फिर चौराहे पर खड़ा हुआ जम्मू-कश्मीर

punjabkesari.in Wednesday, Dec 06, 2017 - 03:10 AM (IST)

भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा अपनी जान की बाजी लगाकर वर्ष 2017 के 11 महीनों में 200 से अधिक आतंकवादियों को मौत के घाट उतारने, दर्जनों को गिरफ्तार करने एवं कईयों को आत्मसमर्पण करवाकर राष्ट्र की मुख्यधारा में लौटाने और राष्ट्रीय जांच एजैंसी (एन.आई.ए.) द्वारा अलगाववादी नेताओं एवं उनके साथ जुड़े हवाला कारोबारियों पर कड़ा शिकंजा कसने के बावजूद केंद्र एवं राज्य सरकार के उदारवादी रवैये के चलते जम्मू-कश्मीर एक बार फिर चौराहे पर खड़ा है। 

पिछले एक वर्ष के दौरान जब कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों द्वारा आतंकवादियों के खिलाफ चलाए गए आप्रेशन ऑलआऊट को और फिर एन.आई.ए. द्वारा अलगाववादियों की कमर तोडऩे में कामयाबी मिलती दिखाई दी तो लग रहा था कि केंद्र एवं राज्य सरकार की दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति के चलते जम्मू-कश्मीर का मसला निर्णायक दौर में पहुंच जाएगा और देर-सवेर जम्मू-कश्मीर की जनता समेत तमाम देशवासियों को घाटी में आतंकवाद एवं अलगाववाद की बड़ी समस्या से मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और भाजपा नीत केंद्र सरकार ने राज्य की सत्ता में अपनी सहयोगी पी.डी.पी. के समक्ष घुटने टेक दिए।

कुछ समय पूर्व तक भाजपा के सामान्य कार्यकत्र्ता से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक यह कहते नहीं थकते थे कि बातचीत और आतंकवाद एक साथ नहीं चल सकते तो अब उनसे यह सवाल पूछना तो बनता है कि क्या कश्मीर घाटी में आतंकवाद समाप्त हो गया है जो उन्होंने वार्ताकार के तौर पर पूर्व आई.बी. प्रमुख दिनेश्वर शर्मा की नियुक्ति कर दी। दरअसल, मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की पार्टी पी.डी.पी. का जनाधार कश्मीर घाटी में निरंतर घटता जा रहा है, इसीलिए उन्होंने श्रीनगर-बडग़ाम लोकसभा सीट गंवाने के बाद अपने गृहक्षेत्र अनंतनाग-पुलवामा में लोकसभा उपचुनाव टलवाने के लिए पूरा जोर लगा दिया। सरकार द्वारा सुरक्षा कारणों का हवाला देकर चुनाव आयोग से इस उपचुनाव को लगातार स्थगित करवाया जा रहा है लेकिन अब मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंच जाने से सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं। 

ऐसे में, कश्मीर में पी.डी.पी. की लगातार उखड़ती जड़ों को पुन: जमाने के लिए मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती आतंकवादियों, अलगाववादियों एवं पत्थरबाजों के हित में कुछ कदम उठाना चाहती थीं लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उनकी दलीलों को अनसुना कर देने के बाद उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को वार्ताकार की नियुक्ति के लिए राजी किया। इस पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने ऐतराज भी जताया लेकिन जम्मू-कश्मीर में पहली बार सत्ता का सुख भोग रही भाजपा कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती थी इसलिए महबूबा की रणनीति को अमलीजामा पहनाने के लिए वार्ताकार की नियुक्ति कर दी गई। 

मुख्यमंत्री ने अब पुलिस महानिदेशक एस.पी. वैद की कथित रिपोर्ट, वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा की कथित सलाह एवं केंद्र सरकार की कथित सहमति से घाटी में पत्थरबाजी करके सेना, सी.आर.पी.एफ., जम्मू-कश्मीर पुलिस एवं अन्य सुरक्षा बलों के जवानों को लहूलुहान करने वाले 4327 युवाओं के खिलाफ दर्ज 744 आपराधिक मामले वापस लेने का फरमान सुना दिया। यदि मुख्यमंत्री को यह लगता है कि ये मामले वापस लेने से अलगाववादियों के बहकावे में आए अथवा कथित तौर पर पैसे लेकर पत्थर फैंकने वाले पेशेवर पत्थरबाज मुख्यधारा में लौट आएंगे तो यह उनका भ्रम है क्योंकि उनकी ही सरकार ने पिछले वर्ष भी ऐसे ही 634 पत्थरबाजों के खिलाफ दर्ज 104 मामले वापस लिए थे, तो सवाल यह है कि क्या उन युवाओं ने पत्थरबाजी का दामन छोड़कर राष्ट्रनिर्माण में योगदान देना शुरू कर दिया है? 

सरकार के इस कदम का जमीनी स्तर पर पत्थरबाजों पर कोई असर हो या न हो, लेकिन इससे पी.डी.पी. के कार्यकत्र्ता काफी खुश नजर आते हैं और इसी से उत्साहित होकर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने संकेत दिया कि यह तो अभी शुरूआत है। बताया जाता है कि एन.आई.ए. ने पिछले डेढ़-दो वर्ष के दौरान कड़ी मेहनत करके हवाला एवं काले धन के माध्यम से कश्मीर में अलगाववाद एवं आतंकवाद को हवा दे रहे अलगाववादी नेताओं, उनके रिश्तेदारों एवं उनके सहयोगी कारोबारियों पर जो शिकंजा कसा है, उसमें भी ढील देने की तैयारी की जा रही है।

बेशक, केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह एवं अन्य भाजपा नेता आतंकवादियों और अलगाववादियों के खिलाफ चल रहे अभियानों पर वार्ता प्रक्रिया का कोई प्रभाव न पडऩे की बात कर रहे हैं, लेकिन जिस प्रकार से इस कथित वार्ता प्रक्रिया को प्रभावी बनाने और पी.डी.पी. को उसकी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं, उससे आतंकवाद एवं अलगाववाद के खिलाफ लड़ाई कमजोर होने की पूरी आशंका है।-बलराम सैनी


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