ईरान से जंग में ‘सहज’ महसूस नहीं कर रहा अमरीका

Tuesday, May 21, 2019 - 03:05 AM (IST)

शायद आपने इस बात पर ध्यान न दिया हो, परन्तु अमरीका और ईरान के बीच युद्ध कुछ दिन पहले शुरू हो चुका है, जिसमें दुनिया का सबसे अधिक ताकत वाला देश सहज महसूस नहीं कर रहा। यह एक ऐसा युद्ध है जिसको लेकर राष्ट्रपति ट्रम्प उत्साहित नहीं हैं। इस युद्ध में चार लोगों की रुचि बताई जा रही है, जिनमें ईरान के विदेश मंत्री जवाद जरीफ के अनुसार ट्रम्प की ‘‘बी’’ टीम-बीबी नेतन्याहू, जॉन बोल्टन, बिन सलमान और बिन जायेद शामिल हैं। 

ईरान के रैवोल्यूशनरी गार्ड के प्रमुख ने ईरान की मजलिस में कहा, ‘‘निश्चित तौर पर होरमुज जलडमरूमध्य से सभी देशों के तेल के टैंकर गुजरेंगे लेकिन यदि ईरान के टैंकर इस रास्ते से नहीं जाएंगे तो किसी भी देश के नहीं जाएंगे।’’ निश्चित तौर पर वह सम्राट को चुनौती दे रहे हैं। संभावित योद्धाओं की ओर से कोई उत्तर नहीं आया है। अरब के दो ‘‘बी’’ चुप हैं। अमरीका को डर है कि ईरान से युद्ध करने से उसके आर्थिक हितों पर बुरा असर पड़ेगा। यदि ईरान की धमकी न हो तो क्षेत्र में अमरीका के हथियार कौन खरीदेगा। 

इसराईल दे रहा प्रोत्साहन
यदि युद्ध की यह आग भड़कती है तो दुनिया में स्पष्ट संकेत जाएगा कि इसराईल और केवल इसराईल ने अमरीका को युद्ध में धकेला है। कई सैन्य रणनीतिकार मानते हैं कि इस समय ईरान भी दंड देने के मूड में हो सकता है। संभव है कि वह उन घावों का बदला लेना चाहता हो जो रमजान के पहले दिन हमास के मिसाइल हमले में उसे लगे हैं। बेशक इसराईल ने पूरी मजबूती से इन हमलों का जवाब दिया लेकिन इससे गाजा को कोई खास नुक्सान नहीं हुआ।

ऐसा लगता है कि गाजा वासियों ने हिजबुला और ईरान की मदद से कुछ ऐसे यंत्र विकसित कर लिए हैं जिन्हें अजेय मिसाइल रक्षा प्रणाली कहा जा सकता है। आयरन डोम नामक यह प्रणाली राफेल एडवांस्ड डिफैंस सिस्टम्स तथा इसराईल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज की सहायता से निर्मित की गई है। इसराईल की सेना के लिए आयरन डोम की भेद्यता हतोत्साहित करने वाली है। आयरन डोम की कथित भेद्यता सावधानी के लिए प्रेरित करती है। यह प्रतिरोधक फैक्टर के तौर पर काम कर सकती है जिससे योद्धा पीछे हट जाएं और अरब ‘‘बी’’ टीम पीछे हटी हुई है। आखिरकार  फुजैराह के तट पर सऊदी अरब के दो टैंकरों पर हमला किया गया। इसके बावजूद वे चुप रहे। 

