पंजाब में शैडो मंत्रिमंडल की जरूरत

punjabkesari.in Friday, Oct 18, 2024 - 05:29 AM (IST)

इतिहास गवाह है कि जब किसी सरकार को प्रचंड बहुमत मिलता है तो वह सरकार आमतौर पर अपने मन मुताबिक फैसले लेने में तत्पर रहती है, भले ही वे फैसले जनहित में न हों। प्रचंड बहुमत के कारण सरकार को कोई भी निर्णय लेने में किसी बाधा का सामना नहीं करना पड़ता और वह विपक्षी दलों से चर्चा किए बिना ही कानून पारित कर देती है।

सरकार अपने इन फैसलों को जनता के सामने सही ठहराने के लिए जनसंपर्क विभाग की मदद लेती है और काफी हद तक इस मकसद में सफल भी होती है। ऐसा करने के लिए दुनिया के कई देशों में सरकार के कामकाज के तरीकों को जांचने और संतुलित करने के लिए छाया कैबिनेट की प्रथा लागू की गई है और भारत में भी इस प्रथा का पालन किया जा रहा है, हालांकि यह प्रणाली अभी तक भारत में केवल राज्यों में ही लागू किए जाने की परम्परा है और आज की स्थिति में पंजाब में भी ऐसी प्रथा लागू करना जरूरी हो गया है। पंजाब में शैडो कैबिनेट बनाने की जरूरत के बारे में बात करने से पहले यह जानना जरूरी है कि शैडो कैबिनेट (छाया मंत्रिमंडल ) किसे कहते हैं और इसकी शुरूआत कब और कैसे हुई थी। 

छाया मंत्रिमंडल को परिभाषित करने के लिए यह कहा जा सकता है कि आमतौर पर सरकार के विपक्ष के नेता (एल.ओ.पी.) अपनी पार्टी के संसद या विधानसभा के वरिष्ठ सदस्यों को छाया मंत्री के रूप में नियुक्त करते हैं। इसके अलावा, सरकार के प्रत्येक विभाग के कामकाज की जांच करने, नीतियों की समीक्षा करने, सरकार को जवाबदेह ठहराने और सरकार की आलोचना करने के लिए सरकारी मंत्रियों के बराबर नागरिक समाज के लोगों, गैर-सरकारी संगठनों और बुद्धिजीवियों का एक समूह होता है। नियुक्त छाया मंत्रियों के समूह को छाया मंत्रिमंडल कहा जाता है। छाया मंत्रिमंडलों की शुरूआत 1836 से मानी जा सकती है जब ब्रिटेन के सर रॉबर्ट पील ने लॉर्ड मेलबर्न की सरकार के कामकाज के तरीकों का विरोध करने के लिए अपनी पिछली सरकार के मंत्रियों को छाया मंत्री के रूप में नियुक्त किया था। भारत में छाया मंत्रिमंडल का गठन 2005 में महाराष्ट्र में शुरू हुआ जब भाजपा और शिवसेना के गठबंधन ने एन.सी.पी.और कांग्रेस सरकार के कामकाज की निगरानी के लिए एक छाया मंत्रिमंडल का गठन किया। 

2014 में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में, 2015 में गोवा में एक एन.जी.ओ. ने, 2018 में केरल में सिविल सोसाइटी ने, 2020 में बिहार के बुद्धिजीवियों ने भी ऐसी ही शैडो कैबिनेट बनाई। सबसे ताजा उदाहरण ओडिशा का है जहां पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कुछ महीने पहले अपनी पार्टी के 50 विधायकों की छाया कैबिनेट बनाई थी। अब बात करते हैं पंजाब में शैडो कैबिनेट बनाने की जरूरत की। जैसा कि पाठक जानते हैं पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार के पास प्रचंड बहुमत है। जिसके कारण सरकार के लिए कोई भी कानून बनाना मुश्किल नहीं होता है और सरकार विपक्षी विधायकों और अन्य संगठनों के प्रतिनिधियों को सरकार की गतिविधियों और नीतियों के बारे में पूरी जानकारी नहीं देती है और सरकार जो बताना चाहती है वह जनता को परोसा जाता है और इससे विरोधियों को सरकार के कामकाज के बारे में पता नहीं चल पाता कि सरकारी विभाग ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं। 

सरकार विधानसभा का सत्र भी केवल कानूनी उद्देश्यों के लिए कुछ दिनों के लिए बुलाती है और उसका अधिकांश समय शोर-शराबे, बहिष्कार या अध्यक्ष द्वारा सत्र स्थगित करने, विपक्ष को सरकार द्वारा प्रस्तुत विधेयकों को पढऩे की अनुमति देने के कारण व्यतीत होता है। सदन में और इसके बारे में सोचने का समय नहीं है। इन कारणों से, पंजाब में एक छाया कैबिनेट की आवश्यकता महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि यह विपक्ष को सरकार की नीतियों की जांच करने और विरोध करने का एक प्रभावी तरीका प्रदान करती है और इससे विपक्ष और सत्तारूढ़ दलों दोनों को लाभ होता है। शैडो कैबिनेट लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करती है क्योंकि शैडो कैबिनेट के माध्यम से विपक्षी विधायकों को नेतृत्व का अनुभव मिलता है और उन्हें भविष्य की सरकार में मंत्री बनने के लिए खुद को तैयार करने का अवसर मिलता है। यह प्रथा जहां विपक्ष को मजबूत करती है वहीं यह सरकार के लिए भी फायदेमंद है क्योंकि इससे विपक्ष की केवल सरकार का विरोध करने की समस्यात्मक प्रवृत्ति पर रोक लगती है और सरकार भी अपनी नीतियां बनाते समय छाया मंत्रिमंडल के सुझावों से मार्गदर्शन ले सकती है।-इकबाल सिंह चन्नी(भाजपा प्रवक्ता पंजाब)
 


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