2024 के चुनावी युद्ध के लिए तैयार सत्ता पक्ष और विपक्ष
punjabkesari.in Friday, Sep 08, 2023 - 06:22 AM (IST)

बिगुल बज चुका है और चुनावी युद्ध रेखाएं खींची जा चुकी हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव निकट आ रहे हैं। मतदाताओं के मतदान के लिए 8 महीने का समय रह गया है। मेरे शहर मुम्बई की गलियां और सड़कें भाजपा, शिवसेना और राकांपा के झंडों से भर गई हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए मुख्य विपक्षी ताकत INDIA ने 31 अगस्त और 1 सितम्बर को बैठकें कीं। भाजपा और उसकी सहयोगी शिंदे शिवसेना और अजीत पंवार ने अपने झंडे लगाए और अपने विरोधियों के लिए एक इंच भी जगह नहीं छोड़ी।
सभी विपक्षी नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करने और उन्हें सत्ता से उखाड़ फैंकने की शपथ ले ली है। अगले लोकसभा चुनाव में संयुक्त रूप से अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए वे 450 सीटों में से प्रत्येक के लिए उम्मीदवार का नामांकन करके भाजपा के खिलाफ चुनाव लडऩे का इरादा रखते हैं। विपक्षी नेताओं ने नरेंद्र मोदी की नीतियों से दूरी बनाने के लिए अपने लोकतांत्रिक अधिकार का आश्वासन दिया है। प्रत्येक विपक्षी नेता मोदी के खतरे से अच्छी तरह से वाकिफ है, लेकिन वे संघर्ष कर रहे हैं यह निर्धारित करने के लिए कि एकजुट होकर लडऩे के लिए प्रत्येक को कितना बलिदान देना होगा। भाजपा को अभी यह समझ आ गया है कि 26 पार्टियों की मंशा उसके खिलाफ है।
अपने मकसद को पाने के लिए INDIA की राह आसान न होगी। भाजपा के पास मोदी एकमात्र नेता हैं और उनका एक शब्द भी अंतिम होता है। INDIA में ऐसी प्रतिबद्धता और ताकत किसी भी नेता में नहीं है। निश्चित तौर पर विपक्षी गठबंधन की योग्यता की अग्रि परीक्षा होगी। इस शुरूआती चरण में विपक्ष में कोई बड़ी दरार नहीं आई है। INDIA ने एकजुटता की पहली परीक्षा पास कर ली है। असमान विचारधाराओं के बावजूद जीवित रहने की इच्छाशक्ति का संकेत देखा गया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव लडऩे के लिए सीटों के आबंटन पर जोर दिया। INDIA के प्रत्येक घटक का निर्णय मुम्बई बैठक में किया जाना चाहिए था। इस मांग में ‘आप’ के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ममता दीदी का समर्थन किया।
ऐसा संकेत था कि एक होकर लडऩे के INDIA के संकल्प से पश्चिम बंगाल, केरल और पंजाब को बाहर रखा जाएगा। यदि यह सही भविष्यवाणी साबित होती है तो ऐसा ही होगा। INDIA अपने कई नेताओं में से किसी एक को प्रधानमंत्री पद के लिए नामांकित करने के जाल में नहीं फंसा है। नरेंद्र मोदी बनाम INDIA का सही फार्मूला है। संयुक्त विपक्ष का कोई भी नेता मोदी के खिलाफ संभावना का भूत खड़ा नहीं करता है।
विपक्ष को भाजपा पर हमला करने की जरूरत है क्योंकि इसके एकमात्र नेता नरेंद्र मोदी देश में नफरत और डर फैला रहे हैं। इस्लामी मान्यताओं और रीति-रिवाजों के खिलाफ मोदी राजनीति का एक ऐसा ब्रांड है जो पार्टी को पुनर्जीवित करने में सफल रहा है।
2014 में हिंदुओं ने एकजुट होकर भाजपा के पक्ष में वोट किया और उसे सत्ता में पहुंचाया। इस ट्रैंड की 2019 में पुष्टि की गई थी। लेकिन हाल ही में कई विचारशील पुरुष और महिलाएं जिन्होंने अपने मजबूत और निर्णायक नेता के कारण भगवा पार्टी का समर्थन करना शुरू कर दिया था उन्होंने अपनी पसंद के बारे में दोबारा विचार किया। उन्हें इसका बहुत अहसास हुआ कि निर्णय बिना बुद्धिमानी के लिए गए। नोटबंदी का निर्णय और कोविड वायरस को हराने के लिए सभी आॢथक गतिविधियों को बंद करने का त्वरित निर्णय सरकार ने लिया। आवेश में लिए गए गलत निर्णयों को माफ किया जा सकता है, लेकिन धर्म के आधार पर विभाजन फैलाने का वैचारिक कार्यक्रम हरगिज बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। ऐसा अनुसरण करना आत्मघाती होता है। पाकिस्तान के जनरल जिया-उल-हक ने अपने मुस्लिम बहुल देश में यही रास्ता अपनाया था। 10 वर्षों में उन्होंने पाकिस्तान पर शासन किया और पाकिस्तान का रुतबा छोटा कर दिया।
नरेंद्र मोदी को इससे सबक लेना चाहिए था। मोदी एक चतुर राजनीतिज्ञ हैं। सफल होने के लिए उन्हें भी इतिहास से सबक लेना चाहिए। कोई भी देश जिसकी राजनीति पूरी तरह से धर्म पर टिकी हो, वह विश्व स्तर पर नहीं पहुंच सकता। जब धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक उन्नति को नजरअंदाज करें तो अंतिम परिणाम हमेशा नकारात्मक होगा। राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए वोटों के लोभ ने देश को नफरत फैलाने वाले रास्ते पर ला दिया है।
चुनाव के समय में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल एक आवश्यकता है। मणिपुर और नूंह की घटनाओं ने प्रदॢशत किया है कि बीच में चुनाव एक खतरा है। एक बार जब नेता मुक्त हो जाते हैं और खून का स्वाद चख लेते हैं तो नेताओं के लिए नियंत्रण पुन: प्राप्त करना मुश्किल होता है। INDIA के पास 2024 में मोदी को मात देने का मौका है। संख्याएं इसके पक्ष में हैं। जिन लोगों ने पिछली बार भाजपा को वोट नहीं दिया था इस बार फिर से उनके पास भाजपा को वोट न देने का विकल्प है। ऐसा हुआ तो भाजपा मुश्किल में पड़ जाएगी।-जूलियो रिबैरो (पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)