जल संचयन से ही सुरक्षित होगा भविष्य

punjabkesari.in Tuesday, Mar 22, 2022 - 05:14 AM (IST)

देश के कुछ हिस्से में भीषण गर्मी की शुरूआत हो चुकी है। धीरे-धीरे जमीन का जलस्तर नीचे की ओर खिसकता चला जाएगा। फिर जलसंकट की समस्या पर मंथन शुरू होगा। बहरहाल, हमें चाहिए कि संकट से पहले ही उसका निदान निकाल लें। वैसे बता दें कि भारत में जल संचयन के प्रति उदासीनता भविष्य में जल संकट को बुलावा दे रही है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट पर गौर करें तो पता चलता है कि भारत में 2030 तक पानी खत्म होने की कगार पर आ पहुंचेगा। इस विपत्ति से निपटने के लिए हमें एक ऐसी तकनीक विकसित करनी होगी जिससे वर्षा जल को अधिक से अधिक संचित किया जा सके।प्रश्न यह है कि क्या बिना वर्षा जल संचयन के घर-घर जल पहुंच सकेगा, जहां अभी हम पूरे देश में बारिश और अन्य संसाधनों से मिलने वाले जल का मात्र 5 फीसदी ही पेयजल के रूप में प्रयोग कर पा रहे हैं? 

आज सरकार की प्रमुख चुनौती कृषि के लिए आवश्यक जल उपलब्ध कराना है। बड़ी मात्रा में जल कृषि और औद्योगिक इकाइयों में प्रयोग होता है। अनेक स्रोतों का जल प्रदूषित हो चुका है, जिनमें से 27544 जगहों पर आर्सेनिक तथा अन्य कारणों से पानी की गुणवत्ता खराब है। सरकार उनमें से 11200 जल स्रोतों की गुणवत्ता सुधारने का कार्य अपने हाथ में ले चुकी है। इनमें से 4071 जल स्रोतों की गुणवत्ता सही हो चुकी है और करीब 5000 पर काम चल रहा है। 

देश में व्याप्त जल समस्या एवं पेयजल की उपलब्धता को सुनिश्चित करने हेतु जल संरक्षण और उसके सदुपयोग के लिए आमजन को जागरूक करना अत्यंत आवश्यक है। साथ ही जल शक्ति अभियान कार्यक्रम का उद्देश्य पानी बचाने और सिंचाई के दौरान इसका किफायती इस्तेमाल करने को प्रोत्साहित करना है। अब प्रत्येक व्यक्ति को अपने हितार्थ आगे आना और इस जल संचयन के कार्य में सभी के साथ कदमताल करना पड़ेगा, तभी हमारा भविष्य सुरक्षित हो सकेगा। इस संबंध में 4 बातों पर ध्यान देना होगा। पहली, जल संरक्षण व वर्षा के पानी को रोकना। दूसरी, पारंपरिक व अन्य जलस्रोतों का पुनरुद्धार। तीसरी, पानी का पुन:उपयोग व जल संरचनाओं की रिचार्जजिंग तथा चौथी, वॉटरशैड का विकास और व्यापक पौधारोपण। 

देश में जल की खपत लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन जल संचयन की कोई विशेष तकनीक नहीं लाई जा सकी। यहां तक कि सरकार द्वारा भी वर्षा जल का संचयन करने की कोई विशेष विधि तैयार नहीं की गई है। देश में लगभग 4000 अरब घन मीटर वर्षा होती है। बाढ़ से बहुत-से इलाके त्रस्त हो जाते हैं। अगर बाढ़ के पानी का संचयन कर लिया जाए तो वर्षों तक पानी की समस्या ही नहीं आएगी। लेकिन यह किया कैसे जाए? गौरतलब है कि हम वर्षा के पानी का मात्र 17 प्रतिशत यानी 700 अरब घन मीटर ही उपयोग कर पाते हैं। सभी लोगों को यही संदेश है कि खेत का पानी खेत में तथा छत का पानी छत पर संचयित करें, तभी भविष्य में जल संकट से बचा जा सकेगा। निश्चित ही यह कार्य केवल एक व्यक्ति का नहीं है इसके लिए सभी लोगों को एक-एक बूंद कर जल बचाने की जरूरत है। 

