संसद में प्रधानमंत्री के भाषणों के संदेश साफ हैं

punjabkesari.in Saturday, Feb 11, 2023 - 05:00 AM (IST)

संसद यानी लोकसभा और राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिया गया उत्तर नि:संदेह कांग्रेस, कई विपक्षी पार्टियों और नेताओं को रास नहीं आया है। राहुल गांधी ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट का नाम लेकर लोकसभा में भाषण इस आरोप पर केंद्रित कर दिया कि गौतम अडानी का कारोबार विस्तार केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारण हुआ है। 

प्रधानमंत्री ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट, अडानी आदि को स्पर्श नहीं किया और राहुल गांधी या किसी नेता का नाम भी नहीं लिया। बिना नाम लिए उन्होंने जिस तरह व्यंग्य और कटाक्ष किए राजनीति के वर्तमान विमर्श में वह लुप्तप्राय है। मोदी के भाषण में एक साथ राष्ट्रपति के अभिभाषण से संबंधित तथ्यों का विश्लेषण, सरकार के प्रदर्शन संबंधी विपक्ष के आरोपों का वस्तुनिष्ठ उत्तर तथा भारत के लोगों एवं विश्व को यह आश्वासन था कि सरकार देश को सही दिशा में ले जा रही है। जब विरोध में नकारात्मक और निराशाजनक तस्वीरें पेश की जा रही हों तो प्रधानमंत्री का दायित्व होता है कि वह आशाजनक सच्चाइयों को रखें एवं लोगों के अंदर पैदा हुए आत्मविश्वास को सुदृढ़ करें। संपूर्ण विश्व में भारत के प्रति सकारात्मक धारणा एवं कायम हुई उम्मीदों को बनाए रखने का संदेश देना भी प्रधानमंत्री का दायित्व है। 

प्रधानमंत्री के भाषण में ये सारे तत्व एक साथ मौजूद रहे। स्वाभाविक ही इसमें विपक्ष को कमजोर, अदूरदर्शी, निराश एवं नकारात्मक विचारों से भरा हुआ साबित करना ही था।  लोकसभा में विपक्ष के बारे में उन्होंने काका हाथरसी की यह पंक्ति बोली-आगा पीछा देखकर क्यों होते गमगीन, जैसी जिसकी भावना वैसा दिखे सीन। साफ दिख रहा था कि वे बोल रहे हैं संसद में लेकिन देश और दुनिया में अपने सुनने वालों को संबोधित कर रहे हैं। काका हाथरसी की पंक्ति से उन्होंने यह साबित करने की कोशिश की कि भारत हर दृष्टि से उन्नति के रास्ते पर है लेकिन अनेक विपक्षी नेता अपनी नकारात्मक भावना में इसे देख नहीं पाते या देख कर भी कई कारणों से गलतबयानी करते हैं। उनकी इन पंक्तियों को देखिए-हर स्तर पर, हर क्षेत्र में, हर सोच में आशा ही आशा नजर आ रही है। 

विपक्ष की समस्या यह है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद सरकार के विरुद्ध अपनी भावनाओं के अनुरूप राष्ट्रपति अभिभाषण का खंडन करने की आवश्यकता ही नहीं समझी। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें अच्छा लगा कि विपक्ष ने राष्ट्रपति जी के अभिभाषण से अपनी असहमति प्रकट नहीं की। इस संबंध में उन्होंने राष्ट्रपति की चार पंक्तियों का उल्लेख किया। एक, जो भारत कभी अपनी अधिकांश समस्याओं के समाधान के लिए दूसरों पर निर्भर था, वही आज दुनिया की समस्याओं के समाधान का माध्यम बन रहा है। दो, जिन मूल सुविधाओं के लिए देश की बड़ी आबादी ने दशकों तक इंतजार किया, वह इन वर्षों में उसे मिली है। 

