समस्या की वजह ‘किसानों से संवादहीनता’

punjabkesari.in Friday, Sep 18, 2020 - 03:25 AM (IST)

संसद में कृषि विधायक को कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के जरिए पेश और पास कराए जाने और उस पर एम.एस.पी. का आश्वासन दिए जाने और कांग्रेस व दूसरे विपक्षी दलों के जरिए इसे किसान विरोधी और किसानों के विरुद्ध षड्यंत्र बताए जाने पर हल्ला मचा हुआ है। केंद्र सरकार ‘एक देश, एक कृषि मार्कीट’ बनाने की बात कह रही है। इस अध्यादेश के माध्यम से पैन कार्ड धारक कोई भी व्यक्ति, कम्पनी, सुपर मार्कीट किसी भी किसान का माल किसी भी जगह पर खरीद सकते हैं। कृषि माल की बिक्री ए.पी.एम.सी. यार्ड में होने की शर्त केंद्र सरकार ने हटा ली है। 

महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कृषि माल की जो खरीद ए.पी.एम.सी. मार्कीट से बाहर होगी, उस पर किसी भी तरह का टैक्स या शुल्क नहीं लगेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि ए.पी.एम.सी. मार्कीट व्यवस्था धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी क्योंकि ए.पी.एम.सी. व्यवस्था में टैक्स व अन्य शुल्क लगते रहेंगे। किसानों को इस बात पर आपत्ति है कि पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाजारी करते थे, उसको रोकने के लिए आवश्यक वस्तुएं अधिनियम 1955 बनाया गया था जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गई थी।

अब इस नए अध्यादेश के तहत आलू, प्याज, दलहन, तिलहन व तेल के भंडारण पर लगी रोक को हटा लिया गया है। देश में 85 प्रतिशत लघु किसान हैं, जिनके  पास लंबे समय तक भंडारण की व्यवस्था नहीं होती यानी यह अध्यादेश बड़ी कम्पनियों द्वारा कृषि उत्पादों की कालाबाजारी के लिए लाया गया है, ये कम्पनियां और सुपर मार्कीट अपने बड़े-बड़े गोदामों में कृषि उत्पादों का भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे। 

जहां तक तीसरे बिल की बात है तो किसानों को लगता है कि ‘‘इसके तहत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा दिया जाएगा जिसमें बड़ी-बड़ी कम्पनियां खेती करेंगी और किसान उसमें सिर्फ मजदूरी करेंगे। इस नए बिल के तहत किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बन कर रह जाएगा।’’ जिस तरह से किसान संगठन सड़क पर हैं उसके पीछे कारण है। सरकार ने जल्दबाजी में किसानों से संवाद किए बगैर उद्योग जगत से बात करके इस मुद्दे को अंतिम रूप दिया है उससे किसानों के मन में आशंका बैठी है कि क्या अब किसानों की समस्या को भी उद्योग जगत से संवाद करके हल किया जाएगा और किसानों से बात भी नहीं की जाएगी। 

इस बिल के जरिए विपक्ष यह बताने की कोशिश कर रहा है कि किसानों और कारपोरेट के बीच में लड़ाई है जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है। यह बिल किसानों के हित में है लेकिन किसान इसलिए नाराज हैं कि आने वाले दिनों में 10 रुपए का फायदा होता है और उसमें से 2 रुपए सिर्फ उन्हें अगर मिलते हैं तो बाकी 8 रुपए क्या कारपोरेट को चले जाएंगे और मेहनत पूरी किसान की होगी। इसलिए आशंका का माहौल बढ़ा है। हमें शुरू से ही आशंका थी कि जब जल्दबाजी में इस तरह का किसानों से संवाद किए बिना कोई भी बिल आएगा तो इस तरह की समस्या उत्पन्न होगी। जहां तक मंडी की बात है तो मंडी पर पहले भी कोई पाबंदी नहीं थी। किसान खुद स्टॉक कर सकते थे, लेकिन जहां तक प्राइवेट जगत को लाने की बात है तो इसके लिए पहले किसानों से संवाद जरूरी था। 

पहले भी किसान आजाद था और व्यापारी पर पाबंदी थी। जहां तक मार्कीट रिफॉर्म की बात है तो इस पर किसान को कोई आपत्ति नहीं है। अब किसानों को यह शंका हो रही है कि उनकी सबसिडी चली जाएगी, हालांकि सरकार ने संसद में भरोसा दिया है कि ‘‘ए.पी.एम.सी. अधिनियम के प्रावधान किसानों के उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (पदोन्नति और सुविधा) विधेयक से प्रभावित नहीं होते हैं। वर्तमान में मंडियों में 50-60 व्यापारी हैं। दोनों विधानों के कारण कृषि व्यापारियों के बीच तालमेल बढ़ेगा। एम.एस.पी. किसानों के उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, और मूल्य आश्वासन और फार्म सेवा विधेयक पर (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौते से प्रभावित नहीं होगा।’’  इस लिए हमें पूरा विश्वास है कि सरकार अपने कहे का पालन करेगी। 

जहां-जहां सरकार ने प्राइवेट  सैक्टर को छूट दी है वहां बहुत सारी समस्याएं भी आई हैं, लेकिन बहुत सारी जगह ऐसी भी हैं जहां प्राइवेट सैक्टर के जाने से व्यवस्था अच्छी हुई है और सप्लाई चेन में बेहतरी आई है। अभी भी समय है कि सरकार किसानों से संवाद करे और बिल पास होने के बाद भी इस में अगर संशोधन की जरुरत हो तो लाये। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि सरकार प्राइवेट की निगरानी करे और किसानों को सुरक्षा दे। उन्होंने कहा कि हमें पूरा विश्वास है कि यह बिल किसानों की समस्याओं को दूर करने और उनकी आय को न सिर्फ दोगुनी बल्कि तीन गुनी करने में महत्वपूर्ण होगा बल्कि किसानों की बदहाली दूर होगी और अन्न दाता के आंगन में खुशहाली आएगी।-डा. एम.जे खान(चेयरमैन, भारतीय खाद्य एवं कृषि परिषद)


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