पंजाब के किसानों की ‘तबाही’

punjabkesari.in Monday, Oct 05, 2020 - 02:01 AM (IST)

विवादास्पद कृषि बिलों के प्रति राष्ट्रपति की सहमति मेहनतकश किसानों के ताबूत में आखिरी कील ठोकने जैसा है, जो अपनी जान दाव पर लगाकर सड़कों पर निकल आए हैं मगर अभी तक मोदी सरकार टस से मस नहीं हुई। इन कानूनों को देश के संघीय ढांचे को तबाह कर शासन को निजी हाथों (कार्पोरेट्स) में देने की निरंतर तथा सरगर्म कोशिश माना जा सकता है। कृषि क्षेत्र पर यह राजग सरकार की ओर से बड़े सोचे-समझे ढंग से लोकतांत्रिक  तथा बहुलतावादी विशेषताओं वाले ढांचे को तार-तार करने की एक चाल है। 

खोखली तथा लोगों को गुमराह करने वाली नीतियां बनाना ही इस सरकार की विशेषता रही है। फिर चाहे यह विनाशकारी नोटबंदी हो, गलत ढंग से लागू किया  जी.एस.टी.  (पंजाब तथा अन्य राज्यों का भारी मुआवजा अभी भी बाकी है) या नापाक सी.ए.ए. भाजपा सरकार की ओर से बेरहमी से मतदाताओं पर थोपे गए कानून हैं। पार्टियों के देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के बावजूद किसान विरोधी बिलों को पास करने की जल्दबाजी में केंद्र सरकार ने सहकारी संघवादी ढांचे को छिन्न-भिन्न कर दिया। 

तीन कृषि कानूनों ने देश के किसानों को परेशानी में डाल दिया है क्योंकि उनको अपनी रोजी-रोटी के खो जाने का डर है। कानूनों को पास करना एक ऐतिहासिक क्षण करार दिया गया। वास्तव में कृषि के इतिहास में यह एक काला दिन था। वर्तमान दौर में विश्वव्यापी कोरोना महामारी के दौरान केंद्र सरकार ने राज्यों की अनदेखी कर देश के कृषि ढांचे को सुधारने तथा इसे प्रफुल्लित करने के लिए अध्यादेश लागू किए। आखिर इसमें इतनी जल्दबाजी की क्या जरूरत थी। 

केंद्र की ओर से इन कानूनों को पास करने में उत्सुकता दिखाई गई तथा शिअद के गठबंधन को राजग बचाने में नाकामयाब रही जो हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफे के तुरन्त बाद ही जग-जाहिर हो गया। हालांकि शिअद की पंजाब के किसानों की जड़ें काटने वाली कोशिशें शुरू से ही स्पष्ट थीं मगर संसदीय सत्र में नाटकीय ढंग से उनके गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले व्यवहार का पर्दाफाश हो गया। उंगली पर खून लगाकर बादलों की ओर से पंजाब को बचाने वाली की जा रही कोशिशें निराधार हैं। अब असल में शिअद का चेहरा बेनकाब हो गया है और अब उनकी बात पर कोई भी यकीन नहीं करता। 

पंजाब देश की खाद्य सुरक्षा को यकीनी बनाने में हमेशा से ही अग्रणी रहा है जिस कारण राज्य को ‘भारत का अन्नदाता’ का खिताब मिला है। आज पंजाब के किसान, आढ़तिए तथा कई अन्य सहयोगी कृषि मजदूर नए कानूनों के मद्देनजर खुद को बेबस तथा असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।  उनको लगता है कि नए कानूनों का उनके जीवन पर भारी प्रभाव पड़ेगा। केंद्र का दावा कि वह किसानों को आत्मनिर्भर किसान बनाना चाहती है यह कोरी पाखंडबाजी है।यह कानून केवल किसानों को मुट्ठीभर बड़े कार्पोरेट पर निर्भर होना बना देंगे। उनको अपने ही खेतों पर बंधुआ मजदूरों की तरह कार्य करने के लिए विवश कर दिया जाएगा। 

2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने की आड़ में केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र में बड़े स्तर पर कार्पोरेट घरानों के प्रभाव के लिए रास्ता समतल कर रही है तथा गरीब किसान के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना चाहती है। कानूनों का उद्देश्य किसान की सुरक्षा तथा उसका सशक्तिकरण  करना है तथा किसानों की उपज के लिए आपसी सहमति से बनती कीमत की सहूलियत देना है। पर मैं स्पष्ट कर देती हूं कि यह उद्देश्य प्राप्त नहीं किए जा सकते। इसके दो कारण हैं पहला यह कि प्राइस एश्योरैंस एंड फार्म सॢवसेज एक्ट के तहत ठेके पर खेती करने से पहले इकरारनामा दाखिल करना लाजिमी नहीं था।  यदि ऐसा इकरारनामा लाजिमी नहीं है तो ऐसी शर्त होने के पीछे भाजपा सरकार की नीयत पर अपने आप सवाल खड़े हो जाते हैं। 

दूसरे एक्ट के अनुसार किसानों को उत्पादों की गारंटीशुदा कीमत मिलेगी। यह गारंटीशुदा कीमत क्या है। इसकी परिभाषा एक्ट में नहीं दी गई और न ही यह बताया गया है कि ऐसी गारंटीशुदा कीमत कम से कम समर्थन मूल्य से कम होगी या नहीं। यह वर्तमान समय में भाजपा नेताओं के इरादे को प्रकट करता है। कृषि के यह नए कानून किसानों के लिए शोषण के रास्ते खोलते हैं। किसानों ने कृषि कानूनों के विरुद्ध प्रदर्शन कर राजग सरकार की दोधारी नीति का पर्दाफाश किया है।-महारानी परनीत कौर कांग्रेसी लोकसभा सदस्य (पटियाला)


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