जिद्दी पाकिस्तानी सेना देश के ‘प्राकृतिक संसाधनों’ को लूट रही

punjabkesari.in Saturday, Sep 05, 2020 - 04:07 AM (IST)

पाकिस्तान में पहले से ही बुरी तरह से व्याप्त भ्रष्टाचार ने इसकी छवि और भी खराब कर दी है और अब अहमद नूरानी की एक जांच रिपोर्ट के प्रकाशन ने इसको और गहरा कर दिया। रिपोर्ट  ने खुलासा किया है कि लैफ्टिनैंट जनरल (रि.) आसिम सलीम बाजवा के परिवार के पास पाकिस्तान तथा विदेश में अरबों की सम्पत्ति है। आसिम बाजवा सी.पी.ई.सी. के चेयरमैन होने के साथ-साथ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को सूचना देने के लिए एक विशेष सहायक भी हैं। यह पद एक संघीय मंत्री के प्रोटोकोल को निभाने के जैसा है। 

रिपोर्ट दावा करती है कि बाजवा के भाई, पत्नी तथा दो बेटों के पास एक बहुत बड़ा कारोबारी साम्राज्य है। उन्होंने 4 देशों में 99 कम्पनियों को स्थापित किया जिनमें 133 रेस्तरां के साथ एक पिज्जा, फ्रैंचाइज शामिल हैं। जोकि 39.9 मिलियन अमरीकी डालर की सम्पत्ति बनती है। यह खुलासे इमरान खान के लिए तबाहकुन हो सकते हैं क्योंकि वह पहले से ही विदेशी निवेशकों से अंतर्राष्ट्रीय समर्थन पाने की कोशिश में हैं।

इमरान चाहते हैं कि विदेशी निवेशक पाकिस्तान में अपनी पूंजी लगाएं मगर पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो हजारों की कटौतियों के कारण मर रहा है। विदेशी निवेशकों को अपनी ओर आकर्षित करने की पाकिस्तानी मुहिम को आसिम बाजवा के मामले से झटका लग सकता है। यदि टॉप रैंक वाला एक पूर्व सैन्य जनरल और उसके बाद नौकरशाह बने आसिम बाजवा को अपने गृह की अर्थव्यवस्था पर लाभ कमाने के लिए भरोसा नहीं, तब विदेशी निवेशकों से हम यह बात कैसे सोच सकते हैं? 

पाकिस्तान में भ्रष्टाचार अनियंत्रित है और यह बात किसी से छिपी नहीं। जनरल जिया-उल-हक के मार्शल लॉ (1977-1988) के दौरान यह आम ज्ञान की बात थी कि कोई भी व्यक्ति किसी मिलिट्री जज को एक लाख रुपए देकर अपनी सजा में कटौती करवा सकता है। रिश्वत का यह पैसा सजा को दिए जाने के बाद अदा किया जाता था। अपील प्रक्रिया के दौरान भी रिश्वत ली जाती थी। सिविल पुलिस जो साधारण तौर पर एक कैदी को एक सैन्य जज के पास पेशी के लिए ले जाती थी वह भी उससे रिश्वत मांगती थी। कोड़े मारने को कम करने के लिए भी 15,000 रुपए की रिश्वत ली जाती थी। सैन्य अदालतों में यह पागलपन व्याप्त था कि वह लम्बी सजाएं देते थे तथा 10 से 15 कोड़े हर राजनीतिक कार्यकत्र्ता पर बरसाने का हुक्म देते थे। 

आज भ्रष्टाचार पाकिस्तानी सेना में भी फैला हुआ है। एक सिपाही सूबेदार को रिश्वत देता है यदि उसे गांव में अपने परिवार को मिलने के लिए छुट्टी लेनी होती है। यूनिवॢसटियों से लेकर साइंस रिसर्च लैब, इलैक्ट्रिसिटी पावर कम्पनियों से लेकर म्यूजियम तथा पार्कों तक ऐसा शायद ही कोई सिविल इंस्टीच्यूशन होगा जिसका प्रमुख एक पूर्व सैन्य अधिकारी नहीं है। 