इस बीच अमरीकी गृह सचिव माइक पोंपियो इस उम्मीद में ब्रसेल्स पहुंचे कि वहां पर यूरोपीय नेताओं द्वारा तेहरान के खिलाफ कार्रवाई के लिए उनका स्वागत किया जाएगा। वह शायद यह भूल गए थे कि पिछले हफ्ते उन्होंने बर्लिन में एक मीटिंग के दौरान एंजेला मार्केल को इंतजार करवाया था। जर्मन लोग इंतजार करवाना पसंद नहीं करते। इस बात की भनक ब्रसेल्स भी पहुंच गई होगी लेकिन पोंपियो का गर्मजोशी से स्वागत नहीं होने का यही एकमात्र कारण नहीं था। अधिकतर देश ईरान के खिलाफ अमरीका द्वारा शिकंजा कसे जाने के खिलाफ थे। इस बात को लेकर भी चिंता थी कि  यदि यूरोपीय देशों ने ईरान का साथ नहीं दिया तो ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी समझौते को समाप्त करना शुरू कर देंगे। 

अमरीका को लताड़
अमरीका को यह बात सबसे ज्यादा चुभती है कि उसका कोई साथी देश उसको लताड़ लगाए। यू.के. के विदेश सचिव जैरेमी हंट ने ब्रसेल्स में इस तरह की बात कही। ‘‘हम दुर्घटना से शुरू होने वाली लड़ाई के खतरे को लेकर ङ्क्षचतित हैं।’’ पहला विश्व युद्ध भी सॢबयाई उग्रवादी द्वारा आर्कडयूक फर्डीनैंड को साराजेवो में मारे जाने की दुर्घटना को लेकर शुरू हुआ था। ईरानी रैवोल्यूशनरी गार्डों की नावों पर अमरीकी गुप्तचर एजैंसी द्वारा मिसाइलें देखे जाने के बाद कुछ बातें सामने आनी शुरू हुईं। इस समय ईरानियों को समझने में दो तरह की मुश्किल है : क्या यह ईरान द्वारा भड़काऊ स्थिति पैदा करना है अथवा उसकी ओर से रक्षात्मक पहल। इससे अधिक चिंताजनक गुप्तचर एजैंसियों की विश्वसनीयता है। 

किसी समय खुफिया सूचनाओं को लेकर सी.आई.ए. की काफी प्रतिष्ठा थी लेकिन अब वैसी स्थिति नहीं है। बहुत से मौकों पर सी.आई.ए. ने प्रशासन को गुमराह किया है। कोरिया युद्ध के दौरान अमरीकी खुफिया एजैंसी ने दावे के साथ कहा था कि चीन यालू नदी को पार नहीं करेगा? लेकिन उसने इसे पार किया। खुफिया एजैंसी ने यह भी दावा किया था कि सोवियत संघ और चीन वियतनाम की सहायता नहीं करेंगे। लेकिन उन्होंने सहायता की। यह सूची काफी लम्बी है। 

अपनी स्थिति पर अडिग रहे भारत
ट्रम्प को पूर्व राष्ट्रपति जिम्मी कार्टर की इस टिप्पणी पर विनम्रता दिखानी चाहिए कि ‘‘दुनिया के इतिहास में अमरीका सबसे ज्यादा युद्धोन्मादी देश है। यह बात उन्होंने जार्जिया में ट्रम्प के साथ एक चर्चा के दौरान कही।’’ राष्ट्रपति ट्रम्प ने कार्टर  के साथ बातचीत में चीन की बढ़ती अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता जताई। ट्रम्प ने कहा कि ‘‘चीन अमरीका से आगे बढ़ रहा है।’’

कार्टर ने उत्तर दिया, ‘‘1979 के बाद चीन ने किसी के साथ युद्ध नहीं किया है और हम हमेशा युद्ध में रत रहे।’’ कार्टर के शब्दों पर भारत को भी विचार करना चाहिए। एक समझदार शक्ति को अन्य देशों के साथ अपने रिश्तों में संतुलन बनाए रखना चाहिए और किसी अन्य देश को ईरान के साथ अपने रिश्तों में हस्तक्षेप की इजाजत नहीं देनी चाहिए जैसा कि अटल बिहारी वाजपेयी सहित भारत के सभी प्रधानमंत्री करते रहे हैं क्योंकि ईरान हमारा कुदरती सहयोगी है।-सईद नकवी

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