योगी सरकार पर ‘हाथरस कांड’ की छाया

punjabkesari.in Friday, Oct 09, 2020 - 01:53 AM (IST)

सही या गलत, योगी आदित्यनाथ यह आभास दे रहे हैं कि वह अपने मंदिर परिसर में पुजारी के तौर पर अपनी पारम्परिक भूमिका के अधिक अनुकूल हैं, बजाय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर जो पद उन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कृपा से मिला है। 

हाथरस गांव में दुखद घटनाएं, जिनमें 14 सितम्बर को उच्च जाति के 4 व्यक्तियों द्वारा 19 वर्षीय एक दलित लड़की के साथ कथित गैंंग रेप तथा उस पर जघन्य हमला उत्तर प्रदेश में किए गए अत्याचारों का एक अन्य दुखद मामला है। युवा लड़की अपनी चोटों की ताव न सहते हुए 29 सितम्बर को इस दुनिया को छोड़ गई। इतना ही परेशान करने वाला था पुलिस द्वारा जल्दबाजी में रात को लगभग 2.30 बजे मृतका का अंतिम संस्कार करना जिसकी सूचना उसके पारिवारिक सदस्यों को भी नहीं दी गई। उत्तर प्रदेश पुलिस के 300 पुलिसकर्मी, पुलिस के 17 वाहनों तथा 5 बैरीकेड्स ने गांव को वास्तव में एक किले में बदल दिया। मैं पूछना चाहता हूं कि क्या हाथरस गांव के लोगों को राज्य के दुश्मनों के तौर पर देखा गया था? 

यह घटनाएं आधारभूत मानवाधिकारों तथा लड़की के पारिवारिक सदस्यों की संवेदनाओं की उपेक्षा बारे पुलिस कर्मी तथा जिला मैजिस्ट्रेट (डी.एम.) प्रवीण लश्कर की मनमानी पर रोशनी डालती है। पारिवारिक सदस्यों ने मृतका के शव की मांग की थी क्योंकि वे हिंदू परम्पराओं का निर्वहन कर हिंदू बहुल राज्य का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं? जिला मैजिस्ट्रेट की निजी भूमिका विशेष तौर पर परेशान करने वाली थी।

एक वीडियो में हाथरस के डी.एम. को आधिकारिक नजरिए से अपने वक्तव्यों को बदलने के लिए धमकाते दिखाया गया है। उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा जारी की गई फोरैंसिक रिपोर्ट जिसमें रेप न होने का दावा किया गया है, विश्वसनीय नहीं है क्योंकि सैंपल लड़की के कथित रेप के 11 दिनों बाद एकत्र किए गए थे। सरकारी दिशा-निर्देश कड़ाई से यह कहते हैं कि फोरैंसिक सबूत घटना के अधिक से अधिक 96 घंटों के भीतर एकत्र कर लेने चाहिएं। 

संबंधित घटनाक्रमों को देखते हुए यह संतोषजनक है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाथरस की घटनाओं का स्वत: संज्ञान लेते हुए जिला तथा पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों से 12 अक्तूबर को मामले की सुनवाई पर उपस्थित रहने को कहा है। मुझे आशा है कि हाईकोर्ट ने इस सारे खेल पर नजर रखी है। इससे पीड़िता के परिवार के लिए यह आशा बनी हुई है कि अभी तक सब कुछ गंवा नहीं दिया गया। लोगों में बढ़ते हुए रोष तथा पेचीदा कानूनी प्रक्रिया के मद्देनजर आदित्यनाथ सरकार अचानक 3 अक्तूबर को डैमेज कंट्रोल की मुद्रा में आ गई तथा हाथरस में सभी घटनाक्रमों की सी.बी.आई. के जांच के आदेश दे दिए, जिनमें परिवार की उपस्थिति के बिना जल्दबाजी में लड़की का अंतिम संस्कार भी शामिल है। यहां महत्वपूर्ण प्रश्र यह है कि क्या सी.बी.आई. अपना कार्य उचित रूप में तथा ईमानदारी से करेगी? 

मैं यह कहना चाहता हूं कि सत्ता उत्तर प्रदेश के अधिकारियों के लिए सच्चाइयों से अपने मन तथा आंखें बंद करने का लाइसैंस नहीं है। इसका इस्तेमाल ‘अपराध को रोकने व पता लगाने’ हेतु समाज के अच्छे के लिए  किया जाना चाहिए। मैं इस अवसर पर कई वर्ष पूर्व हिसार पुलिस मामले में सुप्रीमकोर्ट द्वारा दिए गए उसके ऐतिहासिक निर्णय में की गई टिप्पणियों को याद करना चाहता हूं। सम्माननीय जजों, जस्ट्सि ए.एस. आनंद तथा जस्ट्सि फैजानुद्दीन  ने कहा था कि यह वास्तव में एक दुखद दिन होगा यदि आम जनता के मन में यह धारणा घर कर ले कि पुलिस बल समाज के हितों की रक्षा के लिए नहीं है और यदि एक बार ऐसी धारणा बन गई तो इसके विनाशकारी परिणाम होंगे। 

19 वर्षीय लड़की की मौत के 2 घंटों के भीतर ही कथित रूप से 2 अन्य दलित लड़कियों की उत्तर प्रदेश में मारपीट करने के बाद हत्या कर दी गई। कोई हैरानी नहीं कि उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के अधिकतम मामले दर्ज होते हैं। नैशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के मुताबिक भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 14.7 प्रतिशत है। नवीनतम आंकड़े दर्शाते हैं कि प्रतिदिन 10 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाता है।

उत्तर प्रदेश सरकार प्रत्यक्ष तौर पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के अपने प्राथमिक कार्य में असफल रही है। इसने दिल्ली में 2012 के निर्भया दुष्कर्म मामले तथा महिलाओं की सुरक्षा तथा सम्मान को लेकर जस्ट्सि जे.एस. वर्मा नीत समिति द्वारा दिए गए सुझावों से कुछ नहीं सीखा। लखनऊ में अधिकारियों को महिला सुरक्षा के लिए बने कानूनों की धाराओं को लागू करने में कड़ाई बरतनी होगी। 

यह अवश्य याद रखा जाना चाहिए कि भारत के लोकतंत्र को शून्य की स्थिति में नहीं चलाया जा सकता। विपक्षी नेताओं को शासकों द्वारा किए जाने वाले गलत कार्यों के खिलाफ रोष प्रकट करने का पूरा अधिकार है। 5 अक्तूबर को उत्तर प्रदेश पुलिस एक षड्यंत्रकारी सिद्धांत के साथ यह दावा करते हुए आगे आई कि कुछ समूह तथा व्यक्ति राज्य में ‘जातीय तथा साम्प्रदायिक ङ्क्षहसा भड़काना चाहते हैं।’ मैं पुलिस के दावे को लेकर सुनिश्चित नहीं हूं।

हालांकि सुप्रीमकोर्ट ने हाथरस की घटना को ‘भयंकर...असामान्य तथा चौंका देने वाली’ बताया है और उत्तर प्रदेश के अधिकारियों को परिवार व चश्मदीदों को सुरक्षा उपलब्ध करवाने के लिए कहा है। दांव पर है निम्र जाति की महिलाओं का सम्मान, गौरव तथा न्याय, जो उच्च जाति के व्यक्तियों का शिकार बन रही हैं। अधिकारियों को ऐसे बढ़ रहे अपराधियों के खिलाफ तेजी से तथा निष्ठुरतापूर्वक कदम उठाना होगा।-हरि जयसिंह


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