पाकिस्तानी सेना की कारोबार में भागीदारी उतनी पुरानी है जितना पाकिस्तान खुद है। हालांकि 1980 के दौरान इसका व्यापारिक साम्राज्य बहुत विस्तृत हो गया और यह जनरल मुशर्रफ के कार्यकाल (1998-2008) के दौरान अपनी चरम सीमा पर था। अपनी किताब ‘मिलिट्री आई.एन.सी.’, में आयशा सदीका ने अनुमान लगाया है कि सैन्य कारोबार 2007 में 10 बिलियन पौंड का था जोकि उसी वर्ष कुल एफ.डी.आई.से 4 गुणा ज्यादा था। सदीका ने दावा किया है कि 100 उच्च सैन्य जनरलों के पास 3.5 बिलियन पौंड की सामूहिक सम्पत्ति है। 

पाकिस्तानी सेना, वायुसेना तथा नौसेना तीनों के पास सबसे बड़ा व्यापारिक समुदाय है जिनके नाम हैं-फौजी फाऊंडेशन, शाहीन तथा बाहरिया फाऊंडेशन्ज। आर्मी वैल्फेयर ट्रस्ट (1971 में स्थापित) पाकिस्तान का सबसे बड़ा ऋणदाता असरकारी बैंक है। मिलिट्री नैशनल लॉजिस्टिक सैल (एन.एल.सी.) पाकिस्तान में सबसे बड़ी शिपिंग तथा माल भाड़े की ट्रांसपोर्टर है। ऐसी भी रिपोर्ट आई कि रिटायरमैंट पर एक मेजर जनरल को 240 एकड़ ही कृषि भूमि प्राप्त होती है जिसकी लागत आधा मिलियन पौंड बनती है। इसके साथ-साथ 7 लाख पौंड की कीमत वाला शहरी रियल एस्टेट प्लाट भी उन्हें मिलता है। 

मार्कीट अर्थव्यवस्था को हड़पने में पाकिस्तानी सेना के उत्थान ने सीधे तौर पर स्थानीय सिविलियन निवेशक तथा उद्योगपतियों में टकराव ला दिया है। इस परिवेश में पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ तथा मिलिट्री जनरल सी.पी.ई.सी. के बिलियन डालरों की कीमत वाले अनुबंधों को आबंटित करने के मामले में मूर्ख बनाते रहे। 

पाकिस्तानी सेना कभी भी नवाज शरीफ या फिर संसद को लाखों-करोड़ों डालरों के प्रोजैक्ट का चार्ज नहीं सौंप सकती थी इसलिए उन्होंने एक विवादास्पद आम चुनाव के माध्यम से सत्ता से बाहर किया तथा उनकी जगह पर एक राजनीतिक नौसिखिए इमरान खान को सत्ता में लेकर आई। लैफ्टिनैंट जनरल (रिटा.) आसिम सलीम बाजवा को सी.पी.ई.सी. का चेयरमैन बनाया गया मगर सेना इमरान खान पर भरोसा नहीं करती। इस कारण कुछ माह पूर्व उन्होंने इमरान खान को फिरदौस आशिक आवां को हटाने के लिए बाध्य किया जोकि सूचना के लिए इमरान के विशेष सहायक थे। उनकी जगह पर आसिम सलीम बाजवा को नियुक्त किया गया। 

पाकिस्तानी सेना पूरी तरह से आम नागरिक की नजरों में अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। लोग सेना से नफरत करते हैं और इसे पाकिस्तानी संपदा को लूटने वाला बताते हैं। वह मानते हैं कि उनके निम्र जीवन जीने का पाकिस्तानी सेना ही बड़ा कारण है। जिद्दी पाकिस्तानी सेना देश के प्राकृतिक संसाधनों को लूट रही है और ब्लोच तथा सिंधी नागरिकों के साथ सैन्य संघर्ष करने में तुली हुई है और ज्यादा स्वायत्तता की मांग अब पूर्णतय: आजादी की मांग में तबदील हो चुकी है।-डा. अमजद अयूब मिर्जा


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