिकुड़ गया। लेकिन जब अडानी का निरंतर उदय और शानदार गिरावट सुर्खियां बटोर रही थी तो एक और व्यवसायी के लिए एक छोटा तूफान  सिर पर मंडरा रहा था। अनिल अग्रवाल की लंदन में सूचीबद्ध वेदांता रिसोर्सिज पर कर्ज का ढेर है। जानकारी के अनुसार इस कर्ज में एक बिलियन डालर का बांड भी शामिल है।

फिर भी कर्ज के भार को कम करने के उनके सबसे हालिया प्रयास ने नई दिल्ली को परेशान कर दिया है जिसे वह नाराज नहीं कर सकते। पिछले वर्ष लगभग इसी समय जब अमरीकी फैड ने मुद्रास्फीति को काबू में करने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि करनी शुरू की थी और यूक्रेन में रूस के साथ युद्ध के लिए वस्तुओं को भेजना शुरू कर दिया था तो अग्रवाल कर्ज से दबे वेदांता रिसोर्सिज को अपने भारत में सूचीबद्ध इकाई वेदांता लिमिटेड के साथ विलय करने के विचार के साथ खिलवाड़ कर रहे थे।

हालांकि वेदांता रिसोर्सिज पिछले साल मार्च में अपने शुद्ध ऋण के बोझ को लगभग 10 अरब डालर से घटाकर 8 अरब डालर से कुछ कम करने में कामयाब रहा। एस. एंड पी. ग्लोबल के अनुसार सूचीबद्ध इकाई ने पिछले महीने लाभांश घोषित करने के साथ इसके मूल और बहुसंख्यक शेयर धारक को सितम्बर 2023 तक अपने दायित्वों को पूरा करने की संभावना है। लेकिन यह तब था जब अग्रवाल ने वित्त को सुरक्षित करने की कोशिश की।

इस साल और जनवरी 2024 के बीच 1.5 अरब डालर के ऋण और बांड के पुन: भुगतान के लिए उन्होंने एक योजना बनाई। अगले कुछ महीने धन को जुटाने के लिए महत्वपूर्ण होंगे। यदि वेदांता असफल हुआ तो निश्चित तौर पर दबाव में आ जाएगा। एस.एंड पी. का कहना है कि अडानी का कुल कर्ज 24 बिलियन डालर अग्रवाल से तीन गुणा ज्यादा हो सकता है। मगर उनके बांड्स अभी भी न्यूनतम निवेश ग्रेड पाते हैं। एक निजीकरण सौदे के तहत अग्रवाल ने हिंदुस्तान जिंक को दो दशक पहले भारत सरकार से खरीदना  चाहा।

इस बात ने निश्चित तौर पर सबको चिंतित किया है। इसलिए वेदांता लिमिटेड ने जिसके पास फर्म का 65 प्रतिशत हिस्सा है, ने जनवरी में टी.एच.एल. जिंक लिमिटेड, मॉरीशस को हिंदुस्तान जिंक में ऑफ लोड कर दिया। पैसे की इस डील में दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया में खनन हित छिपे हुए हैं क्योंकि वेदांता लिमिटेड का 70 प्रतिशत वेदांता रिसोर्सिज के पास स्वामित्व है। इसी कारण इसने वेदांता रिसोर्सिज के धन की जरूरतों पर ध्यान दिया।

यदि अग्रवाल हिंदुस्तान जिंक के कैश को वेदांता रिसोॢसज के लिए ले लेते हैं तो ऋण अदा करने की उनकी योग्यता सुधर सकती है। जिससे वह और ज्यादा ऋण ले सकते हैं। अग्रवाल की दूसरी चुनौती राजनीतिक है। यदि वे सम्पत्ति को सेल करने की कोशिश करते हैं तो उनकी ताइवान की फोक्सकॉन के साथ भागीदारी की महत्वाकांक्षा जोकि 19 बिलियन डालर की है, उस पर गहरे बादल मंडरा जाएंगे। इस परियोजना पर विपक्षी राजनेता करीब से नजरें गड़ाए बैठे हैं।

जिन्होंने अंतिम समय में महाराष्ट्र से प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात में स्थापित होने पर सरकार की आलोचना की थी। इसके अलावा करदाताओं को चिप विनिर्माण इकाइयों की आधी लागत को वहन करना पड़ेगा। आर.बी.आई. के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने वेदांता की भागीदारी पर सवाल उठाए थे। ङ्क्षहडनबर्ग ने अडानी ग्रुप पर जोड़-तोड़ का आरोप लगाया था। ऐसी बातों के चलते निश्चित तौर पर वेदांता की प्रमुख पहल ऐसी सुर्खियों से अपने आप को दूर रखने की होगी क्योंकि वेदांता दूसरा अडानी नहीं बनना चाहेगा। -एंडी मुखर्जी (साभार ‘मिंट’)


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