नौकरशाहों के तबादलों में कुछ भी ‘रूटीन’ नहीं है

punjabkesari.in Monday, Oct 16, 2017 - 03:48 AM (IST)

राज्य सरकारों द्वारा इसे लगातार एक नियमित फेरबदल का नाम दिया जाता है लेकिन पंजाब में वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी के.बी.एस. सिद्धू को जिस तरह से विशेष मुख्य सचिव पद से हटाया गया है, उसको देखते हुए पंजाब में बाबुओं का विचार है कि उन्हें एक तरह से किनारे किया गया है।

राज्य में हाल ही में इस नियमित फेरबदल में 20 आई.ए.एस. अधिकारियों और 15 राज्य सेवा अधिकारियों को बदला गया है। सिद्धू को राजस्व और पुनर्वास विभाग के प्रभारी से हटाकर सामाजिक सुरक्षा विभाग का जिम्मा दे दिया गया है। सूत्रों का कहना है कि उन्हें जिस पद पर लगाया गया है, वह पद प्रमुख तौर पर सचिव या पिं्रसीपल सचिव के निचले स्तर के अधिकारियों को दिया जाता है। 

हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि 1984 बैच के आई.ए.एस. अधिकारी का ‘रुतबा’ कम कर दिया गया है और यह सब कुछ मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह के इशारे पर किया गया है। इसका मुख्य कारण कथित सिंचाई घाटे में चल रही विजीलैंस जांच है। सिद्धू को हाल ही में इस साल जून में सिंचाई विभाग के प्रभारी पद से हटा दिया गया था। राजस्व का प्रभारी अतिरिक्त मुख्य सचिव विनी महाजन को बना दिया गया है, जो पहले ही आवास और शहरी विकास विभाग की देखरेख कर रही हैैं। 

आखिर अरुंधती को एस.बी.आई. से मिल गई फेयरवैल
भारतीय स्टेट बैंक की चेयरमैन अध्यक्ष अरुंधती भट्टाचार्य, जो 1 साल के विस्तार बाद बीते शुक्रवार को सेवानिवृत्त हो गईं। बीते 1 साल में देश के सबसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ने नोटबंदी का मुश्किल दौर भी देखा है और उन्होंने अपने सहयोगी बैंकों का विलय भी एस.बी.आई. में करवाया है, जोकि एक बड़ा लक्ष्य था। इन सभी चुनौतियों को उन्होंने सफलतापूर्वक पार किया है। बैंक में इस समय भी एक बड़ा बदलाव जारी है और अब उनके उत्तराधिकारी एस.बी.आई. के नए प्रबंध निदेशक रजनीश कुमार हैं, जिन्हें 3 साल की अवधि के लिए नियुक्त किया गया है। बैंकों के विलय का बाकी काम पूरा करेंगे। यह भी एक स्वागत योग्य परिवर्तन है। अतीत में वह दो बार पूर्णकालिक पदाधिकारी की नियुक्ति से पहले एस.बी.आई. के अंतरिम अध्यक्ष रहे हैं। 

इस नियुक्ति ने इस पद पर नियुक्ति के साथ ही लम्बे रहस्य पर से पर्दा उठा दिया। दरअसल, बैंक बोर्ड ब्यूरो ने जून में 4 उम्मीदवारों के साक्षात्कार लिए थे। एस.बी.आई. से अन्य तीन, बी. श्रीराम, पी.के. गुप्ता और डी.के. खारा भी दावेदारों में शामिल थे लेकिन तब से सरकार के होंठ बंद थे और किसी के नाम का कोई खुलासा नहीं किया जा रहा था। मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान दिल्ली ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मुख्य अधिकारियों की नियुक्तियों में देरी को स्वीकार करना शुरू कर दिया है। सरकार की धीमी और जानबूझ कर की जा रही देरी के कारण कई महत्वपूर्ण पद खाली पड़े हैं। उदाहरण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) में एक डिप्टी गवर्नर का पद भरा नहीं जा रहा है, जबकि एस.एस. मुंद्रा जुलाई में ही सेवानिवृत्त हो गए थे। नियुक्तियों में तेजी से कुशलता और संस्थानों के प्रति सम्मान बढ़ता है, जिन्हें प्रबंधन में निरंतरता की आवश्यकता होती है। 

मोदी की नई पहल, वित्त मामलों में दखल बढ़ेगा पीएमओ का
साल 2014 में जिस आर्थिक सलाहकार परिषद को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भंग कर दिया था अब उसे पुनर्जीवित कर मोदी ने संकेत दिया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान परेशानियों को हल करने के लिए वित्त मंत्री तक सीमित करने के बजाय, वह व्यक्तिगत तौर पर भी ध्यान देना चाहते हैं। यह अर्थशास्त्रियों और नौकरशाह का एक सशक्त पैनल है, जिसमें विवेक देबराय को अध्यक्ष और सुरजीत भल्ला, राथिन रॉय और आशिमा गोयल भी सदस्य हैं। पूर्व वित्त सचिव रत्न वातल इसके सदस्य सचिव हैं। परिषद ‘माइक्रो-आर्थिक महत्व’ के मुद्दों पर सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करेगी। हालांकि, देबराय और वाटल दोनों ही राष्ट्रीय आई.ओ.जी. सदस्यों के रूप में कार्य जारी रखेंगे। 

यह विश्वास करने का एक कारण और भी है कि यह सिर्फ एक कॉस्मैटिक कसरत से ज्यादा है, हालांकि, इसमें कुछ भी कहना अभी कुछ जल्दबाजी ही होगा। पिछले साल के विमुद्रीकरण और उत्पाद एवं सेवा कर (जी.एस.टी.) को बेतरतीब ढंग से लागू करने के चलते आर्थिक विकास सुस्त पड़ गया है और अब एक ऐसी स्थिति है जिसमें सरकार एक आर्थिक प्रोत्साहन देने के बारे में सोच रही है। देबरॉय और उनके साथियों, जिनमें प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री भी हैं, की सलाह का  इस संदर्भ में स्वागत होना चाहिए।

इसको लेकर पूरे मामले में दिलचस्पी बढ़ती जा रही है जिसमें ताकतवर पी.एम.ओ. प्रमुख भूमिका में आता दिख रहा है और फिर से आर्थिक परिषद का गठन हुआ है और इससे वित्त मंत्रालय और नीति आयोग का नया नेतृत्व भी अपनी भूमिका को अदा करेगा। उम्मीद है कि इस सारे मामले में ‘कई सारे रसोइयों’ के चलते किचन का बैंडबाजा बजने की संभावना पैदा नहीं होगी, बल्कि इतने अधिक लोगों के आने से हालात बेहतर होंगे।
 


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