महंगाई पर राजनीति नहीं, काबू पाने के प्रयास हों
punjabkesari.in Wednesday, Aug 23, 2023 - 05:28 AM (IST)

सब्जियों की लगातार बढ़ती कीमतों ने आम आदमी की रसोई का बजट गड़बड़ा दिया है। सरकार के प्रयासों से टमाटर की कीमतें नियंत्रण में आई हैं लेकिन अब प्याज की कीमतेें भी लोगों को रुला रही हैं। जो टमाटर पहले 200 रुपए किलो से ऊपर बिक रहा था, वह अब 60-70 रुपए किलो में बिक रहा है। लेकिन प्याज की कीमतें बढ़ती जा रही हैं। देश की राजधानी दिल्ली में प्याज 40 रुपए किलो पर पहुंच गया है। प्याज पिछले साल के भाव से करीब 15 गुना महंगा बिक रहा है। प्याज के मूल्य में वृद्धि का एक कारण नासिक में भारी वर्षा होना है, तो दूसरी वजह सावन माह के बाद प्याज की खपत भी बढ़ेगी। एक ओर आवक कम, दूसरी ओर खपत ज्यादा होना मूल्य में वृद्धि का प्रमुख कारण हो सकता है।
टमाटर की बढ़ी कीमतों से आलोचना झेल चुकी सरकार प्याज को लेकर किसी तरह का जोखिम लेने को तैयार नहीं। ऐसे में प्याज की कीमतें बढ़ते ही सरकार ने कीमतों पर काबू पाने के लिए बड़ा फैसला ले लिया। दरअसल, बीते सप्ताह प्याज के खुदरा दामों में 37 फीसदी व थोक भाव में 50 फीसदी की वृद्धि देखी गई, जिसके बाद सरकार ने भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता महासंघ व नैफेड के माध्यम से 25 रुपए किलो के हिसाब से प्याज बेचना शुरू कर दिया है।
वैसे यह एक यक्ष प्रश्न है कि सरकारी एजैंसियों द्वारा सस्ते सामान बेचे जाने का देश के सुदूर क्षेत्रों में बसे नागरिकों को कितना लाभ मिल पाता है। लेकिन हां, जमाखोरों पर दबाव जरूर बढ़ जाता है कि अपना स्टॉक समय से निकाल दें। इससे मांग-आपूर्ति के संतुलन से देश में कीमतें नियंत्रित रहती हैं। केंद्र सरकार ने प्याज के निर्यात पर 40 फीसदी ड्यूटी लगा दी है। हालांकि, सरकार ने आपातस्थिति से निपटने के लिए 3 लाख टन प्याज का स्टॉक भी बना रखा है, जिसमें दो लाख टन आयातित प्याज शामिल करके बफर स्टॉक अब 5 लाख टन का होने जा रहा है।
टमाटर की बढ़ी कीमतों के बीच सरकार ने प्याज के निर्यात पर पाबंदी ऐसे समय लगाई है, जब उसके भाव आसमान छूने की आशंकाएं जताई जा रही थीं। प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि घरेलू बाजार में इसकी उपलब्धता बनी रहे। चालू वित्त वर्ष में 1 अप्रैल से 4 अगस्त के बीच देश से 9.75 लाख टन प्याज का निर्यात किया गया। मूल्य के लिहाज से टॉप तीन आयातक देश बंगलादेश, मलेशिया और संयुक्त अरब अमीरात रहे। खुदरा महंगाई दर 8 फीसदी से कम दिखाई दे रही है, लेकिन सब्जियों, दालों, दूध, चावल, आटा आदि की कीमतें बढऩे से महंगाई का सूचकांक 38 फीसदी तक उछला था। अब तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी चिंता और सरोकार जताए हैं और महंगाई को लगातार कम करने की कोशिशों के प्रति देश को आश्वस्त किया है।
फरवरी महीने में महाराष्ट्र जैसे प्याज के प्रमुख उत्पादक राज्यों में रबी की फसल जल्दी पक गई थी। मार्च में यहां बेमौसम बारिश हुई। इससे प्याज की शैल्फ लाइफ 6 महीने से घटकर 4-5 महीने रह गई। क्रिसिल ने इस महीने की शुरुआत में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सप्लाई घटने से सितंबर की शुरुआत में प्याज 60-70 रुपए प्रति किलो तक पहुंच सकता है। कंज्यूमर अफेयर्स मिनिस्ट्री के आंकड़ों के अनुसार, प्याज की ऑल इंडिया एवरेज रिटेल प्राइस शनिवार को 30.72 रुपए प्रति किलो थी। अधिकतम कीमत मिजोरम के चंफई में है जहां प्याज 63 रुपए प्रति किलो में बिक रहा है। न्यूनतम कीमत मध्य प्रदेश के नीमच और बुरहानपुर में है जहां प्याज 10 रुपए प्रति किलो में बिक रहा है। वहीं इस महीने की शुरुआत में, यानी 1 अगस्त को प्याज की अधिकतम कीमत नागालैंड के शामाटर में 75 रुपए प्रति किलो थी। न्यूनतम कीमत नीमच में 10 रुपए प्रति किलो थी। ऑल इंडिया एवरेज रिटेल प्राइस 27.27 रुपए था। दिल्ली में इसकी कीमत 30 रुपए प्रति किलो चल रही थी।
साल 2021 में भारत ने 26.6 लाख मीट्रिक टन प्याज का उत्पादन किया था। भारत में होने वाले प्याज के कुल उत्पादन में महाराष्ट्र की 43 फीसदी हिस्सेदारी थी, मध्य प्रदेश की 16 फीसदी, कर्नाटक और गुजरात की 9-9 फीसदी। हालांकि सरकार द्वारा प्याज निर्यात के फैसले से किसान व कारोबारी खुश नहीं हैं। असल में सरकार के सामने भी दुविधा रहती है कि यदि वह उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण करती है तो किसानों के हितों पर प्रभाव पड़ता है। यही वजह है कि निर्यात शुल्क बढ़ाने से मुख्य प्याज उत्पादक राज्य महाराष्ट्र की मुख्य मंडी लासल गांव में व्यापारियों ने बीते सोमवार को प्याज की नीलामी बंद कर दी थी। किसानों का कहना है कि पहले भी किसानों को सही दाम नहीं मिले। अब निर्यात बढऩे से ठीक दाम मिलने लगे थे तो सरकार ने निर्यात को बढ़ा दिया है, जिससे बाजार में कीमतें गिरने से किसान को नुक्सान उठाना पड़ेगा।
यह बताना भी जरूरी है कि पूर्व में भी ऐसे मौके आ चुके हैं जब प्याज ने देश की राजनीति को प्रभावित किया। हमारे देश में किसी वस्तु, अनाज या सब्जी के दामों में असामान्य वृद्धि को चुनाव के वक्त एक प्रतीक बनाकर सरकारों को घेरने की परंपरा रही है। सब्जियों के आसमान छूते दाम किसी सरकार को गिरा भी सकते हैं। प्याज की बेकाबू कीमतों ने 1998 में दिल्ली की पहली महिला सी.एम. बनीं सुषमा स्वराज की सरकार गिरा दी थी। देश में अगले कुछ महीनों में कई राज्यों के विधानसभा चुनाव और अगले साल आम चुनाव हैं, ऐसे में सरकार कोई भी जोखिम नहीं लेना चाहती। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस मामले में राजनीति नहीं होगी और सरकार के प्रयासों से आम उपभोक्ता को महंगाई से राहत मिल पाएगी।-राजेश माहेश्वरी