बचपन पर मंडराता खतरा
punjabkesari.in Sunday, Jun 11, 2023 - 05:06 AM (IST)

यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि इस प्रगतिशील दौर में भी बाल श्रम रुक नहीं रहा है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 10 श्रमिकों में से एक श्रमिक बच्चा है। बाल श्रम के विरोध में बने विभिन्न कानूनों के अतिरिक्त 2009 में बने ‘शिक्षा का अधिकार’ कानून के तहत भी बाल श्रम को बढ़ावा देने वाले लोगों को दंड का प्रावधान है। ‘शिक्षा का अधिकार’ कानून के तहत बच्चों को अपनी शिक्षा पूर्ण करने का अधिकार दिया गया है ताकि वे बाल श्रम से दूर रहकर अपनी इच्छानुसार भविष्य चुन सकें।
इसके बावजूद ग्रामीण और शहरी इलाकों में बालश्रम को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। अनेक जगहों पर अभी भी छोटी बच्चियों को घर के काम के लिए रखा जाता है तो छोटे बच्चों से दुकानों, खेतों और अन्य स्थानों पर काम कराया जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार पूरे विश्व में 152 मिलियन बच्चे बाल श्रमिक के रूप में काम कर रहे हैं, जिनमें से 7.3 फीसदी बच्चे भारत में बाल श्रमिक के रूप में कार्यरत हैं। विडम्बना यह है कि कोरोना काल ने बाल श्रमिकों को एक बड़े खतरे में डाल दिया है।
संयुक्त राष्ट्र चाहता है कि 2025 तक पूरे विश्व में बाल श्रम समाप्त हो जाएं लेकिन इस संबंध में मनुष्य के खोखले आदर्शवाद और संकुचित मानसिकता के कारण यह संभव नहीं लगता। कुल मिलाकर आज विभिन्न तौर-तरीकों से बचपन पर खतरा मंडरा रहा है। बाल श्रम के कारण आज अनेक बच्चे कुपोषण और विभिन्न बीमारियों से जूझ रहे हैं। अक्सर हम बाल श्रम का अर्थ बहुत ही सीमित संदर्भों में लगाते हैं। अगर बच्चों के दिमाग पर किसी भी रूप में कोई दुष्प्रभाव पड़ रहा है और उनके दिमाग को परम्परागत श्रम से अलग श्रम करना पड़ रहा है तो वह भी एक तरह का बाल श्रम ही है।
दु:खद यह है कि हम इस परम्परागत बाल श्रम पर तो ध्यान देते हैं लेकिन अपरम्परागत बाल श्रम पर ध्यान नहीं देते हैं। कुछ वर्ष पूर्व सैंटर फार एडवोकेसी एंड रिसर्च द्वारा जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि टी.वी. पर दिखाई जाने वाली हिंसा से बच्चों के दिलो-दिमाग पर प्रतिकूल असर पड़़ रहा है। रिपोर्ट में बताया गया था कि आज अनेक ऐसे बच्चे हैं जो भूत और किसी अन्य भटकती आत्मा के भय से प्रताडऩा की जिंदगी जी रहे हैं। सैंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च ने बच्चों पर मीडिया के कुप्रभाव का व्यापक सर्वेक्षण कराया था।
पांच शहरों में कराए गए इस सर्वेक्षण से यह निष्कर्ष सामने आया था कि हिंसा और भय वाले कार्यक्रमों के कारण बच्चों के दिलो-दिमाग पर गहरा असर पड़़ रहा है। शोधकर्ताओं का मानना है कि ऐसे कार्यक्रमों से बच्चों पर गहरा भावनात्मक असर पड़ता है जो आगे चलकर उनके भविष्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इस सर्वेक्षण में यह निष्कर्ष निकाला गया कि 75 फीसदी टीवी कार्यक्रम ऐसे हैं जिनमें किसी न किसी तरह की हिंसा जरूर दिखाई जाती है। इन कार्यक्रमों से बच्चों पर गहरा मनोवैज्ञानिक एवं भावनात्मक असर पड़ता है।
सस्पैंस, थ्रिलर, हॉरर शो और सोप ओपेरा देखने वाले बच्चे जटिल मनोवैज्ञानिक समस्याओं से प्रभावित हो जाते हैं। इस समय भारत समेत दुनिया भर के बच्चों पर तमाम तरह के खतरे मंडरा रहे हैं। विडम्बना यह है कि अब जलवायु परिवर्तन भी बच्चों को अपना शिकार बना रहा है। पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के 2.3 अरब बच्चों में से लगभग 69 करोड़ बच्चे जलवायु परिवर्तन के सबसे अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जिसके चलते उन्हें उच्च मृत्यु दर, गरीबी और बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है।
लगभग 53 करोड़ बच्चे बाढ़ और उष्णकटिबंधीय तूफानों से सर्वाधिक प्रभावित देशों में रहते हैं। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में करीब 70 करोड़ बच्चे कुपोषण की चपेट में हैं। यह जरूर है कि वैश्विक स्तर पर कुपोषित बच्चों की संख्या में पहले की अपेक्षा कमी आई है लेकिन लैंसेट की एक रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य में कुपोषण की स्थिति और खतरनाक होने की सम्भावना व्यक्त की गई है। बीमारी के साथ-साथ ऐसे अनेक कारण हैं जिनके कारण बीमार बच्चों का समय से ठीक होना सम्भव नहीं हो पाता।
कई बार ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं भी ठीक ढंग से उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। दूसरी तरफ पिछड़े इलाकों में स्वच्छ पेयजल और साफ-सफाई का भी अभाव रहता है। जलवायु परिवर्तन इन्हीं सब कारकों को बढ़ाकर बच्चों के लिए अनेक समस्याएं पैदा करता है। गौरतलब है कि आज की महानगरीय जीवन शैली में माता और पिता दोनों ही अपने-अपने कामों में व्यस्त रहते हैं ऐसे में भी बच्चों की उचित एवं सम्पूर्ण देखभाल प्रभावित होती है। बच्चों को आया या नौकर के सहारे छोड़़ दिया जाता है। दरअसल इस बदलते माहौल और गलाकाट प्रतिस्पर्धा के वातावरण में ढलने के लिए बच्चा जिस तरह से संघर्ष कर रहा है, वह भी बाल श्रम ही है। -रोहित कौशिक