पुलिस स्टेशनों में सड़ते वाहनों की समस्या
punjabkesari.in Friday, Jul 04, 2025 - 05:40 AM (IST)

भारत में अपराधों की जांच और न्यायिक प्रक्रिया में वाहन अक्सर महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं। कार, मोटरसाइकिल, ट्रक या अन्य साधन अपराध के दृश्य का एक अभिन्न हिस्सा हो सकते हैं। पुलिस द्वारा इन वाहनों को जब्त कर लिया जाता है और साक्ष्य के रूप में अदालत में पेश किया जाता है। हालांकि, इन जब्त वाहनों का प्रबंधन और रखरखाव एक ऐसी समस्या बन चुका है, जो न केवल पुलिस प्रशासन के लिए सिरदर्द है, बल्कि पर्यावरण, संसाधनों और सामाजिक दृष्टिकोण से भी एक गंभीर चुनौती बन गया है। पुलिस स्टेशनों और मालखानों में ये वाहन वर्षों तक सड़ते रहते हैं, जिससे न केवल जगह की कमी होती है, बल्कि यह व्यवस्था की नाकामी को भी उजागर करता है।
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.) की धारा 102 के तहत पुलिस को ऐसे वाहनों को जब्त करने का अधिकार है, जो अपराध से संबंधित हों। इन वाहनों को मालखाने या पुलिस स्टेशन के परिसर में रखा जाता है, जब तक कि मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती। हालांकि, सबसे बड़ी समस्या यह है कि भारत में न्यायिक प्रक्रिया अक्सर लंबी चलती है। कई मामलों में, सुनवाई में वर्षों लग जाते हैं और इस दौरान जब्त वाहन पुलिस स्टेशनों में खड़े रहते हैं। बारिश, धूप और धूल के संपर्क में रहने के कारण ये वाहन खराब हो जाते हैं और धीरे-धीरे कबाड़ में तब्दील हो जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक इससे भारत को हर साल लगभग 20,000 करोड़ रुपए का नुकसान हो जाता है
कई मामलों में, ये वाहन उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण संपत्ति होते हैं, जो शायद निर्दोष हों या जिनके खिलाफ कोई ठोस सबूत न मिले। उदाहरण के लिए, एक ऑटो-रिक्शा चालक या टैक्सी ड्राइवर के लिए उसका वाहन उसकी आजीविका का मुख्य साधन होता है। जब ऐसे वाहन लंबे समय तक पुलिस हिरासत में रहते हैं, तो मालिक की आॢथक स्थिति पर बुरा असर पड़ता है। यह सामाजिक असमानता को और बढ़ाता है क्योंकि अधिकांश प्रभावित लोग निम्न या मध्यम वर्ग से होते हैं। इसके अलावा, पुलिस स्टेशनों के बाहर खड़े वाहन अक्सर आस-पास के निवासियों के लिए परेशानी का कारण बनते हैं। ये वाहन सड़कों को अवरुद्ध करते हैं, पार्किंग की समस्या पैदा करते हैं और कई बार असामाजिक तत्वों के लिए आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं। ऐसा देखा गया है कि वाहनों के महत्वपूर्ण हिस्से, जैसे बैटरी, टायर या इंजन के पुर्जे गायब हो जाते हैं। यह न केवल भ्रष्टाचार को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ हो रही है, जो न्यायिक प्रक्रिया को कमजोर करता है।
इस समस्या के समाधान के लिए नीतिगत और संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता है। पहला कदम यह हो सकता है कि वाहनों की जब्ती और रिहाई की प्रक्रिया को डिजिटल और पारदर्शी बनाया जाए। प्रत्येक जब्त वाहन का रिकॉर्ड एक केंद्रीकृत डाटाबेस में दर्ज किया जाना चाहिए, जिसमें वाहन की स्थिति, जब्ती की तारीख और मामले की प्रगति की जानकारी हो। इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित होगा कि वाहन अनावश्यक रूप से लंबे समय तक हिरासत में न रहे। दूसरा, फोरैंसिक जांच की प्रक्रिया को और तेज करना होगा। सरकार को क्षेत्रीय स्तर पर फोरैंसिक प्रयोगशालाओं की स्थापना करनी चाहिए, ताकि जांच जल्दी पूरी हो सके। इसके साथ ही डिजिटल साक्ष्य, जैसे वाहन की तस्वीरें और 3डी स्कैन को अदालतों में स्वीकार करने की नीति बनानी चाहिए। इससे भौतिक वाहन को लंबे समय तक रखने की आवश्यकता कम होगी। जब वाहन साक्ष्य के रूप में उपयोग के लिए आवश्यक न हों, तो उनकी नीलामी या वैकल्पिक उपयोग की प्रक्रिया को तेज करना होगा। इसके अलावा, कुछ मामलों में जब्त वाहनों को सरकारी इस्तेमाल, जैसे पुलिस या आपातकालीन सेवाओं के लिए पुन: उपयोग में लाया जा सकता है, बशर्ते वे कार्यशील स्थिति में हों।
पर्यावरणीय दृष्टिकोण से, सड़ते वाहनों को रीसाइक्लिंग के लिए भेजा जाना चाहिए। इससे न केवल पर्यावरण को लाभ होगा, बल्कि यह आॢथक अवसर भी पैदा करेगा। इसके साथ ही, इन वाहनों को सुरक्षित रखने की दृष्टि से हर जिले के स्तर पर एक बड़ा मालखाना होना चाहिए।
केवल एक समग्र दृष्टिकोण ही इस समस्या को जड़ से खत्म कर सकता है, जिससे यह भी सुनिश्चित होगा कि अपराध में शामिल वाहन न केवल न्याय प्रक्रिया में सहायक हों, बल्कि समाज और पर्यावरण पर भी बोझ न बनें।-रजनीश कपूर