अहिंसक संघर्ष का यह चरित्र स्थायी बनाना होगा

punjabkesari.in Tuesday, Aug 20, 2024 - 05:07 AM (IST)

यह पहली बार है जब बंगलादेश में हिंदुओं और उनके धर्मस्थलों पर हुए हमले के विरुद्ध पूरी दुनिया में आक्रोश प्रदर्शन देखा गया। स्वयं बंगलादेश में भी भारी संख्या में हिंदू सड़कों पर उतरेंगे, इसकी भी कल्पना नहीं थी। इसी का परिणाम हुआ कि बंगलादेश की वर्तमान अंतरिम सरकार की ओर से औपचारिक रूप से हिंदुओं से माफी मांगी गई तथा कहा गया कि हम आपकी हर हाल में रक्षा करेंगे। बंगलादेश की राजधानी ढाका में जैसे हिंदुओं का जन-सैलाब उमड़ पड़ा हो। स्त्री-पुरुष, बच्चे-जवान, वयस्क-बुजुर्ग सबको सड़कों पर प्रदर्शन करते, नारा लगाते, वक्तव्य देते देखकर लग रहा था कि उनके अंदर संघर्ष करने और अपना अधिकार पाने का जज्बा बना हुआ है। 

प्रदर्शन में महिलाएं भी नेतृत्व करती दिखीं। सच यही है कि अगर बंगलादेश के हिंदुओं ने साहस नहीं दिखाया होता तो उनको विश्व का जन-समर्थन नहीं मिलता। वहां की तस्वीरें और वीडियो किसी को भी रोमांचित करती हैं। इसके साथ भारत में भी अलग-अलग शहरों में प्रदर्शन शुरू हुआ जो चल रहा है। सबसे बड़ा प्रदर्शन नारी शक्ति के नेतृत्व में दिल्ली के मंडी हाऊस से जंतर-मंतर तक 16 अगस्त को हुआ। भारत के बाहर अमरीका, इंगलैंड, फ्रांस, कनाडा और न जाने किन-किन देशों के हिंदुओं ने सड़कों पर उतर कर बंगलादेश के हिंदुओं के साथ एकता दर्शाई तथा अपने-अपने देश से मांग की कि वहां शेख हसीना की सत्ता उखाड़ फैंकने के बाद शासन चलाने वालों पर दबाव बढ़ाया जाए। इसका प्रभाव भी हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ ने हिंदुओं पर हमले रोकने की मांग की तो अमरीका व कुछ अन्य देशों का भी ऐसा ही बयान आया। 

हालांकि भारत ने शेख हसीना के बंगलादेश छोड़कर यहां आने के बाद से ही अपना स्टैंड बिल्कुल स्पष्ट रखा। संसद में दिए बयान में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हिंदुओं पर हो रहे हमलों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हम वहां की अथॉरिटी से संपर्क में हैं। पूरे बयान में यह निश्चयात्मक भाव था कि वहां गैर मुस्लिमों, विशेषकर हिंदुओं, बौद्धों, सिखों आदि पर हो रहे हमलों को रोकने के लिए भारत जो कुछ संभव है करेगा। जब मोहम्मद यूनुस कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई में ही हिंदुओं पर हो रहे हमलों का जिक्र करते हुए उम्मीद जताई कि नई सरकार उसे रोकेगी। 

मोदी सरकार ने 2019 में ही अपने 3 पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश के गैर मुसलमानों की धार्मिक प्रताडऩा को आधार बनाकर ही नागरिकता संशोधन कानून बनाए, जो इसके प्रति वर्तमान भारत की प्रतिबद्धता दर्शाता है। हालांकि कुछ सीमांत इलाकों में बंगलादेशी हिंदू भारत में प्रवेश करने के लिए भी पहुंच गए। इससे यह संकेत मिला कि यदि आगे स्थिति बिगड़ी तो भारत को इसके संबंध में स्पष्ट नीति और तैयारी रखनी पड़ेगी। जैसी जानकारी है, भारत सरकार लगातार बंगलादेश सरकार के अलावा वहां के संगठनों, प्रमुख धार्मिक संस्थाओं तथा वैश्विक एजैंसियों व प्रमुख देशों के साथ भी इस मामले पर संपर्क में है। बंगलादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान का चरित्र इस मामले में भयावह रहा है। बंगलादेश में 1951 में हिंदुओं की आबादी लगभग 22 प्रतिशत थी। 

2011 तक यह घटकर लगभग 8.54 प्रतिशत रह गई। बंगलादेश की समाचार वैबसाइट ‘डेली स्टार’ के अनुसार 2022 में भारत के इस पड़ोसी देश की आबादी साढ़े 16 करोड़ से कुछ ज्यादा थी, जिसमें 7.95 प्रतिशत हिंदू थे। वैसे संख्या के हिसाब से देखें तो हिंदू वहां 1 करोड़, 31 लाख (13.1 मिलियन) हैं। धार्मिक उत्पीडऩ, जबरन धर्म परिवर्तन, संपत्तियों पर कब्जा आदि पाकिस्तान, बंगलादेश और अफगानिस्तान में समान रहा है। शेख हसीना के कार्यकाल में भी हिंदू लगातार धार्मिक उत्पीडऩ और हिंसा के शिकार रहे हैं। इन देशों में एक पूरा ढांचा मजहबी कट्टरवाद का है, जिनके लिए गैर इस्लामिक काफिर हैं और उनको इस्लाम के अंदर लाने या न आने पर प्रताडि़त करना वे अपना मजहबी दायित्व समझते हैं। यह आम समाज से लेकर सत्ता तक विस्तारित है। शेख हसीना शासन में हिंदू लगातार हमले के शिकार हुए। यहां तक कि जिस बैनर से छात्र आंदोलन हुए, उसके लोग भी हमले, तोडफ़ोड़, आगजनी और लूट के साथ हिंदू बच्चियों और लड़कियों को उठाकर ले जाते पाए गए। 

