सर्जिकल स्ट्राइक व काला धन: क्या बदला, क्या मिला

punjabkesari.in Tuesday, Jul 03, 2018 - 02:16 AM (IST)

नीरस राजनीतिक मौसम को दो समाचारों ने गर्मा दिया है। इनमें से एक काले धन के बारे में है कि 2017 में स्विट्जरलैंड में भारत के काले धन के जमा होने में 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और यह 1.01 बिलियन फ्रैंक अर्थात 7000 करोड़ रुपए तक जा पहुंचा, जबकि इससे पिछले 3 वर्षों में भारत द्वारा काले धन के विरुद्ध कार्रवाई के कारण स्विस बैंकों में जमा राशि में कमी आई थी और मोदी ने घोषणा की थी कि मैं स्विस बैंकों में जमा सारे काले धन को वापस लाऊंगा और प्रत्येक भारतीय के खाते में 15 लाख जमा करूंगा। मैं न खाता हूं, न खाने दूंगा, जो आज एक जुमला बनकर रह गया है। 

दूसरा समाचार 28-29 सितम्बर, 2016 को पाक-अधिकृत कश्मीर में सर्जिकल स्ट्राइक की वीडियो क्लिप है। यह सॢजकल स्ट्राइक उड़ी सैक्टर में आतंकवादी हमले के बदले में की गई थी जिसमें 19 सैनिक मारे गए थे। इस सर्जिकल स्ट्राइक से आतंकवादियों के 9 अड्डे और बंकर नष्ट किए गए और अनेक आतंकवादी मारे गए। यह भारत की नीति में एक रणनीतिक बदलाव का संकेत भी था कि आंख के बदले आंख फोड़ी जाएगी और इससे पाकिस्तान हैरान रह गया। 

दोनों समाचारों को काफी समय हो गया है किंतु हमारे राजनेता इन पर शोर मचाने से बाज नहीं आ रहे हैं। यह बताता है कि देश में राजनीतिक मतभेद कितना गहरा है। सर्जिकल स्ट्राइक के कुछ हफ्तों बाद विपक्षी नेताओं ने इसके बारे में संदेह व्यक्त किया था। राहुल गांधी ने मोदी पर आरोप लगाया था कि उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिकरण किया है और वह सैनिकों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। आज कांग्रेस तथा विपक्ष भाजपा पर सैनिकों के जीवन और बलिदान का लाभ उठाने का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि अगले वर्ष होने वाले आम चुनावों के मद्देनजर वह इसका उपयोग वोट प्राप्त करने के लिए कर रही है और अपनी सरकार की विफलताओं से लोगों का ध्यान भटकाने का प्रयास कर रही है। 

नि:संदेह सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो जारी करने का समय कुछ संदेह पैदा करता है कि भाजपा अपनी राष्ट्रवादी छवि का लाभ उठाना चाहती है और विपक्ष को भारतीय सेना की क्षमता पर संदेह व्यक्त करने वाले के रूप में प्रस्तुत करना चाहती है। कूटनीतिक दृष्टि से सर्जिकल स्ट्राइक का न केवल भौतिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है अपितु उन्होंने यह भी बता दिया है कि भारत की पाक नीति में बदलाव आया है और वह अतीत की भांति पाकिस्तान तथा उसकी आतंकवादी सेना से निपटने के लिए पुराने उपाय नहीं अपनाएगी। 

किंतु फिर भी पाकिस्तान ने आतंकवादियों का समर्थन करना बंद नहीं किया। इससे एक प्रश्न उठता है कि क्या सर्जिकल स्ट्राइक से पाक स्थित आतंकवादियों को समाप्त करने का उद्देश्य प्राप्त हुआ है? क्या इससे जमीनी स्तर पर कुछ बदलाव आया है? और यदि हां, तो क्या? क्या इससे कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा हत्याओं में कमी आई है? बिल्कुल नहीं। क्या इससे घुसपैठ और पत्थरबाजी में कमी आई है? बिल्कुल नहीं। इसकी बजाय कश्मीरी युवा अब भी आतंकवादी समूहों में शामिल हो रहे हैं। 

भारत ने यह संदेश देने का प्रयास किया था कि हमारे मामलों में हस्तक्षेप मत करो और इससे मोदी की विश्वसनीयता बढ़ी थी कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर अग्रलक्षी नीति अपना रहे हैं। इसके अलावा सरकार द्वारा आतंकवादियों के विरुद्ध नीति के मामले में कोई समझौता न करने और बलूचिस्तान में बागियों को सार्वजनिक रूप से समर्थन देने की घोषणा करने से ‘नमो’ ने संकेत दिया था कि भारत एक एकीकृत पाकिस्तान के विकल्प को तलाश रहा है और उसके विभाजन में सहायता करने के लिए तैयार है। यह सर्जिकल स्ट्राइक नियंत्रण रेखा के पार पहली ऐसी सैनिक कार्रवाई थी जिसे राजनीतिक नेताओं ने स्वीकार किया था।

इससे पहले भी सर्जिकल स्ट्राइक हुए किंतु न तो उनकी सार्वजनिक रूप से घोषणा हुई और न ही सैनिक रूप से उन्हें स्वीकार किया गया अपितु उन्हें गोपनीय रखा गया और उसका कारण इनका सीमित उद्देश्य और दोनों पक्षों को कूटनयिक मार्ग खुला रखने का अवसर देना था ताकि भविष्य में दोनों पक्षों में शांति स्थापित हो सके। किंतु सितम्बर 2016 में सब कुछ बदल गया जब सर्जिकल स्ट्राइक को राजनीतिक रूप से स्वीकार किया गया और उसकी सार्वजनिक घोषणा की गई। इससे न केवल एक नया मार्ग खुला अपितु पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा कि वह नियंत्रण रेखा के प्रबंधन के लिए उपाय करे। यह सच है कि घाटी में ङ्क्षहसा बढ़ी है किंतु जिस तरह से पाकिस्तानी आतंकवादी सेना के शिविरों, प्रतिष्ठानों आदि पर हमले करते थे उनमें कमी आई है और एक अदृश्य लक्ष्मण रेखा खींच दी गई है। 

अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से इस सर्जिकल स्ट्राइक के लिए भारत को अमरीका का समर्थन मिला और उसने भारत की आलोचना नहीं की जबकि विश्व के अन्य देश मौन रहे। चीन जैसे पाकिस्तान के मित्रों ने इसका समर्थन नहीं किया और वस्तुत: जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में आतंकवाद के बारे में पाकिस्तान के दोगलेपन को उजागर किया तो चीन भारत से नाराज हुआ किंतु उसने स्वीकार किया कि उसका मित्र आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। इससे भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीति के पैटर्न में भी बदलाव आया। इससे पूर्व प्रत्येक आतंकवादी हमले के बाद भारत में आक्रोश होता था। भारत पाक प्रशासन, आई.एस.आई. और आतंकवादी तत्वों को हमले के लिए जिम्मेदार ठहराता था जिससे कूटनीतिक संबंध खराब होते थे। विरोध दर्ज करने के लिए पाक उच्चायुक्त को बुलाया जाता था। संपर्क और वार्ता बंद हो जाती थी और इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाया जाता था। उसके कुछ समय बाद फिर से वार्ता शुरू हो जाती थी। निश्चित रूप से हम घाटी में आतंकवादी घटनाओं पर अंकुश नहीं लगा पाए और स्थिति दिनों-दिन बिगड़ती जा रही है। अब स्थिति पर पुन: विचार किए जाने की आवश्यकता है।

घाटी में स्थिति को सामान्य बनाने के लिए सभी संभव कदम उठाए जाने चाहिएं, जनता का विश्वास जीता जाना चाहिए, उससे बातचीत की जानी चाहिए और सुशासन उपलब्ध कराया जाना चाहिए। कश्मीरी जनता में अलगाव की भावना आ रही है और कश्मीरी अपने को मुसलमान के रूप में मानने लगे हैं। भारत को जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक और भावनात्मक कदम उठाने होंगे तथा सीमा पार प्रायोजित आतंकवाद को समाप्त करने के लिए पाकिस्तान से वार्ता करनी होगी। सॢजकल स्ट्राइक की क्षमता बढ़ानी होगी ताकि पाकिस्तान को इसका खमियाजा भुगतना पड़े। हमें कश्मीर और पाकिस्तान के मामले में ठोस कूटनयिक कदम उठाने होंगे। 

दीर्घकाल में सीमा पार भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक को मीडिया में देना विवेकपूर्ण नहीं होगा। यह कूटनयिक दृष्टि से भी ठीक नहीं है। सर्जिकल स्ट्राइक के वीडियो को सार्वजनिक करने से पाकिस्तान में भी अनिश्चितता होगी क्योंकि वह भारत द्वारा अप्रत्याशित हमले के बारे में सशंकित रहेगा। पाकिस्तान स्वयं कठिन स्थिति में है। अब गेंद उसके पाले में है और उसको न खेलना विकल्प नहीं है। भारत को सजग रहना होगा क्योंकि घायल पाकिस्तान और बड़े हमले कर सकता है। भारत का वर्चस्ववादी रुख भारत और पाकिस्तान के बीच ही सीमित रहना चाहिए और इसके लिए एक उपाय इसराईली रक्षा सेनाओं की रणनीति है जिसके अंतर्गत वे दुश्मन को भारी नुक्सान पहुंचाते हैं और दंडात्मक कार्रवाई के भय के कारण अगले हमले में विलम्ब होता है तथा दुश्मन की महत्वाकांक्षाएं सीमित हो जाती हैं। 

जब तक कश्मीर के मूल मुद्दे का समाधान नहीं किया जाता, यह खेल जारी रहेगा। हमारे नेताओं को असली खतरे को पहचानना होगा और स्थिति के अनुरूप रणनीति अपनानी होगी। सेना, विदेश नीति और रणनीतिक योजनाएं रातों-रात नहीं बनती हैं अपितु इसके लिए दीर्घकालिक योजना, कूटनीति और संगठित बल की आवश्यकता होती है। जब तक आतंकवादियों का पूर्णतया सफाया नहीं हो जाता तब तक सैनिक टकराव की संभावनाएं समाप्त नहीं होंगी और तब तक ‘नमो’ उस विकल्प को नहीं छोड़ सकते। 

वह जानते हैं कि इस खेल में आगे रहना ही पड़ेगा। इसके लिए उन्हें इस बात को मानना पड़ेगा कि भारत सही मार्ग पर आगे बढ़ रहा है और कश्मीर की रक्षा की जानी चाहिए। हमें इस बात को ध्यान में रखना होगा कि किसी राष्ट्र का अस्तित्व इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि वह तात्कालिक कदम उठाता है अपितु इस बात पर निर्भर करता है कि वह खतरे को पहचाने और उचित समय पर उस खतरे के विरुद्ध कदम उठाए। मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि कोई भी भारत पर हमला और इसे हजार घाव देने की बड़ी-बड़ी बातें नहीं कर सकता है।-पूनम आई. कौशिश


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Pardeep

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