उद्धव के लिए ‘सरकार’ चलाना एक अलग बात

punjabkesari.in Tuesday, Jun 16, 2020 - 03:12 AM (IST)

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार महामारी के प्रकोप का सामना करने की कोशिश कर रही है। इस दौरान बड़े राज्य में राजनीतिक तनातनी चल रही है। भाजपा ठाकरे की विरासत के साथ सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश में है, लेकिन वह आक्रामक होकर सत्ता की आकांक्षा भी रखती है।

राज्य के भाजपा नेता यह दावा करते हुए राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री महामारी को नियंत्रित करने में विफल रहे हैं। अंदरूनी सूत्रों के अनुसार भाजपा इस समय हिस्सेदारी का दावा करने को तैयार नहीं है मगर वह उद्धव ठाकरे सरकार से छुटकारा पाना चाहती है और राज्य में केंद्र के माध्यम से शासन करना चाहती है। 

288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एम.वी.ए.) को 170 विधायकों का समर्थन प्राप्त है जिसमें शिवसेना के 56, एन.सी.पी. के 54 तथा कांग्रेस के 44 और अन्य छोटे दल शामिल हैं। भाजपा के पास 105 सीटें हैं और वह 13 अन्य विधायकों के समर्थन का दावा करती है। दल-बदल को प्रोत्साहित करके किसी भी समय नाव को हिलाया जा सकता है। 

हालांकि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पिछले साल नवम्बर में पदभार संभाला था, लेकिन विभिन्न कारणों के चलते उन्हें अभी भी राज्य में स्थापित होना है। सबसे पहले गठबंधन की प्रकृति है जो वर्तमान में बढ़ रहा है। यह एक अप्राकृतिक गठबंधन है क्योंकि उनकी शिवसेना और सहयोगी कांग्रेस पार्टी व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच कुछ भी सामान्य नहीं है। यह एक अवसरवादी गठबंधन था और सभी पार्टियों के साथ आने का मुख्य कारण भाजपा को सत्ता में आने से रोकना था। 

दूसरा और आॢथक महत्वपूर्ण कारण यह है कि प्रशासन में मुख्यमंत्री उद्धव अनुभवहीन हैं। महाराष्ट्र एक बड़ा राज्य है तथा मुम्बई देश की वित्तीय  राजधानी है। इससे पहले कि वह पकड़ में आए, उद्धव की छवि कोविड-19 के प्रकोप के साथ थोड़ी धुंधली पड़ गई। हालांकि यह एक तथ्य है कि उन्हें अपने आपको स्थापित करने का समय ही नहीं मिल रहा। उनकी अनुभवहीनता को प्रवासी संकट से निपटने के तौर पर देखा गया और वह अभी भी शासन के कठिन कार्य को सीखने की कोशिश में हैं। 

उन्होंने कोविड-19 की एक उचित रणनीति को अंजाम नहीं दिया, जिसके परिणामस्वरूप महाराष्ट्र कोविड मामलों की संख्या में सबसे ऊपर है और मामले निरंतर बढ़ रहे हैं। उद्धव ने विधायिका के लिए भी अपने चुनाव के बारे में संकट का सामना किया था और पिछले महीने प्रधानमंत्री मोदी की स्वीकृति के बाद ही निर्वाचित होने में सफल रहे। यह स्पष्ट नहीं है कि महामारी से निपटने के लिए उन्होंने अनुभवी राज्य कांग्रेसी नेताओं और एन.सी.पी. प्रमुख शरद पवार की सहायता क्यों नहीं ली? 

तीसरी बात यह कि उद्धव न केवल बाहर से बल्कि गठबंधन के भीतर भी परेशानी का सामना कर रहे हैं। मिसाल के तौर पर कांग्रेस हर कदम पर अपने हिस्से के मांस की मांग कर रही है। यह स्पष्ट है कि हाल ही में जिस तरह से कांग्रेसी नेता राहुल गांधी ने एक मीडिया सम्मेलन में टिप्पणी की थी, ‘‘कांग्रेस ‘महाराष्ट्र विकास अघाड़ी’ का हिस्सा थी और प्रमुख मंत्रालय रखती है। हम महाराष्ट्र में सरकार का समर्थन कर रहे हैं मगर महाराष्ट्र में कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेने के निर्माता नहीं हैं। हम पुड्डुचेरी, पंजाब, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में प्रमुख निर्णय करने वाले निर्माता हैं, इसलिए सरकार को चलाने और सरकार को समर्थन देने के बीच अंतर है।’’ 

स्थानीय पार्टी के नेताओं की शिकायत है कि उद्धव उनसे सलाह नहीं ले रहे। उनके अनुसार उद्धव सरकार के गठन के दौरान विधानसभा में अपनी ताकत के अनुसार पोर्टफोलियो नहीं मिले। यह भी तय किया गया कि विधान परिषद की सीटों तथा निगमों में एम.वी.ए. सरकार के तीनों दलों को बराबर का हिस्सा दिया जाएगा। हालांकि चर्चा के अनुसार चीजें नहीं चल रही हैं। 

यह बाबू हैं जो इस वर्तमान शो को चला रहे हैं
चौथा यह कि उद्धव सरकार के गठन में सहायक एन.सी.पी. प्रमुख शरद पवार की भूमिका पेचीदा है। राज्यपाल बी.एस. कोशियारी के पदभार संभालने के बाद शरद पवार ने राजनीतिक अस्थिरता के बीच उनके साथ बैठक की जिसके बाद सबकी भौंहें उठीं।

पवार की राज्यपाल के साथ बैठक दिलचस्प है क्योंकि भाजपा नेताओं जैसे देवेंद्र फडऩवीस तथा नारायण राणे ने राज्यपाल से यह मांग की थी कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाए। राजभवन और पवार कैम्प ने इस बैठक को मात्र शिष्टाचार भेंट माना था। पवार को देश के सबसे बड़े मुख्यमंत्री में से एक माना जाता है। उद्धव के नियमित रूप से अपने सहयोगियों और कैबिनेट सहयोगियों  से परामर्श करने का कोई सबूत नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि यह बाबू हैं जो इस वर्तमान शो को चला रहे हैं। 

इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं कि उद्धव ठाकरे को उनके गठबंधन सहयोगियों या फिर मुख्यमंत्री विपक्षी पार्टी भाजपा द्वारा सही ढंग से स्थापित होने का मौका ही नहीं दिया जा रहा। हालांकि वह शिव सेना संस्थापक बाला साहिब ठाकरे की मृत्यु के बाद पार्टी को बनाए रखने में कामयाब हुए मगर सरकार चलाना एक अलग बात है और यही वह जगह है जहां उन्हें अपने आपको मजबूत करना होगा। उन्हें अच्छे सलाहकारों की जरूरत है। 

अन्य खिलाडिय़ों को यह महसूस करना चाहिए कि यह खेलों में शीर्ष पर पहुंचने का समय नहीं है क्योंकि राज्य की पहली प्राथमिकता कोविड के प्रकोप से निपटने की होनी चाहिए और इसके लिए राजनीति इंतजार कर सकती है। आखिरकार लोग उन्हें अपने प्रतिनिधि के रूप में चुनते हैं और वे सार्वजनिक हितों को विफल नहीं कर सकते।-कल्याणी शंकर 
 


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