मानवीय जीवन को बचाने की हो रही ‘जद्दोजहद’

Friday, Apr 10, 2020 - 03:10 AM (IST)

क्रिसमस के बाद नववर्ष को विश्व भर में बड़े उत्साह तथा श्रद्धा से मनाया गया था। कार्यालय, यात्राएं, मनोरंजन तथा कारोबार जनवरी तक अपने हिसाब से ही चल रहे थे और फरवरी तक भी यह सब रूटीन में चलता रहा। उसके बाद धीरे-धीरे चीन से मन को हिलाने वाले कुछ दृश्य देखे गए, जोकि पहली बार वायरल के फूटने का एपिक सैंटर नहीं था। विश्व ने इसका ज्यादा संज्ञान नहीं लिया बल्कि वुहान के निवासियों तथा वहां पर हुई मौतों के साथ अपनी संवेदना प्रकट की। लोगों को लॉकडाऊन तथा दुख संताप के प्रति पूरी सहानुभूति थी। नोवल कोरोना वायरस के जन्म के बारे में कई सिद्धांत पाए गए जिससे अटकलें लगाई जाती रहीं। फरवरी के अंत तक यह कोई रुचि का विषय नहीं था, मगर उसके बाद वायरस ने वैश्विक तौर पर अपना रंग दिखाना शुरू किया और कुछ चुङ्क्षनदा देशों में अपनी पकड़ बनाई। 

अब ऐसे सवाल उठाए जा रहे हैं कि चीन और यहां तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व को इसके बारे में सचेत करने में देरी क्यों की? इसे पहले से ही ट्रैवल एडवाइजरी जारी कर देनी चाहिए थी। मगर सवाल यह है कि आखिर कितनी देर पहले? शायद 3 सप्ताह। एक-एक मिनट में इस वायरस की घातक क्षमता बढ़ रही है। मानवीय जीवन को बचाने की जद्दोजहद हो रही है। इस वायरस के सामने सभी बराबर हैं न कोई सम्राट है और न ही कोई आम आदमी। 

वैश्विक अर्थव्यवस्था 2020 तक कोरोना वायरस महामारी के चलते एक प्रतिशत तक सिकुड़ जाएगी
संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में यह रिपोर्ट जारी की कि वैश्विक अर्थव्यवस्था 2020 तक कोरोना वायरस महामारी के चलते एक प्रतिशत तक सिकुड़ जाएगी। इससे पहले 2.5 प्रतिशत की वृद्धि की आशा जताई जा रही थी। ग्लोबल शेयर भी प्रभावित हुए हैं। बेरोजगारी की दर नए रिकार्ड को छू रही है। यात्रा, एयरलाइन्स, क्रूज इंडस्ट्री, हास्पीटैलिटी, लघु तथा मध्यम कारोबारी सबके  सब  प्रभावित हुए हैं। मानवीय जाति पर अचानक ही अनिश्चितताओं के बादल मंडरा रहे हैं। कोविड-19 महामारी का असर इतनी देर तक रहेगा कि अर्थव्यवस्थाओं को पटरी पर लौटने में कई वर्ष लग जाएंगे। गरीब तथा वंचित देशों को उभरने के लिए बहुत समय लगेगा। 

क्या विश्व इस महामारी के लिए तैयार था। क्या सभी देश स्थिति से निपटने में सामूहिक तौर पर कार्य कर रहे हैं? हम इस महामारी से क्या सीख रहे हैं? क्या हम कुल वैश्विक स्वास्थ्य सिस्टम का सही ढंग से इस्तेमाल कर रहे हैं तथा वायरस के फैलाव को कम करने के लिए समय पर खुफिया जानकारी जुटा रहे हैं? क्या इबोला, इंफ्लुएंजा, मर्स, सार्स महामारियों ने हमें खतरे की आहट के बारे में नहीं बताया कि हम तैयार रहें और अपने आप को सही ढंग से तैयार रखे? 

भविष्य के इतिहासकार कोरोना से पहले के तथा बाद के जीवन के बारे में लिखेंगे। एक शताब्दी के बाद ऐसी महामारी ने विश्व को हिलाकर रख दिया। शायद ऐसा घटने के लिए यह इंतजार कर रही थी। पूरा विश्व, विश्वयुद्ध जैसे हालातों के लिए तैयार नहीं था, जहां पर एक भी गोली न चली हो। आधी पृथ्वी लॉकडाऊन से ग्रस्त है तथा यह प्रतिक्रियाएं जानने के लिए उत्सुक है। जिन देशों में बड़े स्तर पर लॉकडाऊन चल रहा है वहां पर भी उनके नागरिकों के सामाजिक व्यवहार में एक उग्र बदलाव देखने को मिल रहा है। क्या विश्व ने हालातों से अच्छी तरह निपटने में अपनी योग्यता दिखाई? क्या हमने वायरस पर अंकुश लगाने के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल किया? क्या हमने लॉकडाऊन के स्थानों को प्राथमिकता के आधार पर चिन्हित किया जहां पर इस वायरस के फैलाव का जोखिम अधिक था? 

