राजनीति में एक सप्ताह काफी लम्बा समय माना जाता है

punjabkesari.in Monday, Apr 21, 2025 - 04:31 AM (IST)

वर्ष के अंत में होने वाले बिहार चुनाव काफी अप्रत्याशित हैं। फिलहाल, भाजपा, राजद या जद (यू) के लिए कोई आसान रास्ता नहीं है। राजनीतिक दल चुनावों का सामना करने के लिए कमर कस रहे हैं। बिहार की राजनीति में चुपचाप मंथन चल रहा है। सत्ता गतिशीलता में संभावित बदलाव हो सकता है। पिछले 2 दशकों से जद (यू) के बाद दूसरे स्थान पर रही भाजपा अब प्रमुख भूमिका पर नजर गड़ाए हुए है। राजद सरकार बनाना चाहती है। 2 महत्वपूर्ण शक्ति समूह लड़ाई में हैं। एक तरफ एन.डी.ए. और दूसरी तरफ महागठबंधन जिसमें राजद, कांग्रेस और वामपंथी दल शामिल हैं। पार्टी के अंदर और बाहर की गतिविधियां जोरों पर हैं। एन.डी.ए. और महागठबंधन एक उच्च-दाव राजनीतिक टकराव के लिए सोची-समझी चालें चल रहे हैं। उन राज्यों में लगातार जीत से उत्साहित, जहां संभावनाएं उसके खिलाफ थीं, दिल्ली जीतने के बाद अब भाजपा ने बिहार पर नजरें गड़ा दी हैं।

बिहार की जातिगत राजनीति दिलचस्प है। पिछड़े वर्गों की जनसंख्या 63.13 प्रतिशत है तथा उच्च जाति की जनसंख्या केवल 15.52 प्रतिशत है। अन्य पिछड़ा वर्ग, पिछड़ा वर्ग श्रेणी का 27.12 प्रतिशत है, जबकि अत्यंत पिछड़ा  वर्ग की जनसंख्या 36 प्रतिशत है। दलितों की संख्या लगभग 19.65 प्रतिशत है और यादवों की संख्या 14.26 प्रतिशत है। नीतीश कुमार की कुर्मी जाति, जिसे ओ.बी.सी. के रूप में भी वर्गीकृत किया गया है, जनसंख्या का 2.87 प्रतिशत है। पिछले विधानसभा चुनावों में, लगभग 15 प्रतिशत आबादी वाली उच्च जातियों ने कई पार्टियों में टिकट वितरण पर अपना दबदबा कायम रखा।

भाजपा ने 47.3 प्रतिशत टिकट ऊंची जाति के उम्मीदवारों को दिए, जबकि कांग्रेस ने 40 प्रतिशत सीटें ऊंची जातियों को दीं। 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में, महागठबंधन को 243 सदस्यीय विधानसभा में साधारण बहुमत नहीं मिला, वह सिर्फ 12 सीटों से चूक गया। राजद सदन में सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन सरकार नहीं बना सकी। 2025 के चुनावों के लिए जद (यू) ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया है। जाने-माने चुनाव विशेषज्ञ प्रशांत किशोर ने भविष्यवाणी की है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने राजनीतिक करियर के अंतिम चरण में हैं। वहीं, राजद ने अपने नेता तेजस्वी यादव को चुना है। कांग्रेस ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। कांग्रेस और राजद के बीच बैठकों का दौर जारी रहा। जद (यू) और भाजपा गठबंधन वर्तमान में बिहार में शासन कर रहे हैं। 

नीतीश कुमार का बिगड़ता स्वास्थ्य, जातिगत संतुलन और गठबंधन की कार्यप्रणाली-ये कारक, विशेषकर नीतीश कुमार का गिरता स्वास्थ्य, बिहार को राजनीतिक रूप से अप्रत्याशित बनाते हैं। यदि भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री चुनती है, तो भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण भीड़ से प्रभावी ढंग से जुडऩे में उनकी असमर्थता चुनाव परिणाम को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती है। जद (यू) भाजपा के साथ अधिक सीटों के लिए सौदेबाजी करना चाहती है। 2020 में, जद (यू) ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 43 पर जीत हासिल की।  इसके विपरीत, भाजपा ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा और 74 पर जीत हासिल की। राजद, कांग्रेस और कुछ छोटे दलों वाले महागठबंधन ने कड़ा विरोध किया। गठबंधन को आगे बढ़ाने के लिए पिछले सप्ताह दिल्ली में राजद और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की बैठक हुई थी। 

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 2 दिनों के बिहार दौरे पर आए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आगामी 24 अप्रैल 2025 को मधुबनी दौरा है, जहां उन्होंने नीतीश कुमार को ‘करेला मुख्यमंत्री’ कहा। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने एक आश्चर्यजनक घोषणा करते हुए कहा कि वह अपने समाजवादी सहयोगी नीतीश कुमार के साथ सुलह करने के लिए तैयार हैं। जवाब में नीतीश ने कहा कि उन्होंने अनजाने में राजद के साथ गठबंधन कर लिया था। हालांकि, तेजस्वी यादव ने कहा कि महागठबंधन में नीतीश के लिए कोई जगह नहीं है। भारतीय विपक्षी ब्लॉक ने  राजद  नेता और बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के लिए अपनी समन्वय समिति का प्रमुख नियुक्त किया है। यह निर्णय 17 अप्रैल को पटना में गठबंधन के 6 सहयोगियों की बैठक के दौरान लिया गया।

महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और वामपंथी दल इस बात से चिंतित हैं कि राजद सीट बंटवारे पर अंतिम निर्णय लेने के लिए अंतिम क्षण तक इंतजार करेगी। कांग्रेस पार्टी 2020 में उन्हें दिए गए कमजोर निर्वाचन क्षेत्रों से नाखुश है। पिछले चुनाव में उन्होंने 70 सीटों में से केवल 19 पर जीत हासिल की थी। सी.पी.आई. (एम.एल.), जिसने 2020 में अच्छा प्रदर्शन किया था, सीटों का बड़ा हिस्सा चाहती है। 2005 के बाद से, 2015 और 2022 की छोटी अवधि को छोड़कर, राजद को सत्ता हासिल करने में कठिनाई हो रही है। फिलहाल तेजस्वी यादव के सामने 2 मुख्य कार्य हैं। सबसे पहले, उन्हें अपने समर्थन को मुस्लिम और यादवों के मूल समूहों से आगे बढ़ाकर अन्य जातियों तक पहुंचाना होगा। इसमें एक मजबूत जमीनी स्तर का अभियान शामिल है। यह अब विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि पारंपरिक मतदान की प्रवृत्तियां बदल रही हैं।

मुख्य दलों को अपने समूहों के भीतर और बाहर दोनों तरफ से चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है तथा एक महत्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तन की उम्मीद है। ध्यान देने वाली बात यह है कि नीतीश कुमार का ई.बी.सी. एकजुट है और राजद-सह-कांग्रेस गठबंधन को चुनौती दे रहा है। नवंबर से पहले और भी कई बदलाव हो सकते हैं। उन्हें देखना दिलचस्प होगा। राजनीति में एक सप्ताह काफी लम्बा समय माना जाता है। 6 महीने वास्तव में बहुत लंबा समय है।-कल्याणी शंकर
 


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