दिल्ली मेयर : जद्दोजहद रही बड़ी, असली चुनौती आगे खड़ी
punjabkesari.in Thursday, Feb 23, 2023 - 02:39 AM (IST)

6 जनवरी, फिर 24 जनवरी, इसके बाद 6 फरवरी 3 बार के प्रयास असफल होने के बाद चुनाव कराने का चौथा प्रयास 22 फरवरी को सफल हुआ। आम आदमी पार्टी की डा. शैली ओबेरॉय महापौर चुनी गईं। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद यह संभव हो सका।
बड़ी जद्दोजहद के बाद देश की राजधानी दिल्ली को मेयर तो मिल गया, लेकिन अब आगे चुनौती बड़ी है। निगम के क्रियाकलापों को सुचारू रूप से संचालित करना, देश की राजधानी में नागरिक सुविधाओं को पटरी पर लाना, कर्मचारियों को समय पर वेतन देना, विपक्ष को साथ लेकर आगे बढऩा आदि। यह सब आम आदमी पार्टी की महापौर को करना है। बड़ी बात यह है कि विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच तल्खी कुछ ज्यादा ही है।
जिस तरह तीन बार सदन की बैठक में चुनाव नहीं हो पाया, आगे की बैठकों में भी मुश्किलें पैदा होंगी, इसकी आशंका बनी ही है। इन सबके बीच चीजों को ठीक से कर पाना टेढ़ी खीर दिख रही है। इससे निपट कर दिल्ली के नागरिकों को सेवाएं-सुविधाएं उपलब्ध कराने की दिशा में महापौर को कार्य करना होगा। सियासी प्रतिभा के साथ व्यक्तिगत प्रयास इसमें बड़ा काम करेगा।
सिविक सैंटर को रार का केंद्र बनने से बचाना होगा : भारतीय जनता पार्टी 15 सालों से निगम की सत्ता चला रही थी। अब बागडोर आम आदमी पार्टी के हाथ में है। सर्वविदित है कि भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच गजब की तल्खी है। पक्ष और विपक्ष के बीच होने वाली बहस से आगे की स्थिति यहां बनी हुई है। मेयर पद पर मिली जीत के बाद आप के नेताओं ने कहा कि ‘गुंडे हार गए, गुंडागर्दी हार गई, जनता जीत गई।’
इस माहौल के बीच इस बात की आशंका है कि नगर निगम का मुख्यालय सिविक सैंटर अब रार का नया केंद्र बनेगा। अभी तक राजधानी, आप की दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच की तकरार देख रही थी। बीच-बीच में दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार की रार भी सामने आती थी। अब दिल्ली नगर निगम में आम आदमी पार्टी की सत्ता है और विपक्ष में भाजपा है तो नए तरह की रार सामने आएगी। लेकिन, ऐसा होने से बचाना है। यह चुनौती भी मेयर के सामने है।
केंद्र के गृह मंत्रालय के अधीन है दिल्ली निगम : दिल्ली नगर निगम भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन है और शहरी विकास मंत्रालय से इसके कई नियम कायदे तय होते हैं। अब केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और दिल्ली नगर निगम में आम आदमी पार्टी की सत्ता। तय बात है कि यहां पर स्थितियां कुछ अलग ही दिखाई देंगी। आम आदमी पार्टी के मेयर को इन विपरीत परिस्थितियों के बीच सामंजस्य-समन्वय बनाना बड़ी चुनौती होगी। दिल्ली के प्रशासक होने के नाते उपराज्यपाल से भी समन्वय बिठाना होगा।
दिल्ली मेयर का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण स्थान : महापौर चुने जाने के बाद डा. शैली ओबेरॉय ने सदन को विश्वास दिलाते हुए कहा कि, मैं इस सदन को संवैधानिक तरीके से चलाऊंगी। मुझे उम्मीद है कि सभी सदस्य सदन की गरिमा बनाए रखेंगे। बैठक को सुचारू रूप से संचालित करने में सहयोग करेंगे। उनकी यह उम्मीद जायज है। देश की राजधानी होने के कारण दिल्ली के महापौर का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी महत्व होता है। ऐसे में यहां होने वाली तमाम गतिविधियों पर विश्व की नजर रहती है।
विचारणीय, पहली बैठक भी तो हो सकती थी ऐसी : 3 हिस्सों में विभाजित निगमों को मिलाकर एक बनाए गए निगम की पहली मेयर के रूप में आम आदमी पार्टी की पार्षद शैली ओबेरॉय चुनी गईं। होना भी यही था। सदन में वोटों की गणित में आम आदमी पार्टी भारतीय जनता पार्टी से काफी आगे है। परिणाम भी वही रहा। 150 वोट हासिल कर आप के प्रत्याशी को जीत मिली और 116 वोट पाकर भाजपा की रेखा गुप्ता हार गईं। दिल्ली नगर निगम का चुनाव बीते वर्ष 4 दिसम्बर को हुआ।
7 दिसम्बर को परिणाम आए। 250 में से सबसे अधिक 134 पार्षद चुने जाने से आम आदमी पार्टी की बहुमत के साथ बड़ी जीत हुई। इसके बाद जब-जब भी मेयर चुनाव के लिए सदन की बैठक बुलाई गई पार्षदों के हंगामे के कारण उसे स्थगित कर दिया गया। बुधवार को चौथे प्रयास में सभी पार्षद शांत रहे और मतदान पूरा हुआ। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था, इसके बाद यह शांति निगम की बैठक में नजर आई।
ऐसा पहली बैठक में भी हो सकता था। यह भी सोचने का विषय है। ऐसी शांति आगे बनाए रखना भी सत्ता पक्ष के लिए चुनौती होगी। होना तो यही चाहिए कि पक्ष-विपक्ष मिलकर दिल्ली की बेहतरी के लिए काम करें और सदन में शोर-शराबे से ज्यादा सार्थक चर्चा हो। उम्मीद है कि सदन के सदस्य इस भावना को समझेंगे और उसके अनुरूप आचरण करेंगे। -आशुतोष त्रिपाठी