तुरन्त ध्यान देने योग्य कुछ सार्वजनिक समस्याएं

punjabkesari.in Friday, May 17, 2019 - 02:07 AM (IST)

गत लम्बे अर्से से भारतीय लोगों को विभिन्न समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। इनमेें  से एक समस्या राजनीतिक दहशत की रही है, जो किसी खास राजनीतिक गुट द्वारा अपनी मांगें मनवाने हेतु पैदा की जाती है। दूसरी किस्म की समस्या अमन-कानून की है, जो समाज विरोधी तथा अपराधी प्रवृत्ति वाले लोगों द्वारा पैदा की जाती है। ये लोग लूट-खसूट, मारधाड़ तथा लड़ाई-झगड़े द्वारा लोगों का जीना मुश्किल करते रहते हैं। तीसरी किस्म की समस्या देश के सर्वपक्षीय विकास की समस्या है। यह विकास न केवल चींटी की चाल जैसा हुआ है, बल्कि इसका बंटवारा भी भेदभावपूर्ण रहा है। 

भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, पर्यावरण प्रदूषण तथा तेजी से बढ़ रही जनसंख्या देश की कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जो प्रत्येक भारतीय हेतु ङ्क्षचता का विषय बनी हुई हैं। इन सभी समस्याओं के हल के लिए बहुत बड़े उपाय किए जाने के साथ-साथ बहुत सारा धन जुटाए जाने की आवश्यकता है लेकिन हमारी कुछ समस्याएं ऐसी हैं, जिनको यदि सरकार चाहे तो आसानी से हल कर सकती है। इसके लिए न तो अधिक धन की आवश्यकता है तथा न ही कोई बहुत बड़े साधन जुटाए जाने की, यदि आवश्यकता है तो बस इच्छाशक्ति की। 

ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन
हमारी एक ऐसी समस्या ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन की है। आजकल सड़क का सफर इतना जोखिम भरा बनता जा रहा है कि जब तक घर से बाहर गया व्यक्ति वापस घर नहीं आ जाता, तब तक सभी घर वाले ङ्क्षचता में डूबे रहते हैं। वाहन चालक ट्रैफिक नियमों की कोई परवाह नहीं करते, अपनी गाडिय़ों को लापरवाही से चलाते हैं तथा जहां उनका मन करता है, वहीं अपना वाहन रोक कर आने-जाने में रुकावट पैदा करते रहते हैं। बहुत-सी सड़कें जिन पर ज्यादा एक्सीडैंट होते हैं, उन्हें लोगों ने खूनी सड़कों का नाम दे दिया है। 

मोटरसाइकिलों पर गलियों-बाजारों में घूमते मनचले युवा पूरे क्षेत्र में दहशत का माहौल पैदा कर देते हैं। वे अपने कानों में मोबाइल लगाए रखते, मोटरसाइकिलों के हार्न व साइलैंसर हटा कर भयानक आवाजें पैदा करते हैं तथा इनको लापरवाही से चला कर न केवल आम जनता में ऐसा खौफ पैदा करते हैं कि वे सड़क पर आने से भी डरने लगते हैं, बल्कि अपनी जान भी खतरे में डालते हैं। इस प्रकार वे पता नहीं कितने सारे लोगों के हाथ-पांव तोड़ जाते हैं तथा ऊपर से उनके साथ गाली-गलौच भी करते हैं। यह समझ से बाहर है कि उनके मां-बाप उन्हें ऐसा करने से क्यों नहीं रोकते अथवा वे उनका कहना ही नहीं मानते? 

आवारा पशुओं की समस्या
आम लोगों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या आवारा पशुओं ने पैदा की हुई है। गली-बाजारों में हम आम ही कुत्तों, गऊओं, सूअरों आदि के झुंड फिरते देख सकते हैं। ये आवारा पशु एक तरफ ट्रैफिक में रुकावट डालते हैं तथा हादसों का कारण बनते हैं तथा दूसरी तरफ गंदगी का कारण बनते हैं। ये पशु किसानों के खेतों को भी नष्ट करते हैं। कई बार तो कुत्तों की दहशत के कारण गली में से गुजरना भी मुश्किल हो जाता है। अधिकतर लोगों ने इनके भय के  कारण प्रात: की सैर करनी बंद कर दी है। आवारा कुत्ते बच्चों के पीछे पड़ जाते हैं तथा वे बेचारे चीखें मारते इधर-उधर दौड़ते हैं। मोटरसाइकिलों तथा स्कूटर वालों के पीछे पड़ कर ये उनके एक्सीडैंट करवाते हैं। आवारा कुत्ते बहुत से व्यक्तियों खास कर बच्चों की जानों के दुश्मन सिद्ध हुए हैं तथा आवारा जानवरों ने बहुत से लोगों को जख्मी किया है। 