चिकित्सा समुदाय ने अचानक ही अपना खोया हुआ मान-सम्मान वापस पा लिया
यह वायरस अभूतपूर्व तरीके से गति पकड़ रहा है। कई देश इस दौड़ में हैं कि कोई दवाई बनाई जा सके। मिसाइल तथा आटोमेकर वैंटीलेटर बनाने लग पड़े हैं। कई देशों में ओवरटाइम लगाकर ताबूत बनाए जा रहे हैं। चिकित्सा समुदाय ने अचानक ही अपना खोया हुआ मान-सम्मान वापस पा  लिया जैसा कि युद्ध के मैदान में सैनिक पाते हैं। इस वायरस ने पब्लिक हैल्थ तैयारियों तथा सरकार को आइना दिखाया है। विकासशील देशों के साथ-साथ गरीब देशों ने भी पश्चिम के देशों की तुलना में अच्छा कर दिखाया है जहां पर सांस लेने के लिए स्वच्छ हवा होती है तथा जीवन भी बढिय़ा होता है। 

मानवीय जाति जिंदगी के उलटफेर को फिर से सीख रही है। यदि यहां पर व्यक्तिगत तौर पर बड़े स्तर पर आर्थिक मदद लोक आबंटन प्रणाली के तहत न की गई तो लोगों में रोष फैलने का खतरा उत्पन्न हो जाएगा। यह सभी तथ्य लोगों के मन में छाए हुए हैं। लोग अपने घरों की चारदीवारी में अपनी गतिविधियों को समेट कर बैठे हैं। वे लोग जानते हैं कि वायरस से लडऩे का इससे अच्छा मौका नहीं, क्योंकि वायरस आप तक नहीं आता बल्कि आप ही इसे दूसरों तक पहुंचा रहे हैं। लोग अपने घरों में अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ बैठे हैं। वे अपने जीवन का सबसे बहूमूल्य समय एक-दूसरे से बांट रहे हैं। अपने परिवारों तथा उनके मूल्यों को समझ रहे हैं। 

कोविड को भगाने के लिए सबने कोविड सैनिकों के लिए तालियां बजाईं। इस तरह लोग अपने पड़ोसियों से भी जुड़ गए। लोगों का मन बदल रहा है। जबकि ज्यादातर विश्व बिग बॉस जैसे हालात को सहन कर रहा है। लोगों को इस बात के लिए शिक्षित किया जा रहा है कि यदि सामाजिक दूरी और कई माह तक बढ़ गई तो वह इससे कैसे पार पाएंगे। हमें विशाल कार्पोरेट कार्यालयों की जरूरत होगी। ई-लॄनग तथा ई-कामर्स उनके मानदंडों को मजबूत करेगा तथा वल्र्ड ट्रैवल से जुड़े बिलियन डालरों को बचाया जा सकेगा। मध्यम तथा लघु उद्यमी अपने कर्मचारियों के मूल्यों को समझेंगे। 

हमने उस समय अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी जब प्रदूषण लोगों की हत्या कर रहा था
विश्व ने उस समय अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी जब प्रदूषण लोगों की हत्या कर रहा था। हमने उस समय अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी जब ग्लेशियर पिघल रहे थे, जंगलों में आग लगी थी तथा नदियों में बाढ़ आई थी। ग्लोबल वाॄमग, मिसाइलों तथा न्यूक्लियर बमों के टैस्टों के समय हम मूकदर्शक बने रहे। कुदरत भी हमें कोस रही है क्योंकि हम अपने संसाधनों तथा ऊर्जा का दुरुपयोग कर रहे हैं। परमात्मा की निगाह हम पर है तथा ये उसके कुछ लक्षण हैं जिन्हें हम समझ नहीं पा रहे। 

क्या यह विश्व के लिए एक स्मरण पत्र है कि वह कुछ सुस्त हो जाए और अपने ग्रह को सांस लेने दे। क्या हम पुराने दिनों में ज्यादा खुश नहीं थे जब हमारे पास कुछ नहीं था। कोरोना ने हमें यह भी सिखाया है कि हमारे लिए कम ही ज्यादा होता है। दशकों से चलने वाली हवा इस कदर स्वच्छ नहीं थी जितनी कि आज है। प्रदूषण फैलाते उद्योगों तथा वाहनों पर अंकुश लगाने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाने होंगे। हम एक मानव के तौर पर जन्मे हैं न कि एक रोबोट के तौर पर। इसमें कोई शंका वाली बात नहीं कि मानव जाति चांद तक पहुंच गई है मगर हम फिर भी नीचे की ओर गिर रहे हैं और हमारे दुखों में इजाफा हो रहा है। एक-दूसरे को आङ्क्षलगन करने, हाथ मिलाने को छोड़कर हम नमस्ते पर ध्यान दें।-डा. एम.एस. कंवर (इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, नई दिल्ली)

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