नीट जैसी धांधली रोकने के लिए कोचिंग माफिया के खिलाफ कार्रवाई हो

punjabkesari.in Tuesday, Jun 18, 2024 - 05:30 AM (IST)

एन.डी.ए. की गठबंधन सरकार को संसद के अधिवेशन में एन.टी.ए. विवाद पर कड़े सवालों का सामना करना पड़ सकता है। सोशल मीडिया में मजाक चल रहा है कि यह एक ऐसी परीक्षा है जिसमें परीक्षा के आयोजक ही फेल हो गए हैं। शुरूआत में सब कुछ पाक-साफ होने का दावा करने वाले शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अब 2 बड़ी गड़बडिय़ों को मान लिया है। पहला, गलत पेपर और दूसरा गलत तरीके से ग्रेस मार्क देना लेकिन पेपर लीक के बारे में वे कोई ठोस स्पष्टीकरण नहीं दे पाए, जिसके बारे में एन.डी.ए. शासित गुजरात और बिहार की पुलिस जांच कर रही है। 

गुजरात के गोधरा में पुलिस को कई अहम सबूत मिले हैं। वहां पर 16 परीक्षार्थी संदेह के घेरे में हैं, जिनमें से 11 अन्य राज्यों के हैं। उसी तरीके से बिहार में आर्थिक अपराध इकाई (ई.ओ.डब्ल्यू.) 11 छात्रों से पूछताछ कर रही है। मीडिया में मामला उजागर होने के बावजूद 27 दिन बाद भी एन.टी.ए. ने बिहार पुलिस को मूल प्रश्न पत्र नहीं भेजे हैं लेकिन नीट परीक्षा लेने वाली एन.टी.ए. गुजरात और बिहार की पुलिस के सवालों का जवाब नहीं दे रही। सरकार से सहयोग और जानकारी मिले तो आरोपियों के आपराधिक तंत्र का पर्दाफाश हो सकता है। 

दो और बड़े सवाल हैं, पहला-रजिस्ट्रेशन की तारीख को रिओपन क्यों किया गया? दूसरा-10 दिन पहले लोकसभा के चुनावों के रिजल्ट वाले दिन नीट के परिणाम क्यों  घोषित किए गए? आलोचकों के अनुसार लोकसभा के रिजल्ट के दिन के घालमेल से गड़बड़ी से जुड़े सभी विवादों को रफा-दफा करने की मंशा थी। मुख्य मुद्दों पर सरकार की चुप्पी और सही जवाब नहीं मिलने से बड़े पैमाने पर फेक न्यूज के प्रसार से एन.टी.ए. की छवि और दागदार हो रही है। करोड़ों बच्चों के भविष्य का निर्धारण करने वाले नीट को सुधारने का एक्शन प्लान अब ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता। 

कोचिंग माफिया की भूमिका : कुछ दिनों पहले सरकार ने नया नियम लागू करने की मंशा जाहिर की थी, जिसके अनुसार कोङ्क्षचग में 18 साल से कम उम्र के बच्चे एडमिशन नहीं ले सकते। सरकारी सूत्रों से प्रसारित ख़बरों के अनुसार विवाद और विरोध प्रदर्शन के पीछे कोचिंग की ताकतवर लॉबी का भी हाथ हो सकता है। लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि नीट में हो रही गड़बडिय़ों के पीछे एन.टी.ए. के भ्रष्ट अफसरों और ताकतवर कोचिंग संस्थानों की भूमिका है, जिसे नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। सी.बी.आई. जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर नई याचिका के अनुसार गुजरात के गोधरा में परीक्षा केन्द्र को चुनने के लिए दूर-दराज के कर्नाटक, ओडिशा, झारखंड आदि राज्यों में 26 छात्रों ने 10-10 लाख की घूस दी थी। इस मामले में अनेक टीचरों की गिरफ्तारी हुई है,  जिनके पास से 26 छात्रों की डिटेल मिली हैं। 

