कोई भी पुरुष देवता नहीं होता

punjabkesari.in Sunday, Aug 25, 2024 - 05:14 AM (IST)

पिछले दिनों हुई कई गैंग रेप की घटनाएं देश के लिए दर्दनाक और शर्मनाक घटनाएं हैं। बंगाल में गैंग रेप की घटना इतनी भयानक है कि रूह कांप जाती है, महिला होने से भी डर लगता है। पूरा देश त्राहि-त्राहि कर रहा है। पी.जी.आई.चंडीगढ़ और देशभर में हड़तालें चल रही हैं। डाक्टर और नर्स सभी डरे हुए हैं। दिसंबर 2012 में दिल्ली में एक लड़की के साथ 6 लोगों द्वारा सामूहिक बलात्कार और हत्या के निर्भया मामले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। इस घटना के बाद भी ऐसे जघन्य अपराध के लिए मौत की सजा का सख्त प्रावधान किया गया। लेकिन यह देश का दुर्भाग्य है कि बलात्कार जैसी घटनाओं के खिलाफ फांसी की सजा के प्रावधान के बावजूद न केवल देश में महिलाओं के खिलाफ आपराधिक आंकड़े बढ़े हैं, बल्कि बलात्कार और हत्या जैसी घटनाओं में भी कोई कमी नहीं आई है। 

ऐसी घटनाओं के लिए सिर्फ राजनीतिक दलों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। करीब 90 फीसदी समाज में हमारा समाज, सामाजिक ढांचा आज भी पुरुषों को ज्यादा प्राथमिकता देता है। हमारे समाज की इसी भावना ने हमें बहुत बर्बाद किया है। महिलाओं और बेटियों को नीचा दिखाना और पुरुषों को समाज का अधिक महत्वपूर्ण सदस्य माना जाता है। 58 साल की उम्र में भी मैं इस भावना से ग्रस्त रहती हूं और सोचती हूं कि समाज की महिलाओं को यह हर दिन होता होगा। मेरी इकलौती बच्ची भी डाक्टर है, जब वह रात में ड्यूटी पर जाती थी तो मुझे और मेरे पति को नींद नहीं आती थी। हम रात 2 बजे भी उसका हालचाल पूछने अस्पताल जाते थे। मैं समझती हूं कि सभी माता-पिता हमारी तरह चिंतित होंगे कि उनकी बेटी जो लगातार 19-19 घंटे पढ़ाई करती है और लोगों की सेवा करने का जज्बा रखती है, उसकी सुरक्षा तो बनती है। दरअसल, घर में पैदा होने वाले लड़के को हम कुछ नहीं सिखाते, बस पुरुष होने से ही वह घर का प्रमुख बन जाता है। एक बच्चे के रूप में, वह अपनी बहनों से लेकर अपनी मां तक वह शासन करता है और जब वह बड़ा होता है, तो वह अपनी पत्नी और बच्चों की सारी पारिवारिक संपत्ति का मालिक बन जाता है। 

हमारी शिक्षा प्रणाली में बड़े सुधारों की जरूरत है। हमारी शिक्षा व्यवस्था में समाज में सोच-विचार के बारे में कुछ भी नहीं सिखाया जाता, जो लड़की समानता के अधिकार के लिए लड़ती है, वह लड़ती-लड़ती औरत बन जाती है। क्या कभी किसी पुरुष को अपने अधिकार के लिए लडऩे की जरूरत पड़ी? दिमाग पर उतना ही बोझ डालो जितना सदियों से इसकी उत्पत्ति हुई है। मुझे लगता है कि इसका कारण यह है कि पुरुषों में महिलाओं की तुलना में अधिक शारीरिक शक्ति होती है। लेकिन मानसिक और सहनशक्ति की दृष्टि से महिलाएं पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक मजबूत होती हैं। एक महिला केवल शारीरिक रूप से ही पुरुष से कमजोर होती है। भले ही गुरु नानक जैसे महापुरुषों ने महिलाओं के पक्ष में कहा हो, ‘सो क्यों मंदा आखिए, जित जम्मे राजन’ लेकिन फिर भी हम हर क्षेत्र में काम करते हुए भी बहुत पीछे और कमजोर हैं। अगर हम भारतीय पुरुष की बात करें तो भारतीय पुरुष अपने मन में खड़ा-खड़ा ही स्त्री का बलात्कार कर दे। 