तीन, बड़े-बड़े घोटालों, सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार की जिन समस्याओं से देश मुक्ति चाहता था, वह मुक्ति देश को अब मिल रही है। चार,पॉलिसी पैरेलिसिस की चर्चा से बाहर आकर देश की पहचान तेज विकास और दूरगामी दृष्टि से लिए गए फैसलों से हो रही है। जरा सोचिए, विपक्ष के नेता या स्वयं राहुल गांधी ने अपने भाषण में इनका खंडन कर दिया होता तो प्रधानमंत्री को इस तरह उन पर व्यंग्य करने का आधार नहीं मिलता। आपने खंडन नहीं किया तो इसका अर्थ कि आप उसे स्वीकार कर रहे हैं। ध्यान रखिए, यह बात संसद के रिकॉर्ड में शामिल हो गई। 

प्रधानमंत्री ने यह संदेश देने की कोशिश की कि पराजय से हताश विपक्ष विशेषकर कांग्रेस और उसके प्रथम परिवार को आम जनता की मनोस्थिति का आभास नहीं है। इसलिए आशाजनक तस्वीरों की जगह ऐसे बयान दे रहा है, ऐसी गतिविधियां कर रहा है जिनसे जनता अप्रभावित है। अपनी आक्रामक शैली में उन्होंने कहा भी कि हमारा सुरक्षा कवच 140 करोड़ जनता है जिनका उन पर विश्वास है। कांग्रेस पर व्यंग्य करते हुए उन्होंने कहा कि हार्वर्ड के क्रेज वाले लोगों को पता होगा कि वहां-द राइज एंड डिक्लाइन ऑफ इंडियाज कांग्रेस पार्टी पर अच्छा रिसर्च हुआ और मुझे विश्वास है कि भविष्य में कांग्रेस की बर्बादी पर हार्वर्ड नहीं, बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में अध्ययन होना ही होना है और कांग्रेस को डुबोने वाले लोगों पर भी अध्ययन होने वाला है। राहुल गांधी और उनके परिवार पर इससे बड़ा कटाक्ष और आक्रमण नहीं हो सकता। इसका जवाब देना पार्टी के लिए संभव नहीं है। उन्होंने और आगे चलकर दुष्यंत कुमार की यह पंक्ति उद्धृत की-तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नहीं, कमाल यह है कि फिर भी तुम्हें यकीन नहीं। 

भाजपा और मोदी समर्थक लंबे समय तक कांग्रेस के लिए इन पंक्तियों का उल्लेख करेंगे। राहुल गांधी और विपक्ष के नेता कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री ने अडानी पर क्यों नहीं बोला? कोई भी बुद्धिमान प्रधानमंत्री ऐसा नहीं करेगा। हिंडनबर्ग रिपोर्ट एक कंपनी पर है,भारत की सरकार पर नहीं। सरकार का दायित्व यह है कि वह भारत की अर्थव्यवस्था का ध्यान रखते हुए सभी नियामक एजैंसियों को अपनी भूमिका ठीक से निर्वहन करें, भारत विरोधी या सटोरिए कोई इसका लाभ उठाकर अर्थव्यवस्था को कमजोर न करें एवं हमारे देश के कोई उद्योगपति ने अगर भ्रष्टाचार या कानून का उल्लंघन नहीं किया है तो उसे भी क्षति पहुंचाने में सफल नहीं हो, इसकी व्यवस्था करें। 

प्रधानमंत्री ने विपक्ष द्वारा घेरने पर रक्षात्मक होने की बजाय आक्रामक होकर सही रणनीति अपनाई है। उन्होंने यू.पी.ए. शासनकाल को आतंकवादी हमलों, घोटालों और आर्थिक गिरावट का काल बताकर संदेश दिया कि उनका काल उससे बिल्कुल अलग है। उनके काल में भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई हुई है इसलिए विपक्ष परेशान होकर इकट्ठा है। उन्होंने व्यंग्य में कहा भी कि ई.डी. ने इन्हें इकट्ठा कर दिया है। इसमें सीधे किसी को भ्रष्टाचारी न कहकर भी यही निहित है कि सारे भ्रष्टाचारी हैं। इसका दूसरा संदेश दुनिया के लिए यह है कि हमारे नेतृत्व में भारत में बड़े स्तर का भ्रष्टाचार संभव नहीं है, क्योंकि यहां बड़े नेताओं व अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्रवाई हो रही है और आगे भी होगी। दूसरे, भारत प्रगति के जिस रास्ते पर है उससे पीछे नहीं जा सकता क्योंकि नीयत और नीति सही है।-अवधेश कुमार     
    


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