केन्द्र से गायब दिख रहे महाराष्ट्र के आई.ए.एस. और आई.पी.एस.

punjabkesari.in Monday, Feb 13, 2017 - 01:04 AM (IST)

पहली बार, भारत सरकार में इस समय एक भी सचिव महाराष्ट्र से नहीं है। स्पष्ट है कि सिर्फ बंगाल ही ऐसा रा’य नहीं है जहां बाबू केन्द्र में प्रतिनियुक्ति पर आने से घबराते हैं (करीब आधा दर्जन के लिए ममता बनर्जी इंकार कर चुकी हैं)। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि कुल मिलाकर महाराष्ट्र कैडर के आई.ए.एस. और आई.पी.एस. अधिकारी भी दिल्ली में कोई पद लेने से हिचकिचाते हैं क्योंकि उन्हें मुम्बई में ही काम करना अधिक सुविधाजनक लगता है। बीते कुछ समय से रा’य सरकार ने करीब एक दर्जन अधिकारियों को केन्द्र में प्रतिनियुक्ति के लिए इम्पैनल्ड किया है, पर उनमें से एक-दो को छोड़कर और किसी ने भी केन्द्र में पद को स्वीकार नहीं किया है। कुछ जानकारों का कहना है कि दिल्ली में शायद महाराष्ट्र की लॉबी न होने के कारण ही डी.जी.पी. सतीश माथुर सैंट्रल ब्यूरो ऑफ इनवैस्टीगेशन का निदेशक बनने से रह गए। वह इस पद के लिए काफी अग्रणी माने जाते थे और उनके साथ दिल्ली पुलिस आयुक्त आलोक वर्मा और तमिलनाडु से आई.पी.एस. अधिकारी अर्चना रामासुंदरम भी इस पद के लिए दौड़ में काफी आगे थे। हालांकि माथुर इस दौड़ में वरिष्ठता के चलते वर्मा से पिछड़ गए या फिर वह सिर्फ महाराष्ट्र की लॉबी न होने के कारण पिछड़ गए।

 

 

दिल्ली में नोटबंदी, हैदराबाद में बाबुओं के विला लटके
देश के अर्थशास्त्री भी अभी तक देश की आर्थिकता पर विमुद्रीकरण के प्रभावों को लेकर एक-दूसरे के साथ उलझे हुए हैं, वहीं इस के चलते तेलंगाना के कुछ वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारियों को भी गहरी चोट लगी है। केन्द्र के इस गैर-अपेक्षित कदम के चलते रा’य सड़क एवं भवन निर्माण विभाग का एक प्रस्ताव वित्तीय अनापत्ति न मिलने के कारण लटका पड़ा है। इस प्रस्ताव के तहत हैदराबाद में वरिष्ठ अधिकारियों के लिए 13 विला बनाए जाने हैं और अब बाबुओं को विला में रहने के लिए कुछ महीने और इंतजार करना पड़ेगा। आई.ए.एस., आई.पी.एस. और अन्य वरिष्ठ बाबुओं के लिए 65 आवासीय परिसरों के निर्माण का प्रस्ताव कुछ महीने पहले ही टाल दिया गया है



जिसमें रा’य के वरिष्ठ अधिकारियों के लिए 13 विला का निर्माण भी शामिल है जिनमें मुख्य सचिव, डी.जी.पी., महानिदेशक, ए.सी.बी., हैदराबाद पुलिस आयुक्त, मुख्य मंत्री ऑफिस ओ.एस.डी., मुख्यमंत्री कार्यालय सचिव, रा’य इंटैलीजैंस चीफ, मुख्यमंत्री के सुरक्षा अधिकारी और अन्य वरिष्ठ नौकरशाह शामिल हैं। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के नए कैम्प ऑफिस के उद्घाटन के दिन ही दिसम्बर में इन विलाज का नींव पत्थर रखना भी तय हो चुका था, पर अलग-अलग कारणों से यह काम टलता ही गया। नोटबंदी के बाद वित्त विभाग ने प्रस्ताव को आगे ही नहीं बढ़ाया। अब जब तक वित्त विभाग के बाबू प्रशासनिक अनुमति नहीं देंगे तब तक निविदा प्रक्रिया को शुरू नहीं किया जा सकता है। अब एक तरफ बाबुओं को उम्मीद थी कि साल के अंत तक यह प्रोजैक्ट पूरा हो जाएगा, पर अब तो जिस हिसाब से देरी हो रही है, तब तक इसकी शुरूआत हो जाए, यही गनीमत होगी।



खेमका का कोई मुकाबला नहीं, अब विद्यार्थियों को प्रेरित किया
हरियाणा के आई.ए.एस. अधिकारी अशोक खेमका उस समय भी खबरों में होते हैं जब वह विद्रोही स्वर में सरकार और पूरे तंत्र की बखिया उधेड़ रहे होते हैं। 1991 बैच के सबसे अधिक तबादले पाने वाले आई.ए.एस. अधिकारी इस समय हरियाणा विज्ञान एवं तकनीक विभाग में पिं्रसीपल सचिव के तौर पर कार्यरत हैं। इससे पहले वह भूपेन्द्र हुड्डा की कांग्रेसी सरकार से आमने-सामने की भिड़ंत के चलते लगातार सुर्खियों में बने रहते थे क्योंकि उन्होंने यू.पी.ए. चेयरपर्सन सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के विवादास्पद जमीन सौदे को खारिज कर दिया था। हालांकि वर्तमान मनोहर खट्टर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के साथ भी उनके संबंध कोई अधिक बेहतर नहीं हैं। पर, खेमका लगातार अपने हर उस पद पर कुछ अलग और बेहतर काम करके दिखाते हैं जोकि उनके राजनीतिक आका उन्हें प्रदान करते हैं।



सूत्रों के अनुसार हाल ही में आई.ए.एस. अधिकारी खेमका ने तय किया कि उन सभी विद्यार्थियों को 5 प्रतिशत प्राथमिकता दी जाएगी जो कक्षा 11 और 12 को ग्रामीण विद्यालयों से पास करते हैं। इस साल विभाग ने 202 छात्रवृत्तियों में से 95 प्रतिशत वित्तीय छात्रवृत्तियां उन विद्यार्थियों को प्रदान कीं जो ग्रामीण विद्यालयों से हैं। कई लोगों को लगता है कि इस कदम से ग्रामीण क्षेत्रों के उन विद्यार्थियों को प्रोत्साहन मिलेगा जो विज्ञान की पढ़ाई में आगे बढऩा चाहते हैं और इसी में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं। अब सभी कह रहे हैं कि खेमका तो फिर खेमका हैं जो इस नीरस विभाग में भी जान फूंक गए हैं। 


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