आम नहीं बेहद खास होगा यह बजट

punjabkesari.in Tuesday, Jul 23, 2024 - 05:12 AM (IST)

इस बार बजट पर सबकी निगाहें हैं। दरअसल, बजट के पीछे कई अदृश्य या छिपे हुए राजनीतिक कारण भी हैं जिनसे लगता है कि इस सरकार के पहले दो कार्यकाल के मुकाबले, तीसरे का बजट अलग होगा ही। वाकई, गठबंधन धर्म को निभाते हुए पेश होने वाला यह 13वां बजट अहम होगा। रक्षा,  रेल, स्वास्थ्य, शिक्षा, गांव, सड़क, हवाई सेवाओं पर तो हमेशा की तरह फोकस रहेगा। लेकिन प्रमुख सहयोगियों के लिए अलग से क्या कुछ होगा वही देखने लायक होगा। यकीनन बजट आम होकर भी बेहद खास होगा। पहली बार मोदी की 3.0 सरकार सहयोगियों को साधने की कवायद में दिखेगी। सरकार पर केंद्रीय कर्मचारियों और पैंशनभोगियों के लिए 8वें वित्त आयोग के क्रियान्वयन की घोषणा और पुरानी पैंशन योजना यानी ओ.पी.एस. की बहाली तथा कोविडकाल 2019 के दौरान रोकी गई राहत और रियायत बहाली का दबाव भी होगा। वरिष्ठ नागरिकों व पत्रकारों को मिलने वाली रेल रियायत पर भी पुर्निविचार का दबाव है। ये सुविधाएं महज आम लोगों से छिनी हैं, खास से नहीं। 

किसान क्रैडिट कार्ड यानी के.सी.सी. की लिमिट बढ़ सकती है। अभी 3 लाख तक कृषि लोन पर 7 प्रतिशत देय ब्याज का 4 प्रतिशत ही देना पड़ता है जबकि 3 प्रतिशत ब्याज की सरकारी सबसिडी है। इसकी सीमा 7 लाख तक हो सकती है। किसानों के साथ-साथ राजनीतिक मुद्दा बन चुके एम.एस.पी. पर भी बड़ी घोषणाएं संभावित हैं। इससे किसानों की आय दोगुना करने के बार-बार टूटे भरोसे से हुई किरकिरी पर मरहम लग सकता है। गरीब व मध्यम वर्ग पर भी खास फोकस तय है। प्रधानमंत्री आवास योजना का दायरा बढ़ेगा तो मध्यम वर्ग के लिए भी नई हाऊसिंग स्कीम आ सकती है।

गौरतलब है कि मोदी.02 सरकार के फरवरी 2024 के अंतरिम बजट में वित्त वर्ष 2024-25 के लिए राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद यानी जी.डी.पी. का 5.1 प्रतिशत का अनुमानित था। अब पूर्ण बजट में इसे 4.9-5 प्रतिशत तक लाने की जुगत होगी। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार 11.1 लाख करोड़ रुपए के कैपिटल एक्सपैंडीचर लक्ष्य से समझौता किए बिना घाटा अनुमान कम कर सकती है। वृद्धिशील राजस्व प्राप्तियों को राजस्व व्यय बढ़ाने और राजकोषीय मजबूती खातिर विभाजित किया जा सकता है। राजकोषीय घाटे को कम करने हेतु तमाम कोशिशें और कड़े फैसले भी संभव हैं। सरकार के कुल राजस्व और कुल व्यय के बीच के अंतर को राजकोषीय घाटा कहते हैं जो जरूरी कुल उधारी का संकेत है। 

एस.बी.आई. रिसर्च का भी सुझाव है कि सरकार को 4.9 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे का लक्ष्य रखना चाहिए तथा राजकोषीय रुझान पर अत्यधिक ध्यान की जरूरत नहीं है। कई बैठकों और बयानों से तो साफ  लगता है कि वित्तीय वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद के 4.5 प्रतिशत से नीचे लाने का है। लेकिन देखने लायक यह होगा कि इसके लिए कैसे प्रबंध इस बजट में होंगे ताकि सर्वसाधारण की उम्मीदों के अनुरूप हों। एस.बी.आई. रिसर्च के मुताबिक सरकार को राजकोषीय विवेक पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और राजकोषीय समेकन यानी फिस्कल कनसॉलिडेशन के रास्ते आगे बढऩा चाहिए। बजट में सबसे अहम टैक्स स्लैब होता है जिसमें बदलाव की सभी को उम्मीद रहती है। अभी धारा 80-सी के तहत टैक्स में कटौती सीमा 1.5 लाख रुपए है। इसमें 2014-15 के बाद  कोई बदलाव नहीं हुआ। संभव है कि इसे 2 लाख रुपए या कुछ अधिक कर दिया जाए। नौकरीपेशा वेतनभोगियों का स्टैंडर्ड डिडक्शन बढ़ाकर 1 लाख रुपए भी संभव है। अभी टैक्सेबल वेतन पर 50,000 रुपए है। 2019 से पहले तो 40,000 रुपए ही था। हाऊस रैंट अलाऊंस यानी एच.आर.ए. में भी शहरों की कैटेगरी के हिसाब से टैक्स में छूट मिलती है। नए बजट में 50 प्रतिशत छूट वाले दायरे में नए शहर भी आ सकते हैं। 

बड़ी उम्मीद है कि पुरानी कर व्यवस्था में भी छूट सीमा बढ़ाकर 5 लाख रुपए तक कर दी जाए। एक तो बेकाबू महंगाई ऊपर से टैक्स का भारी बोझ ऐसे में सभी वर्गों को राहत की दरकार है। प्रमुख सहयोगी दोनों बाबू अपनी-अपनी बीन बजाते दिख रहे हैं। लेकिन सवाल वही कि मौजूदा सरकार के सामने गठबंधन धर्म की असल परीक्षा भी है। इस बार युवाओं की निगाहें बजट पर ज्यादा हैं। देश में रोजगार के हालात और परीक्षाओं में धांधलियों के एक से एक कारनामों की सच्चाई से युवा सशंकित हैं। इसके परिणाम भी भाजपा ने हाल के आम चुनावों में देखे। अब बजट में युवाओं को कैसे साधा जाएगा, यह देखने लायक होगा। नया बजट पेश करते ही वित्त मंत्री सीतारमण पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का वह  रिकॉर्ड भी तोड़ देंगी जिसमें उन्होंने बतौर वित्त मंत्री (1959 से 1964 के बीच) 5 वार्षिक बजट और एक अंतरिम बजट पेश किया था। इसका असर शेयर मार्कीट पर दिखना तय है। पूरे देश-विदेश की निगाहें गठबंधन धर्म को निभा कर हो रहे आम बजट पर हैं क्योंकि यह दुनिया में बड़ी आबादी वाले 65 प्रतिशत युवाओं के उस देश का बजट है जिसने रोजगार और आॢथक क्षेत्र में लंबी छलांग लगाने के सपने संजोए हुए हैं। इंतजार कीजिए बस थोड़ी-सी कसर बाकी है।-ऋतुपर्ण दवे
 


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