श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी बेअदबी कांड : फिर चर्चा में
punjabkesari.in Thursday, Apr 15, 2021 - 04:48 AM (IST)
पिछली पंजाब सरकार, जिसके मुखिया प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल थे, के कार्यकाल दौरान हुआ श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी का कांड एक बार फिर चर्चा में आ गया है। समाचारों के अनुसार इसका कारण यह है कि इस कांड की जांच के लिए पंजाब सरकार द्वारा जो विशेष जांच दल (एस.आई.टी.) गठित किया गया था, उसे एवं उसकी ओर से चार वर्षों में की गई जांच की रिपोर्ट को पंजाब एंड हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया जाना है।
शिरोमणि अकाली दल (बादल) के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने अदालत के इस फैसले का स्वागत करते हुए एक ओर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह पर निशाना साधते हुए कहा कि उनकी ओर से बादल अकाली दल के नेतृत्व को बदनाम करने की जो साजिश की जा रही थी, वह असफल हो गई है। इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि शिरोमणि अकाली दल जो सौ वर्षों से गुरुद्वारों की सेवा-संभाल की जिम्मेदारी निभाता चला आ रहा है, कैसे श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी कर अथवा करवा सकता है? इसके विरुद्ध कैप्टन ने सुखबीर सिंह बादल को सलाह दी कि वह अदालत के इस फैसले पर जश्र न मनाएं, अभी इस कांड का चैप्टर बंद नहीं हुआ।
उन्होंने यह संकेत भी दिया कि वह उच्च न्यायालय के इस फैसले के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में जा सकते हैं। साथ ही उन्होंने इस कांड की जांच के लिए नए विशेष दल का गठन करने का भी संकेत दिया। उधर आम आदमी पार्टी के सांसद भगवंत मान ने कैप्टन को निशाने पर लेते हुए कहा कि यह फैसला उनकी बादल परिवार के साथ सांठ-गांठ का परिणाम है।
बेअदबी कांड : श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की जो घटनाएं पंजाब में हुईं, उसके लिए कारणों और उसके लिए जिम्मेदारों की पहचान को ‘चिटे’ दिन की तरह साफ माना जा रहा था। सिख जत्थेबंदियों की मान्यता है कि यह घटनाएं, सुखबीर सिंह बादल की ओर से श्री अकाल तख्त के जत्थेदार पर दबाव बना, करवाए गए उन फैसलों का परिणाम थीं, जिनके तहत एक आदेश से सौदा साध को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का रूप धारण करने के किए गए गुनाह को माफ किया जाना, और फिर सिखों द्वारा किए गए भारी विरोध के चलते, जारी दूसरे आदेश के तहत पहले आदेश को वापस ले लेना। उसके बाद ही श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी होने की घटनाएं लगातार होने लगीं। इन घटनाओं के दोषियों के पंजाब पुलिस की पहुंच से बाहर रहने के कारण, सिखों में समय की सरकार के विरुद्ध गहरा रोष पैदा हुआ, जिसके चलते सिख जत्थेबंदियों ने ‘नाम सिमरन’ करते हुए शांतमयी धरने दिए जाने का सिलसिला शुरू कर दिया।
जब पुलिस और सरकार की कोशिशों के बावजूद सिखों का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो एकाएक बहबलकलां में ‘नाम सिमरन’ कर, शांतमयी धरना दे रहे सिखों पर पुलिस की ओर से गोली चला दी गई, जिससे एक सिख युवक शहीद हो गया और कई घायल हो गए। इससे सरकार के विरुद्ध सिखों का गुस्सा कम होने के स्थान पर और बढ़ गया। सभी जानते हैं कि ये घटनाएं क्यों हुईं और इनके लिए कौन जिम्मेदार है?
बात सुखबीर के दावे की : पंजाब के राजनीतिज्ञ सुखबीर सिंह बादल के इस दावे, कि वह श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी कैसे कर या करवा सकते हैं, पर सवाल उठाते हुए पूछते हैं कि यदि वह और उनका दल इस गुनाह के लिए जिम्मेदार नहीं तो फिर पंजाबियों ने विधानसभा चुनावों में उन्हें पहले से तीसरे स्थान पर क्यों खिसका दिया। वे यह भी पूछते हैं कि 2017 के दिल्ली गुरुद्वारा चुनावों में उन्हीं के दल ने उन्हें अपने से दूर क्यों रखा? अब फिर उन्हीं के दल के मुखी गुरुद्वारा चुनावों में उनकी परछाईं तक को भी अपने पास फटकने तक नहीं दे रहे?
बगलें बजाई जा रही हैं : बताया गया है कि सिरसा जी आजकल इस बात पर बगलें बजा रहे हैं कि उन्होंने धर्म के साथ उस राजनीति की सांझ पर अदालती मोहर लगवा ली है, जिसमें कपट, लूट, चोरी, डाके, विश्वासघात आदि के इस्तेमाल को जायज माना गया है।
दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव : दिल्ली गुरुद्वारा चुनावों का पहला दौर समाप्त हो गया है जिसमें पंजीकृत सात पार्टियों में से 6 शिरोमणि अकाली दल (बादल)-46, जागो-41, शिरोमणि अकाल दल दिल्ली-34, पंथक सेवा दल-27, सिख सद्भावना दल-24, पंथक अकाली लहर-8, ने अपन उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं।
इस प्रकार गुरुद्वारा चुनावों में 130 आजाद उम्मीदवारों के साथ 310 उम्मीदवार मैदान में हैं। इनकी किस्मत का फैसला 25 अप्रैल को बक्सों में बंद होगा और 28 अप्रैल को मतों की गिनती होगी और उसके पूरा होने के साथ ही फैसला घोषित कर दिया जाएगा। उसके बाद पांच जत्थेदारों, पांच और सदस्यों को शामिल कर चार वर्षों के लिए 56 सदस्यों की महासभा का गठन पूरा कर, अधिसूचना जारी कर दी जाएगी।उसके बाद महासभा की बैठक बुलाकर नियमों के अनुसार दो वर्षों के लिए पांच पदाधिकारियों के साथ दस सदस्यों का चुनाव कर 15 सदस्यों की कार्यकारिणी का गठन पूरा कर, गुरुद्वारा प्रबंध उसे सौंप दिया जाएगा। दो वर्ष बाद फिर इसी प्रकार नई कार्यकारिणी का चुनाव किया जाएगा।
...और अंत में: कुछ ही दिन हुए एक वरिष्ठ अकाली नेता के साथ अचानक मुलाकात हो गई। उनके सिर पर बंधी केसरी दस्तार देख, उनसे एक सवाल पूछ बैठा कि सिंह साहिब अकाली दल की स्थापना के समय तो अकालियों के लिए काली दस्तार बांधनी जरूरी होती थी। अब अकालियों ने काली दस्तार को छोड़ नीली अथवा केसरी दस्तार बांधनी क्यों शुरू कर दी है? वह सज्जन कुछ अधिक ही मुंह फट निकले। उन्होंने झट से ही हंसते हुए जवाब दिया कि गुरमुखो उस समय अकालियों के दिल साफ हुआ करते थे और दस्तारें काली परन्तु आज के अकाली यह मानते हैं कि दिल काले होने चाहिएं, दस्तार का क्या है, वह किसी भी रंग की हो, चल जाएगी।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’