लोगों की जल के प्रति जागरूकता ही जल संचयन का कारण बनेगी। विद्यालयों, महाविद्यालयों में शिक्षकों का भी यही कत्र्तव्य है कि वे बच्चों को जल संचयन की नई-नई विधियों से अवगत कराएं जिससे जल शक्ति अभियान को एक स्पष्ट दिशा प्रदान की जा सके। सरकार द्वारा जल स्तर के सुधार में तथा जल की सब तक पहुंच बनाने के लिए अनेक प्रकार की योजनाएं चलाई जा रही हैं। नल से जल की योजना भी चलाई गई है, जिसमें से 82 फीसदी ग्रामीण हिस्सों में पेयजल की आपूर्ति नल के माध्यम से करने का लक्ष्य रखा गया है। 

देश की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है और जलापूर्ति के लिए हर साल हम बोरिंग करते जा रहे हैं। जलापूर्ति के 2 प्रमुख स्रोत हैं। नदी और भू-जल। लेकिन आबादी बढऩे से भूजल का अधिक दोहन हो रहा है, तो वहीं वन क्षेत्र भी सिमटते जा रहे हैं परिणाम स्वरूप भू-जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। हमें वर्षा जल संचित करने के लिए विदेशों में हुए सफल प्रयासों से सीख लेना चाहिए, अन्यथा इतनी बड़ी आबादी को जल उपलब्ध करा पाना असंभव हो जाएगा। ब्राजील ने रूफ टॉप रेन वाटर हार्वैसिटिंग की दिशा में सबसे अच्छा काम किया है। इस तकनीक में घर की छत पर गिरने वाले बारिश के पानी को पाइप के जरिए बड़े-बड़े टैंकों में इकट्ठा किया जाता है। आज ब्राजील के पास पूरी दुनिया का 18 फीसदी ताजा पानी उपलब्ध है। 

इसराईल में किसान पानी की स्प्रिंकलर विधि से सिंचाई करते हैं जिससे पानी की बचत होती है। वर्षों तक बूंद-बूंद पानी का संरक्षण करने की वजह से ही आज इसराईल में पानी की कोई समस्या नहीं है। वह दूषित पानी को रिसाइकिल करने के मामले में वल्र्ड लीडर बन चुका है, जिसे फिर से उपयोग के लायक बनाया जाता है, जिसका इस्तेमाल खेती के लिए किया जाता है। विशाल पाइपों के जरिए पानी को एकत्र कर माइक्रो ऑर्गेनिज्म पद्धति के द्वारा इसे साफ किया जाता है। इस पद्धति से 99.8 प्रतिशत पानी रिसाइकिल किया जाता है, जिसे पीया और उससे नहाया भी जा सकता है। 

जर्मनी में भी रेन वाटर हार्वेस्टिंग छोटे स्तर पर शुरू हुआ था। इस अभियान को शुरू करने के पीछे पर्यावरण के प्रति संवेदनशील लोग थे। लेकिन धीरे-धीरे इस रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से इंडस्ट्री भी जुडऩे लगी। जर्मन सरकार ने नैशनल रेन वाटर और ग्रे वाटर के नाम से प्रोजैक्ट चलाए हैं। सरकार पानी बचाने वाली तकनीक अपनाने वालों को आॢथक मदद भी देती है। हमें भी कुछ ऐसा ही प्रयास करने की जरूरत है। इसी तरह सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, चीन आदि अन्य कई देश भी पानी के संकट से निपटने में उन्नत तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। भारत में भी वर्षा जल संचयन के लिए तकनीक का होना बहुत जरूरी है और तकनीक का उपयोग कर पानी के अपव्यय को रोकना होगा। इससे देश जल के मामले  में भी आत्मनिर्भर होगा।-लालजी जायसवाल
 


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