नशों की लपेट में रूस के शीर्ष एथलीट

punjabkesari.in Monday, Nov 16, 2015 - 01:32 AM (IST)

अब यह खुलासा हुआ है कि रूसी गुप्तचर सेवा के सदस्यों ने अपने देश के कुछ शीर्ष एथलीटों द्वारा नशीली दवाओं के सेवन संबंधी रिपोर्ट पर पर्दा डालने के लिए एक ड्रग टैस्ंटिग लैबोरेटरी के कर्मचारियों पर दबाव डाला। उन्होंने पिछले साल सोची में शीतकालीन ओलिम्पिक खेलों के दौरान प्रयोगशाला के कर्मचारियों का स्वांग रचा और रूस के शीर्ष एथलीटों द्वारा नशीली दवाओं के सेवन के 1400 से ज्यादा नमूने नष्ट किए। 

इन एथलीटों ने नशीली दवाओं के सेवन के औचक परीक्षण से बचने के लिए अपनी पहचान छिपाई और अपने पक्ष में सकारात्मक परिणाम लिखवाने के लिए नशारोधी अधिकारियों को रिश्वत दी थी जिस पर शीर्ष खेल अधिकारियों ने नशा करने वाले एथलीटों के पेशाब के गलत नमूने दाखिल किए। 
 
विश्व नशारोधी एजैंसी द्वारा अपनी 323 पृष्ठों की रिपोर्ट में उक्त आरोपों के अलावा एथलीटों, कोचों, ट्रेनरों, डाक्टरों और विभिन्न रूसी संस्थाओं के विरुद्ध सैंकड़ों अन्य आरोप दर्ज किए गए हैं। इन आरोपों के अनुसार इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि 1970 के बदनाम पूर्वी जर्मनी के शासन के बाद खिलाडिय़ों को नशा करवाने का संभवत: यह सर्वाधिक व्यापक कार्यक्रम था। 
 
इस कारण एक अप्रत्याशित पग के  रूप में शुक्रवार को ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं की विश्व नियामक संस्था ने रूस के उक्त स्पर्धाओं में भाग लेने पर अस्थायी तौर पर रोक लगा दी है जिससे रूसी एथलीट विश्व भर में ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं में भाग लेने से वंचित हो गए हैं। 
 
इसका आगामी ग्रीष्मकालीन रियो डी जानीरो ओलिम्पिक्स के लिए इनकी तैयारियों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। विश्व संस्था द्वारा जारी आदेश के अनुसार रूस को चेबोकसारी में विश्व रेस वाकिंग टीम चैम्पियनशिप तथा काजान में विश्व जूनियर चैम्पियनशिप के आयोजन के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया है। 
 
कौंसिल फार इंटरनैशनल एसोसिएशन आफ एथलैटिक्स फैडरेशन के नए अध्यक्ष सेबेस्तियन को के नेतृत्व में यह पग उठाया गया है जो खेल जगत को नशों की लानत से मुक्त करने के लिए प्रयत्नशील हैं। 
 
यह किसी एथलीट को नशीली दवाओं के सेवन के आरोप में निलम्बित किए जाने का पहला अवसर नहीं है लेकिन निश्चित रूप से किसी सम्पूर्ण देश पर प्रतिबंध लगाए जाने का यह पहला अवसर है। 
 
हालांकि कुछ लोग यह महसूस करते हैं कि खेलों का राजनीतिकरण हो जाने पर यही सब कुछ हुआ करता है। ऐसे लोगों के विचार में स्टालिन के समय में और उसके बाद अब पुतिन के शासन काल में रूसी खेल जगत के साथ यही हो रहा है। ऐसा महसूस किया जा रहा है कि खेलों के माध्यम से एक व्यक्तिपूजक परम्परा जन्म ले रही है। इसीलिए पश्चिमी देशों के पत्रकार महसूस करते हैं कि राष्टपति पुतिन शेरों से भिड़ते हुए, तेंदुओं के साथ अभ्यास करते हुए, प्रवासी क्रेन पक्षियों के साथ हैंग ग्लाइडिग करते हुए, धु्रवीय भालुओं से गले मिलते हुए, व्हेलों के साथ शूटिंग करते हुए और जूडो की ट्रेनिंग लेते हुए आदि मुद्राओं में चित्र खिंचवाते हैं। परंतु पत्रकारों के एक अन्य वर्ग का विचार है कि भले ही इसकी शुरूआत छवि निर्माण की इच्छा से हुई हो लेकिन इस कारण समूची खेल प्रणाली योजनाबद्ध रूप से भ्रष्ट हो गई है। 
 
आरम्भ में रूसी एथलीटों को कुछ इस प्रकार प्रशिक्षण दिया जाता था कि यदि वे कोई पदक न जीत पाएं तो वे स्वयं को देश के गद्दार समझें। कई बार पदक जीतने में असफल रहने पर उन्हें जेल तक दे दी जाती थी लेकिन आधुनिक दौर में खेलों में नशों का सेवन स्वीकार कर लिया गया है। हालांकि रूस के खेल मंत्री वितालो मुत्कोव ने रियो ओलिम्पिक खेलों में रूस के बहिष्कार की संभावना से इंकार किया है और उनका कहना है कि उनका देश इस संकट से बाहर निकल आएगा। 
 
परंतु इस संबंध में दूसरे देशों की चिंता यह है कि यदि रूस इस प्रतिबंध से बाहर नहीं निकल पाया तो विश्व नियामक संस्था नशेडिय़ों की सूची में अगले सदस्य देशों की जांच शुरू कर देगी और भारत इस सूची में फ्रांस और तुर्की के बाद चौथे स्थान पर है। रूस के खाते में  सर्वाधिक 225, फ्रांस के खाते में 108, तुर्की के खाते में 188 और भारत के खाते में  95 उल्लंघन दर्ज हैं। 
 
भारत में भी रूस की भांति ही खेलों का पूर्णत: राजनीतिकरण हो चुका है और राजनीतिज्ञ नहीं बल्कि मंत्री चयन समितियों के सदस्य बनाए जाते हैं। खेलों और खिलाडिय़ों के लिए कोष का आबंटन राजनीतिज्ञों द्वारा किया जाता है और इन हालात में यदि भारत पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो क्या इसके पास कोई वैकल्पिक योजना है?
 

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