बंगलादेश के हिंदुओं ने जैसा प्रदर्शन किया है, निश्चित रूप से वहां गठित की गई वर्तमान अंतरिम सरकार को भी इसकी कल्पना नहीं होगी। आखिर आज तक जो नहीं हुआ, वह आगे होगा, इसकी कल्पना कैसे की जा सकती है। या तो इसे ‘मरता क्या न करता’ का परिणाम कहा जाए क्योंकि हिंदुओं एवं अन्य अल्पसंख्यकों के पास कोई चारा ही नहीं बचा था। दूसरी ओर पिछले 10 वर्षों में भारत के चरित्र में आए परिवर्तन तथा दुनिया भर में इसके प्रभाव को भी नकारा नहीं जा सकता। इस स्थिति ने ही विश्व भर के हिंदुओं और इनसे जुड़े समुदायों के अंदर आत्मविश्वास, आत्मसम्मान और आत्मबल पैदा किया है। 

ध्यान रखिए कि बंगलादेश के हिंदू समुदाय ने कहीं भी हिंसा का प्रत्युत्तर हिंसा से नहीं दिया। यही स्थिति अन्य जगहों पर भी है। अनुभव बताता है कि जो भी समाज अपनी सुरक्षा के लिए उठकर खड़ा नहीं होता, उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता। यह कमजोरी अगर दूर हुई है तो इसे भविष्य की दृष्टि से हिंदुओं के लिए अच्छा संकेत और संदेश माना जाना चाहिए। बंगलादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में धार्मिक असहिष्णुता और इसके आधार पर भेदभाव व हिंसा खत्म करने के लिए लंबे संघर्ष और परिवर्तन की आवश्यकता है। 

वैसे भी शेख हसीना की सत्ता को उखाड़ फैंकने के लिए जिन शक्तियों के बीच घोषित-अघोषित गठजोड़ हुआ, उनमें पाकिस्तान समर्थक कट्टरपंथी मजहबी हिंसक तत्व भी शामिल हैं। किंतु अहिंसक तरीके से और प्रखर होकर अपनी भावना सामूहिक तौर पर अभिव्यक्त करने का असर होता है। गृह मंत्रालय के प्रमुख ब्रिगेडियर जनरल (सेवानिवृत्त) मुहम्मद सखावत हुसैन अगर सार्वजनिक रूप से कह रहे हैं कि हिंसा में अनेक स्थानों पर हिंदुओं पर हमले हुए, उसके लिए सरकार को खेद है और इस हिंसा में जिन लोगों को नुकसान हुआ और जो मंदिर तोड़े या जलाए गए हैं उनकी क्षतिपूर्ति और निर्माण के लिए सरकार आर्थिक सहायता देगी, तो अतीत को देखते हुए यह सामान्य परिवर्तन नहीं है। 

उनकी पंक्ति देखिए, ‘‘हम आपकी रक्षा करने में विफल रहे हैं और इसके लिए हमें खेद है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने देश के सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करें लेकिन हम इसमें असफल रहे हैं। यह जिम्मेदारी केवल सरकार की नहीं, बल्कि देश के बहुसंख्यक समुदाय की भी है। हमारा कत्र्तव्य है कि हम अपने अल्पसंख्यकों की रक्षा करें, ये हमारे मजहब का भी हिस्सा हैं।’’ यहीं पर आगे वे क्षमा भी मांगते हैं, ‘‘मैं अपने अल्पसंख्यक भाइयों से क्षमा चाहता हूं। हम अराजकता के दौर से गुजर रहे हैं। मैं पूरे समाज से आग्रह करता हूं कि आप उनकी रक्षा करें, वे हमारे भाई हैं और हम सब एक साथ बड़े हुए हैं।’’ 

उन्होंने आगे हिंदुओं के धार्मिक उत्सवों या पर्व-त्यौहारों के समय पूरी सुरक्षा का आश्वासन भी दिया है। देखना होगा कि वाकई अंतरिम सरकार किस सीमा तक अपने इस वचन का पालन करती है क्योंकि बंगलादेश का आंतरिक ढांचा काफी हद तक कट्टरपंथियों के प्रभाव में रहा है, जिसे शेख हसीना भी पूरी तरह खत्म नहीं कर पाईं। किंतु ङ्क्षहदू, सिख, बौद्ध, जैन इसी तरह सतत् अपने अंदर संघर्ष के लिए खड़ा होने का चरित्र विकसित कर लें, जो अभी दिखाई दिया है, तो परिवर्तन अवश्य होगा।-अवधेश कुमार
 


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