‘धू-धू जलती चिताओं’ की ज्वाला में ‘सूख गए पीड़ितों की आंखों के आंसू’

punjabkesari.in Tuesday, Oct 23, 2018 - 03:29 AM (IST)

अमृतसर में दशहरा पर्व पर रावण दहन के अवसर पर हुई रेल दुर्घटना पिछले 165 वर्षों के दौरान होने वाली अपनी तरह की भयावहतम रेल दुर्घटना है। दुर्घटना में अभी तक 61 लोगों की मृत्यु की पुष्टिï हो चुकी है। मृतकों में 11 महिलाएं और 13 बच्चे शामिल हैं जिनमें सबसे छोटे बच्चे की आयु 2 वर्ष और सबसे बड़े की आयु 16 वर्ष है।

एक ओर जहां इस घटना को लेकर राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर आरोप-प्रत्यारोप जोरों पर हैं तो दूसरी ओर पीड़ितों के प्रति प्रशासन द्वारा उतनी ही संवेदनहीनता के समाचार भी सुनाई दे रहे हैं। एक दुखद पहलू यह भी है कि एक ओर जहां दुर्घटना में घायल लोगों की चीख-पुकार मची हुई थी तो दूसरी ओर कुछ समाज विरोधी तत्व पीड़ितों की मदद करने की बजाय उनकी जेबों से मूल्यवान चीजें निकाल रहे थे। दुर्घटना में मारे गए या घायल हुए अपने परिजनों की तलाश में एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटक रहे लोगों के घावों पर संबंधित कर्मचारियों का ठंडा व्यवहार जले पर नमक का काम कर रहा था। 

अनेक लोग अपने परिजनों के चित्र हाथ में लेकर उनका अता-पता जानने के लिए भागते रहे। रविवार शाम तक भी खूनी रेल पटरियों की सफाई नहीं हो सकी थी। कुत्ते पटरियों पर बिखरा मांस खा रहे थे। इस खूनी रेल दुर्घटना में उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर की प्रीति के पति दिनेश,  बेटे अभिषेक तथा मां शिवपतिनम सहित 7 रिश्तेदार मृत्यु का ग्रास बन गए। स्वयं प्रीति अस्पताल में दाखिल है और उसकी बहन के दो बच्चों का भी कोई अता-पता नहीं है। अमृतसर में एक मोर्चरी में मोहकमपुरा के जितेंद्र और उनके डेढ़ वर्षीय पुत्र शिवम के पार्थिव शरीर एक ही फ्रीजर में रखे हुए थे। बेटे की लाश मृत पिता की छाती पर रखी थी। 

परिवार की लाडली कुसुम अपनी गर्भवती भाभी कर्मजोत कौर तथा परिवार की 2 अन्य महिलाओं को साथ लेकर दशहरा देखने गई और चारों की ही मृत्यु हो गई। एक अन्य दुर्घटना में नीरज और सोनिया नामक भाई-बहन, रेल के आने पर मची भगदड़ में भीड़ तले कुचले गए जबकि उनकी मां संदीप गंभीर रूप से घायल हो गई। फगवाड़ा में ब्याही अनु अपनी डेढ़ वर्षीय बेटी नूर के साथ दशहरा देखने अपने मायके अमृतसर आई थी लेकिन भीड़ के नीचे दब कर दोनों की ही मृत्यु हो गई। फगवाड़ा के भुल्लाराई की रजनी अपनी 2 वर्षीय बेटी नवरूप को लेकर दशहरा देखने मायके आई हुई थी और दोनों ही दुर्घटना का शिकार हो गईं। 

अभय सिंह और मनजीत दशहरे के दिन काम से छुट्टी लेकर अपने दोनों बच्चों को दशहरा दिखाने ले गए, जहां अभय सिंह, उसका चार वर्षीय बेटा एवं 2 वर्षीय बेटी तीनों मारे गए जबकि मनजीत की बाजू कट गई और वह अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी। 30 वर्षीय आरती दास ने इस दुर्घटना में अपने पति और डेढ़ वर्षीय मासूम बेटे को खो दिया। वह स्वयं अस्पताल में घायल पड़ी है। उसे घटना के बारे में नहीं बताया गया। होश आने पर जब भी वह अपने पति और बेटे के बारे में पूछती तो उसे यही जवाब दिया जाता कि वे ठीक हैं ताकि सदमे के कारण उसकी मृत्यु न हो जाए। अमृतसर के आत्मा राम ने अपने तीन में से दो बेटों को दशहरा के इस खूनीकांड में खो दिया। दोनों के नाबालिग बेटों ने अपने पिताओं को मुखाग्नि दी और बुजुर्ग आत्मा राम अपनी पथराई आंखों से अपने नौनिहालों की चिता जलते हुए देखते रहेे।

अपनी बेटी को खो चुकी अनिता नामक एक महिला गुरु नानक देव अस्पताल के आई.सी.यू. के बाहर थोड़ी-थोड़ी देर बाद घुटनों के बल झुक कर भगवान से अपने बेटे की सलामती के लिए प्रार्थना कर रही थी। आकाश नामक युवक ने कुछ ही दिन पूर्व रेलवे की भर्ती परीक्षा दी थी। उसे क्या पता था कि इससे पहले ही रेल उसे निगल जाएगी। भले ही इस घटना की जांच के आदेश दे दिए गए हैं परंतु इससे कुछ निकल कर सामने आ पाएगा इसमें संदेह है। भारत में बड़ी संख्या में ऐसे स्थान हैं जहां रेल पटरियों के आसपास इस तरह के आयोजन होते हैं। अत: फिलहाल तो इस घटना से यही सबक सीखा जा सकता है कि भविष्य में रेल पटडिय़ों के आसपास ऐसे आयोजनों पर तुरंत रोक लगाई जाए ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।—विजय कुमार 


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Pardeep

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