अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इतिहास को बदलने की दुकानें कितनी जायज ?'

punjabkesari.in Monday, Jan 30, 2017 - 05:35 PM (IST)

संजय लीला भंसाली का विरोध हुआ तो फिल्म जगत को असहिष्णुता दिखाई देने लगी और भंसाली इतिहास को ही बदल रहे हैं, उस पर थप्पड़ जड़ रहे हैं, क्या यह असहिष्णुता नही है। यह चिंतन का विषय है कि आजादी के नाम पर इतिहास को ही बदल देने वाली इनकी दुकाने कितनी जायज हैं? क्या इन्हें ऐसे ही चलने दिया जाना चाहिए? इतिहास  की किसी भी किताब में पद्मावती को अलाउद्दीन की प्रेमिका नहीं बताया गया है। इतिहास की किताबों की मानें तो उनके साहस और गौरवगाथा का वृहद इतिहास रहा है। सिंहल द्वीप के राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की बेटी रानी पद्मावती का विवाह, चित्तौड़ के राजा रतन सिंह से हुआ था। वीरांगना होने के साथ-साथ रानी पद्मावती बहुत खूबसूरत भी थीं। इतिहास की किताबें बताती हैं कि रानी की खूबसूरती पर दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी की बुरी नजर थी। इतिहास के मुताबिक पद्मावती के लिए खिलजी ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया।

इसके बाद उसने रानी पद्मावती के पति राजा रतन सिंह को बंधक बना लिया और पद्मावती की मांग करने लगा। इसके बाद चौहान राजपूत सेनापति गोरा और बादल ने खिलजी को हराने के लिए संदेश भिजवाया कि अगली सुबह पद्मावती उसके हवाले कर दी जाएगी। इसके लिए अगली सुबह 150 पालकियां खिलजी के शिविर की ओर भेजी गई। पालकियों को वहीं रोक दिया गया जहां रतन सिंह बंदी बनाए गए थे। इसके बाद पालकियों से सशस्त्र सैनिक निकले और रतन सिंह को छुड़ा कर ले गए। जब खिलजी को इस बात की जानकारी हुई कि रतन सिंह को छुड़ा लिया गया तो उसने अपनी सेना को चितौड़ भेज दिया, लेकिन वो किले में प्रवेश ना कर पाया। जिसके बाद खिलजी ने किले की घेराबंदी कर दी। घेराबंदी की वजह से रतन सिंह ने द्वार खोलने का आदेश दिया और खिलजी से लड़ते हुए मारे गए। जिसके बाद चित्तौड़ की महिलाओं ने आग जलाई और अपनी आन-बान को बचाने के लिए रानी पद्मावती सहित अन्य औरतों ने भी आग में कूद कर अपनी जान दे दी, इस तरह से अपनी जान देने को जौहर कहते थे।

ईस्वी सन् 1303 में चित्तौड़ के लूटने वाला अलाउद्दीन खिलजी था जो राजसी सुंदरी रानी पद्मिनी को पाने के लिए लालयित था। श्रुति यह है कि उसने दर्पण में रानी की प्रतिबिंब देखा था और उसके सम्मोहित करने वाले सौंदर्य को देखकर अभिभूत हो गया था। लेकिन कुलीन रानी ने लज्जा को बचाने के लिए जौहर करना बेहतर समझा। लेकिन संजय लीला भंसाली अपनी फिल्म में रानी पद्मावती की छवि और इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं। वे रानी पद्मावती को अलाउद्दीन खिलजीकी प्रेमिका के रूप में पेश करना चाहते हैं। मूवी के एक ड्रीम सीन में रानी पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी के बीच प्रेम दृश्यों को फिल्माया जाएगा। जिस रानी ने देश और कुल की मर्यादा के लिए 16 हजार रानियों के साथ जौहर करलिया था, उसे फिल्म में खिलजी की प्रेमिका के रूप में दिखाना वास्तव में आपत्तिजनक है।

क्रिएटिविटी और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर यह संस्कृति व इतिहास पर तमाचा है। मानव के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास हो सके और उनके हितों की रक्षा हो सके,इसके लिए भारत सहित विश्व के अनेक देशों में संवैधानिक स्तर पर व्यक्तियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली हुई हैं। व्यक्ति के सामान्य अधिकारों के रूप में उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को संरक्षित करना और मानवीय गरिमा को सुनिश्चित करने के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ज़रूरी माना गया हैं। इस तरह के अधिकार को लोकतंत्र की जीवंतता के लिए ज़रूरी माना गया हैं, क्योंकि लोकतंत्र में व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं का होना आवश्यक हैं। लेकिन कुछ वर्षों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की ढाल रखकर अप्रिय स्थितियां पैदा की जा रही हैं। सोशल मीडिया के आने के बाद से तो इसके दुरूपयोग की बाढ़ सी आ गई हैं, अभिव्यक्ति की आजादी का आड़ लेकर कभी दूसरे धर्मों का अपमान किया जाता हैं, मजाक उड़ाया जाता हैं।

कभी चित्रों के माध्यम से, तो कभी आपत्तिजनक भाषा एवं बयानों से देश के माहौल को बिगाड़ने की कोशिश की जाती हैं, कभी इतिहास को ही बदल दिया जाता है और ऐसे कारनामों को बड़ी बेशर्मी के साथ ‘मुक्त अभिव्यक्ति’ की संज्ञा दी जाती हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को आवश्यक माना तो गया हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं होना चाहिए की हम अनियंत्रित या अमर्यादित होकर मनमाना व्यवहार करने लगे। हमें यह समझना चाहिए की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की एक सीमा होती हैं, इसका उपयोग करते समय एक लक्ष्मण-रेखा का निर्धारण स्वयं कर लेना चाहिए। स्वतंत्रता के आधार पर किसी राष्ट्र, धर्म, समाज, संगठन का निरादर करना या अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इतिहास को ही बदल देना कहीं से भी जायज़ नहीं हैं।

किसी भी समाज या राष्ट्र के लिए इतिहास, उसके वर्तमान और भविष्य की नींव होता है। जिस देश का इतिहास जितना गौरवमयी होगा, वैश्विक स्तर पर उसका स्थान उतना ही ऊंचा माना जाएगा। वैसे तो बीता हुआ कल कभी वापस नहीं आता, लेकिन उस काल में बनीं इमारतें और लिखी गई गौरवगाथा उस काल को हमेशा सजीव बनाए रखते हैं। किसी भी देश की संस्कृति व परम्परा को जानना है तो वहां के इतिहास को जानना आवश्यक होता है। इतिहास देश की विरासत होता है। लेकिन विडंबना है कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इतिहास को तोड़-मरोड़ के पेश किया जा रहा है। संजय लीला भंसाली जैसे तथाकथित फिल्मकार धन की भूख और अपने निजी स्वार्थ के चलते,अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश के इतिहास को तोड़-मड़ोरकर इसे मिटाने की कोशिश कर रहे हैं, जो कहीं से भी उचित नही है।


                                                                                          सत्यम सिंह बघेल (आलेख)


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