जिस देश का बचपन भूखा हो, उसकी जवानी क्या होगी
punjabkesari.in Wednesday, Feb 01, 2017 - 12:43 AM (IST)

महा संयोजक जनगणना आयुक्त द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2014-15 में देश की कुल आबादी 132 करोड़ 61 लाख 55 हजार तक पहुंच चुकी है। देश के 5,93,732 गांवों की जनगणना के अनुपात से वास्तव में दो-तिहाई भारत अभी भी गांवों में बसता है। संयुक्त राष्ट्र मिलेनियम डिवैल्पमैंट के मुताबिक विश्व के 120 करोड़ अति गरीब लोगों का तीसरा हिस्सा भारत में है।
नैशनल न्यूट्रीशन मॉनीटरिंग ब्यूरो की एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार देश के लगभग 84 करोड़ लोगों व उनके बच्चों को जरूरत से कम भोजन व दूध उपलब्ध होता है। 3 वर्ष व उससे कम के बच्चों के लिए 300 मि. लीटर दूध रोजाना की जरूरत है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों की हालत अधिक ङ्क्षचताजनक है जहां बच्चों को सिर्फ 80 मि. लीटर दूध ही उपलब्ध होता है। इस सर्वे के मुताबिक ग्रामीण भारत की महिलाओं की स्थिति शहरों की तुलना में और भी भयावह है।
आजीविका ब्यूरो नाम की संस्था द्वारा 5000 महिलाओं पर करवाए गए सर्वे के मुताबिक ग्रामीण भारत की 35 प्रतिशत महिलाएं कमजोरी की शिकार हैं जिसके परिणामस्वरूप 46 प्रतिशत नवजातों को पहले 6 महीने तक मां का दूध नसीब नहीं होता। इन क्षेत्रों में प्रत्येक 3 में से एक महिला के बच्चे कुपोषण का शिकार हैं व उनके बच्चों ने हफ्तों से दूध का सेवन नहीं किया है।
भारतीय बाल स्वास्थ्य अकादमी के अनुसार देश में प्रतिवर्ष पैदा होने वाले 2.71 करोड़ बच्चों में से 28 फीसदी का वजन सामान्य से बहुत कम होता है। मात्र 47 प्रतिशत शिशुओं की डिलीवरी अस्पताल में होती है और सिर्फ 41 प्रतिशत नवजातों को ही पैदा होने के बाद मां का दूध नसीब होता है। भारत में प्रतिदिन 6400 बच्चों की मृत्यु कुपोषण के कारण हो जाती है।
आज भारत विश्व में कुपोषित बच्चों की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन गया है, जबकि ब्राजील व चीन दूसरे व तीसरे स्थान पर हैं। सेव द चिल्ड्रन की ताजा वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 10 लाख बच्चे अपने जीवन का दूसरा दिन नहीं देख पाते।
भारत में नवजातों की मृत्यु दर के मामलों में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की रैंकिंग 46 आंकी गई है। भारत में प्रतिवर्ष 16 लाख बच्चे 5 साल की उम्र पूरी करने से पहले ही दम तोड़ देते हैं व लगभग 4800 बच्चों की एक साल के भीतर कुपोषण के कारण मौत हो जाती है। भारतीय आयुॢवज्ञान परिषद ने राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम में दावा किया है कि 14 वर्ष तक के 81869 बच्चे कैंसर से पीड़ित हैं व 29 प्रतिशत बच्चे कुपोषणके कारण बाल्यावस्था में ही कैंसर का शिकार हो जाते हैं।
आई.एल.ओ. द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 70 प्रतिशत लोगों को भरपेट खाना नसीब नहीं होता। यही कारण है कि रोजी-रोटी कमाने की ङ्क्षचता में देश के 20 करोड़ बच्चों की संख्या बाल श्रमिक है जो घरों, होटलों, ढाबों व लघु उद्योगों में कार्य कर रहे हैं। देश में 13.24 करोड़ परिवारों की आय इतनी कम है कि वह अपने बच्चों को पौष्टिक भोजन व दूध तक उपलब्ध नहीं करवा सकते।
वल्र्ड बैंक के मुताबिक भारत के छोटे कस्बों व ग्रामीण क्षेत्रों में कुपोषित बच्चों की स्थिति में सुधार नहीं हुआ व यदि यही हालात रहे तो सरकार के महत्वाकांक्षी प्रोजैक्ट जैसे मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया बुरी तरह प्रभावित होंगे। ऐसी बात नहीं है कि उपरोक्त आंकड़े हमारे राजनेताओं की नजर में पहली बार आए हों लेकिन खेद की बात है कि शासक वर्ग समूचे तौर पर गरीबों व उन पर आश्रित बच्चों के कष्टों के प्रति संवेदनहीन है।