सरकार ने विभिन्न स्थानों पर सफाई अभियान शुरू करके एक अच्छी पहलकदमी की थी लेकिन अब यह अभियान भी ठुस्स होकर रह गया है। कहीं-कहीं कुछ रस्मी सी कार्रवाई होती है तथा बाकी सब कुछ ज्यों का त्यों कायम है। जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे हुए  हैं, गलियों-नालियों का बुरा हाल है तथा लोग पहले जैसे ही बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि नियमित तौर पर सफाई करने तथा कूड़े को समेटने के पुख्ता प्रबंध किए जाएं। इसके साथ ही लोगों की सोच को भी बदला जाए। हमारी लोक-मानसिकता की यह एक बहुत बड़ी  विडम्बना है कि जब भी कोई अन्य व्यक्ति कोई गलत कार्य कर रहा होता है तो हम उसे खूब भला-बुरा कहते हैं लेकिन जब वही काम हम खुद करते हैं तो यह सोचने का कष्ट भी नहीं करते कि हमारे बारे में लोग क्या सोच रहे होंगे? 

लोगों के लिए एक अन्य समस्या मोहल्लों तथा बस्तियों में खाली पड़े प्लाटों की है। बहुत से अमीर लोग सस्ती दरों पर प्लाट खरीद लेते हैं और फिर उन्हें लावारिस छोड़ देते हैं। ये प्लाट न केवल गंदगी का घर बन जाते हैं, बल्कि बहुत से जहरीले तथा बीमारियां फैलाने वाले जानवरों के लिए शरणस्थली भी बन जाते हैं। इन प्लाटों में जंगली घास-फूस तथा झाडिय़ां उग जाने के कारण यहां मक्खी, मच्छर, चूहे, सांप आदि पैदा होते रहते हैं। ये अक्सर हमारे घरों में ही आ घुसते हैं तथा कई बार किसी खतरनाक हादसे का कारण भी बन जाते हैं। बहुत से गैर जिम्मेदार लोग इन प्लाटों में अपने घरों का कूड़ा भी फैंकते रहते हैं, जिस कारण आस-पड़ोस में रहते लोगों का जीवन नरक बन जाता है। 

डी.जे. और स्पीकर की समस्या
एक अन्य समस्या सामाजिक तथा धार्मिक समारोहों में ऊंची आवाज में स्पीकर या डी.जे. आदि लगाकर सारे गली-मोहल्ले वालों को परेशान किए जाने की है। इससे एक तरफ विद्याॢथयों की पढ़ाई प्रभावित होती है, वहीं दूसरी तरफ लोगों की शांति इस कद्र भंग होती है कि वे अगले दिन भी अपना कामकाज ठीक ढंग से नहीं कर सकते। ऐसी स्थिति में जो हालत किसी बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की होती है, उसका तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। गली-बाजारों में किए जाने वाले अवैध कब्जों तथा आवाजाही में डाली जाती रुकावटें भी आम जनता के लिए बहुत बड़ी परेशानी का कारण बनती हैं। इसी प्रकार पर्यावरण प्रदूषण की समस्या भी लोगों के लिए जानलेवा सिद्ध हो रही है। 

ये ऐसी समस्याएं हैं जिनके हल के लिए इच्छाशक्ति की जरूरत है, धन की नहीं। यदि प्रशासन अपने नियमों को सख्ती से लागू करे तथा जहां जरूरत हो,वहां जरूरी सुधार कर ले तो फिर कोई कारण नहीं कि इन समस्याओं को जल्दी ही हल न किया जा सके। ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वालों को भारी जुर्माना किया जाना चाहिए तथा मोबाइल सुनते हुए वाहन चलाने वालों के मोबाइल जब्त किए जाएं। गली-बाजारों में गंदगी फैलाने वाले लोगों को उचित सजा दी जाए। अपने खाली प्लाटों की संभाल न करके  दूसरे लोगों के लिए मुश्किल पैदा करने वालों पर शिकंजा कसा जाए तथा जो अपने इन प्लाटों की नियमित तौर पर सफाई नहीं करते, उन्हें भारी जुर्माना किया जाए। 

आवारा पशुओं के प्रति भावनात्मक रवैया त्याग कर व्यावहारिक रवैया अपनाया जाए तथा  इनकी उचित संभाल की जिम्मेदारी उन लोगों पर डाली जाए जो इनका पक्ष तो लेते हैं लेकिन व्यावहारिक तौर पर कुछ नहीं करते। स्पीकरों आदि को इस्तेमाल किए जाने का न केवल समय सीमित किया जाए बल्कि अधिकतम आवाज भी निर्धारित की जाए। इस प्रकार गली-बाजारों तथा सड़कों पर अवैध कब्जों को सख्ती से हटाया जाए तथा पर्यावरण प्रदूषण को रोका जाए। लोगों के जनजीवन को सुखद बनाने के लिए उपरोक्त प्रशासनिक सुधारों पर तुरन्त ध्यान देने की जरूरत है।-प्रो. अछरू सिंह


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