धर्मनिरपेक्षता का अर्थ ‘नास्तिकता’ नहीं

punjabkesari.in Thursday, Feb 14, 2019 - 05:09 AM (IST)

अफसोस हुआ कि भारत की धर्मनिरपेक्षता के कुछ हिमायतियों ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की है कि पाठशाला में की जाने वाली प्रार्थनाएं अबोध बच्चों के मनों को धार्मिकता की ओर ले जाती हैं और इससे भारत के संविधान की इस भावना को क्षति पहुंचती है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। मुझे ऐसे तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के रक्षकों के तर्क पर अफसोस होता है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह कदापि नहीं कि भारत एक नास्तिक देश है। इसका आशय यह भी नहीं कि धर्म अफीम की तरह है। 

धर्मनिरपेक्ष होने के यह भी मायने नहीं कि भारत एक साम्यवादी देश है। धर्मनिरपेक्ष होने का मतलब यह है कि भारत सरकार किसी भी धर्म को प्राश्रय नहीं देगी। सरकार का कोई धर्म नहीं होगा। दूसरे अर्थों में भारत सरकार सब धर्मों का समान रूप से आदर करेगी। धार्मिक कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करेगी। 

धर्म पूजा-पद्धति नहीं
थोड़ा धर्मनिरपेक्षतावादी धर्म का अर्थ भी समझ लें। धर्म पूजा-पद्धति नहीं, एक साधन है जिससे समाज स्वस्थ रहता है। पुत्र का धर्म है कि वह अपने बूढ़े मां-बाप की सेवा करे। यह इंगलैंड का बेटा भी करे तो धर्म है। रूस का बेटा भी करे तो धर्म है। आग का धर्म जलाना है। आग सब जगह, सब देशों में जलाएगी। यह उसका धर्म है। अर्थात धर्म सार्वभौमिक, सर्वमान्य है। धर्म उध्र्वगति वाला है। समाज और मनुष्य को ऊपर उठाता है। परंतु कुछ लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में यह अर्जी दी है कि स्कूलों में प्रात:काल की सभा में जो प्रार्थनाएं उच्चारित होती हैं वे भारत की धर्मनिरपेक्षता की भावना को तोड़ती हैं। अत: गैर संवैधानिक हैं और देशहित में नहीं। सुप्रीम कोर्ट केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को हिदायत जारी करे कि स्कूलों की प्रार्थनाएं बंद हों और 
असतो मा सद्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मामृतं गमय
जैसे संस्कृत के मंत्र अबोध बच्चों के मनों को आस्तिकता की ओर ले जाते हैं। 

सरकार की नजर में सब बराबर
इस देश के प्रबुद्ध लोग विचार करें कि धर्मनिरपेक्ष होने का क्या अर्थ है? तुम मंदिर जाते हो, जाओ, वह मस्जिद में अजान देता है, उसका गिरजाघर में विश्वास है, रखे, मैं गुरुद्वारे में जपुजी साहिब का पाठ करता हूं, करूं। किसी को एतराज नहीं। शर्त यह कि उसका मजहब मेरे मजहब को बुरा न कहे। सरकार की नजर में सब बराबर। धर्मनिरपेक्षता की आड़ में नास्तिकता का प्रचार करने वालो सुनो: इन पाठशालाओं में समाज के हर वर्ग का बच्चा आता है। बच्चे स्कूल का पाठ्यक्रम शुरू होने से पहले सामूहिक प्रार्थना प्रात:काल की बेला में उच्चारित करते हैं तो क्या बुरा करते हैं? इस प्रार्थना से देश रसातल में कहां चला गया? भारत के संविधान को क्या होने लगा? धर्मनिरपेक्षता पर आंच कैसे आ गई? 

मुझे जिंदगी के हर पड़ाव पर हर प्रार्थना में एक अजीब सी आनंद-अनुभूति हुई। लगा नहीं कि इन प्रार्थनाओं में संकीर्णता है। किसी ने नहीं कहा कि ये प्रार्थनाएं बच्चों में धार्मिक उन्माद पैदा कर रही हैं। आज आजादी के 70 साल बाद धर्मनिरपेक्षता वालों को क्यों यह भय सताने लगा कि स्कूलों में गाई जाने वाली प्रार्थनाएं भारत की धर्मनिरपेक्षता को खतरा पैदा कर रही हैं? ये प्रार्थनाएं बच्चों को नम्रता और नैतिकता का पाठ पढ़ाती हैं, आस्तिक नहींं बनातीं। आस्तिक बच्चे बन भी जाएं तो भारत को क्या हानि? 

भारत की धर्मनिरपेक्षता को चोट तो वे ताकतें पहुंचा रही हैं जो चीन की निष्ठा से बंधी हैं। जो अराजकता फैलाना चाहती हैं। स्कूल प्रार्थनाओं से जिन्हें डर लगता है। क्या स्कूलों में प्रार्थनाओं की जगह जिंदाबाद, मुर्दाबाद के चालीसे पढ़े जाएं? तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादियों को उनसे क्यों डर नहीं लगता जो 70 साल बाद भी महात्मा गांधी के चित्र को गोलियां मार रहे हैं। सरकार ने गोलियां चलाने वाली महिला व उसके पति को गिरफ्तार भी कर लिया परंतु यह दम्पति महात्मा गांधी के चित्र पर गोलियां बरसा कर वीर कहलाना चाहता है परंतु वास्तविकता यह है कि यह दम्पति कायर है। कुंठित मानसिकता वाला है। आप महात्मा गांधी को गोली मार सकते हो। उनके चित्रों-प्रतिमाओं पर कालिख पोत सकते हो परंतु विश्व रंगमंच से गांधीवाद को समाप्त नहीं कर सकते। 

गांधी की विचारधारा खत्म नहीं हो सकी
क्या नत्थूराम गोडसे की गोलियां गांधी की विचारधारा को खत्म कर सकीं? यकीनन नहीं। हजारों सालों में कभी एक गांधी पैदा होता है। वह अहिंसा, सत्याग्रह और सत्य के शस्त्र से अंग्रेजी हुकूमत से लड़े। एक धोती, एक लंगोटी से भारत में क्रांति की ज्वाला फूंकी। देश को आजाद करवाया। वह एक शिक्षाविद्, राजनेता और स्वयं में एक संस्था थे। सरकार ने दम्पति को गिरफ्तार कर निंदनीय कार्य किया है। इस प्रकार का प्रलोप ये धर्मनिरपेक्षतावादी करेंगे। कभी हाईकोर्ट, कभी सुप्रीम कोर्ट, कभी जनांदोलन द्वारा स्कूली प्रार्थनाओं को शिक्षा का भगवाकरण और गांधी के चित्र पर गोलियां बरसाने वाली पर की गई सरकारी कार्रवाई को मानवाधिकारों का हनन कह कर सरकार पर प्रहार करेंगे। ऐसे तत्वों को देश में अराजकता फैलानी है। ऊंच-नीच, जात-बिरादरी की आग को भड़काना है। न इन्हें देश के विकास की चिंता है, न संविधान की। ये धर्मनिरपेक्षतावादी केवल अपनी वाकपटुता से देश को गुमराह करना चाहते हैं। हमें ऐसे अराजक तत्वों से बचना है।-मा. मोहन लाल पूर्व ट्रांसपोर्ट मंत्री, पंजाब


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