विपक्ष के प्रभाव को कम करना चाहता है सत्ता पक्ष
punjabkesari.in Tuesday, Sep 05, 2023 - 05:52 AM (IST)

नवगठित विपक्षीय गठबंधन I.N.D.I.A ने मुम्बई में एक ठोस गठबंधन को मजबूत करने की दिशा में पिछले सप्ताह एक सकारात्मक कदम उठाया। यह निर्णय उनकी तीसरी बैठक के दौरान लिया गया जो पटना और बेंगलुरु में पिछले दो सम्मेलनों से पहले हुई थी। उनका लक्ष्य 1977 या 2004 के परिदृश्य को दोहराना है जहां कमजोर विपक्ष ने सत्तारूढ़ सरकार के खिलाफ जीत हासिल की थी। मुंबई में गुरुवार और शुक्रवार को दो दिवसीय बैठक के लिए 28 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि एकत्रित हुए। 63 उपस्थित लोगों ने सांझा अभियान रणनीति और एन.डी.ए. (राजग) का मुकाबला करने के लिए तरीकों पर चर्चा की।
बैठक के बाद गठबंधन के नेता ने घोषणा की कि वे अपनी सर्वोत्तम क्षमता के साथ मिलकर चुनाव में भाग लेंगे। इसके साथ-साथ वे समझौते की सहयोगी भावना का उपयोग करते हुए, तुरंत राज्य सीट बंटवारे की व्यवस्था का आयोजन शुरू कर देंगे। इसके अतिरिक्त उनका लक्ष्य जल्द से जल्द देश भर में सार्वजनिक रैलियां आयोजित करना है। 13 सदस्यीय समन्वय कमेटी भी स्थापित की गई। विपक्षी नेताओं को एहसास है कि आंतरिक और बाहरी दोनों तरह की कई बाधाओं से पार पाना बाकी है। गठबंधन को क्षेत्रीय दलों के साथ सीट बंटवारे पर बातचीत करने में चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
I.N.D.I.A टीम को गठबंधन सहयोगियों के बीच अंतर्निहित विरोधाभासों पर काबू पाने की कठिन चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें निर्बाध सीट आबंटन के लिए लेन-देन की नीति पर सहमत होना होगा और जमीनी स्तर पर सहयोग करना होगा। राहुल गांधी ने इसे स्वीकार किया है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस और ‘आप’ राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं जबकि तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी दल और कांग्रेस पश्चिमी बंगाल में सांझा हित रखते हैं। केरल में लैफ्ट और कांग्रेस की भी सांझी हिस्सेदारी है। ममता बनर्जी ने 2 अक्तूबर तक गठबंधन का घोषणा पत्र जारी करने का सुझाव दिया जबकि ‘आप’ संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अगले महीने के अंत तक लोकसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे को अंतिम रूप देने का प्रस्ताव रखा।
मुख्य बात अपने कार्यकत्र्ताओं का मनोबल बढ़ाना है, जो भाजपा के 10 साल के कार्यकाल से प्रभावित हुआ है। कई लोग अगले 5 साल तक राजनीतिक जंगल में रहने को तैयार हैं। इसलिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार चुनना और विशिष्ट सीटों पर आम सहमति बनाना महत्वपूर्ण है। लेन-देन की नीति इस संबंध में मदद कर सकती है। अपने उम्मीदवार की जीत और जमीनी स्तर के कार्यकत्र्ताओं सहित उनके समूह के सभी लोगों की प्रतिबद्धता सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है। येकार्यकत्र्ता इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि जिस पार्टी के खिलाफ वे कल तक लड़ते रहे , आखिर उसका समर्थन कैसे करें। गठबंधन के समक्ष अन्य मुद्दे भी हैं जिन पर निर्णय लेना बाकी है। गठबंधन को पी.एम. मोदी को चुनौती देने और एक नई कहानी विकसित करने के लिए एक व्यवहार्य उम्मीदवार की पहचान करनी चाहिए। संयोजक या पी.एम. पद के चेहरे पर अभी तक सहमति नहीं बन पाई है। इन सभी में नए गठबंधन में कांग्रेस एकमात्र अखिल राष्ट्रीय पार्टी बनी हुई है। पिछले दशक में ताकत में गिरावट का अनुभव करने के बावजूद कांग्रेस पार्टी राष्ट्रव्यापी अपील वाली एकमात्र राजनीतिक इकाई बनी हुई है।
कांग्रेस और भाजपा को लोकसभा की एक-तिहाई सीटों पर सीधी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस पार्टी अभी भी पंजाब, असम, कर्नाटक, केरल, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, गोवा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में महत्वपूर्ण प्रभाव रखती है जहां कुल मिलाकर 155 लोकसभा सीटें हैं। कुछ विपक्षी मुख्यमंत्रियों जैसे नीतीश कुमार, ममता, एम.के. स्टालिन और केजरीवाल का अनुमान है कि 2024 के लोकसभा चुनाव जल्द हो सकते हैं। यह मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना में आगामी विधानसभा चुनावों के साथ मेल खा सकता है। इसके अतिरिक्त भाजपा ने एक राष्ट्र- एक चुनाव विचार की वकालत की है।
लोकसभा चुनाव समय से पहले होंगे या नहीं, इस पर अभी कोई पक्की खबर नहीं है। न तो भाजपा और न ही चुनाव आयोग ने इसका कोई संकेत दिया है। अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री मोदी पर निर्भर है जो अप्रत्याशित विकल्प चुनने के लिए जाने जाते हैं। भाजपा मोदी को अपना लकी चार्म मानती है। पार्टी 10 राज्यों पर शासन करती है। मोदी का लक्ष्य विपक्ष की अराजकता का फायदा उठाकर तीसरा कार्यकाल जीतना है।
भाजपा हरसंभावित स्थिति के लिए पूरी तरह से तैयार है। इसमें सभी 543 संसदीय क्षेत्रों में 1 लाख बूथों को कवर करने के लिए करीब 40 हजार बूथ कार्यकत्र्ताओं को जुटाया है। वहीं सत्तारूढ़ अपनी योजनाओं को गुप्त रखता है और अपनी ताकत बरकरार रखते हुए विपक्ष के प्रभाव को कम करना चाहता है।-कल्याणी शंकर