स. प्रकाश सिंह बादल के बाद अकाली दल क्या करे

punjabkesari.in Saturday, May 06, 2023 - 05:35 AM (IST)

चुपचाप मोदी से बात करे। भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम ले। कल तक शिरोमणि अकाली दल बड़े भाई की भूमिका में था। आज भाजपा का पलड़ा भारी है। कल तक स. प्रकाश सिंह बादल सर्वमान्य नेता थे आज सुखबीर सिंह अकेले पड़ चुके हैं। कल तक शिरोमणि अकाली दल को अभिमान था कि भाजपा का अस्तित्व हमारे कारण है, आज पंजाब भाजपा में हर छोटा-बड़ा नेता शामिल हो रहा है। कल तक आप पार्टी का कोई वजूद नहीं था आज भगवंत मान पंजाब के मुख्यमंत्री हैं। कल तक अकाली-भाजपा गठबंधन पंजाब का शृंगार था आज आप के राज में एकदम अराजकता है। 

स. सुखबीर सिंह बादल आज के वातावरण में अपने को सम्भाल नहीं सकेंगे। सोच विचार ले अकाली दल। परिस्थितियां अकाली दल के हाथ से निकल चुकी हैं। ढींडसा और ब्रह्मपुरा ग्रुप, आज जबकि स. प्रकाश सिंह बादल नहीं रहे दोनों ग्रुप स.सुखबीर सिंह बादल को दुहाई दे रहे हैं। एक हो जाओ वरना पंजाब के हालात और खराब होंगे। 

पंजाब विधानसभा के पूर्व स्पीकर स. रविइन्द्र सिंह हाशिए पर पहुंच चुके अकाली दल 1920 की कमान अभी तक पकड़े हुए हैं। तो क्या बेहतर होगा? सब को एक होना। भाजपा-शिरोमणि अकाली दल का गठबंधन ही पंजाब को बेहतर हालत दे सकता है। कल तक मैं स्वयं इस गठबंधन के विरुद्ध ल_ लिए खड़ा था अब जब स. प्रकाश सिंह बादल नहीं रहे तो लगता है पंजाब रुक-सा गया है। कुछ पंजाब की आत्मा से मिस है। इस अराजकता की स्थिति से पार हो जाना जरूरी है। आज मुझे अपनी गलती का एहसास हो रहा है। एक होना ही पंजाब के हित में होगा। वैसे भी शिरोमणि अकाली दल का जन्म राजनीति करने के लिए नहीं हुआ। सुखबीर सिंह का मकसद है इन हालात में सब को एक करना है। अन्यथा उन्हें कोई और रास्ता निकालना चाहिए। बहुत कुछ तो अकाली दल का यह जालंधर लोकसभा का उपचुनाव ही तय कर देगा। स. सुखबीर सिंह बादल इस राजनीतिक वनवास से बाहर निकलें। सोच-विचार करें। 

जैसे मैंने उपरोक्त पंक्तियों में कहा है कि अकाली दल का जन्म राजनीति करने के लिए नहीं हुआ था। अकाली दल का एकमात्र ध्येय था महंतों से गुरुद्वारों को वापस लेना। गुरुद्वारों की पवित्रता बनाए रखना। सबको पता है कि 1920 से पहले गुरुद्वारों का प्रबंध महंतों के पास था। अकाली दल ने 1920 में एक सार्थक आंदोलन चलाया। इस आंदोलन ने जिसे ‘गुरुद्वारा सुधार लहर’ पुकारा जाता है, ने अकाली दल की दशा और दिशा दोनों बदल दी। ‘गुरुद्वारा सुधार लहर’ ने अकाली दल को राजनीतिक स्वरूप दिया। अकाली दल ने स्वतंत्रता के बाद पंजाब की राजनीति में भरपूर हिस्सा लिया। अकाली दल ने 1952 के चुनाव स्वतंत्र रूप से और 1957 के चुनाव कांगे्रस के साथ मिलकर लड़ा। 

दोनों चुनावों में अकाली दल ने पंजाब और पैप्सू राज्य में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1967 में देशभर में संयुक्त सरकारों का प्रचलन शुरू हुआ तो पंजाब में भी संयुक्त सरकार बनी। 1967 में स. गुरनाम सिंह के मुख्यमंत्री बनने से एक नया अध्याय पंजाब की राजनीति से जुड़ा। इस सरकार में आजाद, भारतीय जनसंघ और कम्युनिस्ट तक शामिल थे। 1969 में केंद्र के इशारे पर स. लक्ष्मण सिंह गिल की सरकार भंग कर दी गई। कांग्रेस तथा अकाली दल में यहीं से छत्तीस का आंकड़ा पनपने लगा। 

1967 की संयुक्त सरकार से भारतीय जनसंघ और अकाली दल ने महसूस किया कि यदि दोनों पार्टियां मिलकर चलें तो पंजाब का भला हो सकता है क्योंकि अकाली दल सिखों का और जनसंघ हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व तय करता है। दोनों में अच्छा-भला तालमेल था। दोनों कहने लगे हमारा तो नहूं-मांस का रिश्ता है। इतिहास गवाह है कि जब-जब अकाली दल और भाजपा का गठबंधन हुआ कांग्रेस रसातल में चली गई। और जब-जब दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई। कांग्रेस को पंजाब की सत्ता से दूर रखने के लिए जरूरी है कि अकाली दल और भाजपा मिलकर चुनाव लड़ें। 

भाजपा और अकाली दल इकट्ठे रहे तो परिणाम अमन-शांति और विकास। अलग हुए तो अराजकता। इस बात का विचार अब स. सुखबीर सिंह बादल को करना है। चिन्तन करें। यह गठबंधन प्राकृतिक और स्वाभाविक है। बहुजन समाज के साथ हुआ गठबंधन स्वाभाविक नहीं। अत: स. सुखबीर स्वयं निर्णय करें। अन्यथा मैं सुझाव दूंगा कि अकाली दल गुरुद्वारों  की ओर जाए। राजनीति छोड़ उत्तम उद्देश्यों को पूरा करने की ओर अकाली दल आगे बढ़े। अत: इससे पहले कि हालात पंजाब के स. सुखबीर सिंह बादल के हाथ से निकल जाएं। इससे पहले कि स. सुखबीर सिंह को उनके पार्टी विरोधी घेर लें उन्हें भाजपा की शरण में चले जाना चाहिए। इससे पहले कि भिन्न-भिन्न अदालतें स. सुखबीर सिंह बादल को सम्मन भेज कर अपमानित करें उन्हें एक बड़े वृक्ष के नीचे आ जाना चाहिए और वह वट वृक्ष है भारतीय जनता पार्टी। 

स. सुखबीर सिंह बादल यह न समझें कि उन्हें डराया जा रहा है। भाजपा का हौव्वा सामने खड़ा किया जा रहा है। ऐसा कदापि नहीं मेरा मकसद इतना है कि पंजाब का भला कैसे हो और वह भला सिर्फ भाजपा- अकाली गठबंधन। अकाली-भाजपा गठबंधन एक बार पुन: पंजाब में नई सुबह लाएगा।-मा. मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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