परीक्षा में पेपर लीक होना एक देशव्यापी मर्ज बन गया है। मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले में यह देखा गया कि सी.बी.आई. जांच से भी आरोपियों के तंत्र का पूरा खुलासा नहीं होता। कांग्रेस के अनुसार परीक्षा केन्द्र और कोङ्क्षचग सैंटर के नैक्सस में ‘पैसे दो पेपर लो’ का खेल खेला जा रहा है। इस वजह से करोड़ों युवाओं का भविष्य बर्बाद हो रहा है। इस बारे में कांग्रेस और यू.पी.ए. की दूसरी पार्टियों को यह समझने की जरूरत है कि उनके राज्यों में भी पेपर लीक की घटनाएं हुई हैं। कानून और व्यवस्था और पुलिस राज्यों का विषय है। इसके बावजूद यू.पी.ए. शासित राज्य सरकारें कोचिंग सैंटर और सरकारी अधिकारियों का तंत्र तोडऩे में विफल रही हैं। 

काऊंसलिंग में विलम्ब : परीक्षाओं को दोबारा करने की मांग का सरकार के साथ कई अभ्यर्थी समूह विरोध कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में 8 जुलाई की सुनवाई के पहले 6 जुलाई से काऊंसङ्क्षलग शुरू करने का क्या मकसद हो सकता है? सरकार अगर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के पहले ही काऊंसलिंग शुरू करना चाहती है तो मामले से जुड़े सभी आरोपों पर पारदर्शी जवाब और ठोस कार्रवाई होना जरूरी है। छोटे-छोटे मामलों में ई.डी. की जांच रिपोर्ट, पंचनामा और बयानों का विवरण सार्वजनिक हो जाता है। उसी तरीके से सरकार अगर कोशिश करे तो 8 जुलाई के पहले ही सभी दोषियों को चिन्हित करके उन्हें कठोर दंड दे सकती है। 

दो महीने पहले से ही गड़बडिय़ों की शिकायतें आने लगी थीं, लेकिन चुनावों में व्यस्त सरकारी अमले ने उन्हें नजरअंदाज कर दिया। अब सरकार और एन.टी.ए. के अधिकारी बोल रहे हैं कि कोर्ट के आदेश का पालन होगा। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने अमरीका में एक भाषण में कहा है कि जिन मामलों में सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए, उन्हें कोर्ट के पाले में ठेलना अच्छा नहीं है। इससे अदालतों में पैंडैंसी बढऩे के साथ संविधान में किए गए शक्तियों के विभाजन की व्यवस्था का हनन भी  होता है। अमरीका में राष्ट्रपति के लड़के को हथियार के मामले में फास्ट ट्राइल करके अदालत में सजा सुनाई गई लेकिन भारत में अन्य नेताओं के खिलाफ अदालत से सजा जल्द नहीं मिल पाती है। नीट से जुड़े  सभी मामलों में सरकार का जवाब, याचिकाकत्र्ताओं के प्रति जवाब, बहस और फैसले में लम्बा समय लग सकता है। अदालती कार्रवाई में ज्यादा जोर देने पर मामला डीरेल होने के साथ  काऊंसङ्क्षलग में विलम्ब हो सकता है। 

नीट परीक्षा में 24 लाख लोग शामिल हुए थे, इसलिए सभी पी.आई.एल. में अनेक अंतर्विरोध और चुनौतियां हैं। अलग-अलग मांगों से जुड़े याचिकाकत्र्ताओं के वकीलों में सहयोग और समायोजन के अभाव की वजह से अदालत में मजबूत और एकीकृत तरीके से पक्ष रखना मुश्किल होता है। सामान्यत: अपराध के मामलों में सरकार पीड़ित पक्ष का साथ देती है लेकिन नीट जैसे मामलों में सरकार को दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से आरोपियों का बचाव करना होता है। नीट की पहली बड़ी चुनौती में फेल या पास होने से युवाओं के मैरिट की मान्यता के साथ विकसित भारत के रोड मैप की सफलता का निर्धारण होगा।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट)
 


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