जैसे-जैसे शरीर मजबूत होता जाता है,वैसे-वैसे उसकी बुद्धि और उग्रता भी बढ़ती जाती है। जब तक घरों में अच्छे संस्कार और नियम होते हैं, तब तक वे लोग अच्छे होते हैं। लेकिन जहां मार-पिटाई, गाली-गलौच और बुरे शब्द बोले जाते हैं, वहां इंसान भी पतित होकर जानवर बन जाता है। मुझे लगता है कि मुफ्त में रोटी बांटने से पहले कम से कम स्कूल में सामाजिक शिक्षा देेना बहुत जरूरी है। जिसमें अभिभावकों को भी पाठ पढ़ाया जाए और जो लोग शिविर में जाते हैं या मुफ्त भोजन पाते हैं उन्हें बैठकर सामाजिक शिक्षा के बारे में एक वीडियो देखने के लिए कहा जाए। 21वीं सदी में हम दुनिया के सबसे अमीर देशों में से एक बनने जा रहे हैं। लेकिन सोच बदलना बहुत जरूरी है अक्सर बात ड्रैस पर आकर खत्म हो जाती है। मैं दुनिया के कई देशों में गई हूं और देखा है कि बुर्के में रहने वाली महिलाओं के साथ भी बलात्कार होता है। अमरीका, कनाडा या इटली जैसे देशों में सड़क पर बिकनी पहनकर चलने वाली लड़कियों को कोई तुच्छ नहीं समझता। कोई आपत्तिजनक टिप्पणी नहीं करता। ब्राजील जैसे गरीब और कम पढ़े-लिखे देश में महिलाओं को पूरी आजादी है और समानता का अधिकार है। 

हम जो अति धार्मिक हैं, धर्म के बड़े ठेकेदार कहलाते हैं। क्या हमारे मदरसों में कोई सामाजिक शिक्षा भी दी जाती है? बस यही सिखाया जाता है कि हमारा धर्म सबसे अच्छा है और बाकी सब काफिर हैं। महिलाओं का अपमान करना ही सिखाया जाता है। मंदिर और गुरुद्वारे सिखाते हैं कि महिलाओं को समान अधिकार हैं, जितना कि गुरु ग्रंथ साहिब और गीता महिलाओं का सम्मान करने के लिए कहते हैं, लेकिन क्या इस अवधारणा को आम जीवन में माना जाता है या नहीं? क्या आपने कभी किसी पुजारिन को किसी बड़े मंदिर में या ग्रंथी सिंहनी गुरु के घर में देखी है? मैं समाज और धर्म के ठेकेदारों से पूछना चाहती हूं कि आप, जिन्होंने पुरुष और महिला के बीच यह अंतर पैदा किया है, इसे कब बराबर होने देंगे। महिलाएं कब आगे बढ़ेंगी और समान अधिकार देंगी? अक्सर धर्म और समाज के ठेकेदार यह कहते सुने जाते हैं, ‘शर्म तो आंखों में होती है’ क्या यह शर्म पुरुषों के लिए नहीं है या सिर्फ महिलाओं के लिए है जिन्हें हर हाल में अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ता है? 

सुझाव : हालांकि डाक्टरों की सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जता चुका है, लेकिन मेरा मानना है कि ऐसे बुरे समय में देश की सरकार को एन.जी.ओ. और राजनीतिक दलों के साथ मिलकर हर गांव-शहर, हर गली-मोहल्ले में एक कार्यक्रम बनाना चाहिए। पुरुष को सख्ती से डांटना और समझाना चाहिए और उसे महिला का सम्मान करने और महिला को सुरक्षित रखने का जरिया बनाना चाहिए। छोटे पैमाने पर ‘सामाजिक सुधार’ अभियान चलाए जाने चाहिएं। बड़े स्तर पर काम किया जाना चाहिए। महिलाओं को बताया जाना चाहिए कि पुरुष कोई देवता नहीं है। (लेखिका भाजपा कार्यकारिणी कमेटी की सदस्य हैं।)-अमनजोत कौर रामूवालिया
 


सबसे ज्यादा पढ़े गए