रोहिंग्या मुसलमानों का संकट और ‘असुरक्षा की भावना’

punjabkesari.in Friday, Sep 29, 2017 - 12:42 AM (IST)

आम जीवन की भांति हमारा राजनीतिक और सामाजिक जीवन भी विरोधाभासों से भरा हुआ है। अभी हाल का घटनाक्रम देखिए कि 5 लाख कश्मीरी पंडितों के विस्थापन और पाकिस्तान-बंगलादेश में हिन्दुओं के उत्पीडऩ पर चुप रहने वाले या उन लोगों का समर्थन करने वाले, जो इस भीषण त्रासदी के लिए प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार हैं, वे आज मानवता के नाम पर रोहिंग्या मुस्लिमों के लिए भारत में शरण देने की जोरदार वकालत कर रहे हैं। 

दूसरा बड़ा विरोधाभास-देश ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर चिल्ला-चिल्लाकर यह कहने वाले कि भारतीय मुस्लिमों में ‘असुरक्षा की भावना’ है या फिर यहां मुसलमानों का उत्पीडऩ होता है, वे लोग भी रोहिंग्या मुस्लिमों को भारत में पनाह देने का मुखर समर्थन कर रहे हैं। यह बात अलग है कि भारत में मुसलमान, जो 1947 में स्वतंत्रता के समय देश की कुल आबादी में 3.5 करोड़ (लगभग 10 प्रतिशत) थे, वे आज बढ़कर 18 करोड़ से अधिक (14.2 प्रतिशत) हो गए हैं और सभी को बहुसंख्यकों से भी अधिक अधिकार प्राप्त हैं। क्या विश्व के अधिकतर इस्लामी देशों में अल्पसंख्यक गैर-मुस्लिमों को समानता के साथ जीवन-यापन का अधिकार है? 

आखिर यह प्रश्न क्यों नहीं पूछा जा रहा है कि म्यांमार में जो रोहिंग्या मुस्लिम बौद्ध- हिन्दू अनुयायियों के साथ शांति से नहीं रह पाए क्या वे भारत में पहले से ‘असुरक्षा की भावना’ से ग्रस्त मुस्लिमों और शेष भारतीय समाज के बीच शालीनता के साथ रह पाएंगे या उन्हें शांति के साथ रहने देंगे? इन विरोधाभासों के बीच म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों से संबंधित कुछ रिपोर्टें सामने आई हैं। ये खुलासे विश्व (भारत सहित) के उन तथाकथित उदारवादियों और मानवाधिकारों के रक्षकों के मुंह पर किसी तमाचे से कम नहीं हैं, जो रोहिंग्या मुस्लिमों को भारत में शरण देने का ढिंढोरा गला फाड़कर पीट रहे हैं। मानवता का नकाब पहनाकर जिस कटु सत्य को छिपाने या फिर उससे मुंह मोडऩे का प्रयास अब तक किया जा रहा है, वह हालिया खुलासों से प्रत्यक्ष हो चुका है। 

अभी हाल ही में दिल्ली से प्रकाशित अंग्रेजी समाचारपत्र ‘मेल टुडे’ में 26 सितम्बर 2017 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार-म्यांमार से शरणार्थी बनकर बंगलादेश के कॉक्स बाजार पहुंचे रोहिंग्या मुस्लिम राहत शिविरों में रोहिंग्या हिन्दू महिलाओं को निशाना बना रहे हैं। हिन्दू महिलाओं का जबरन मतांतरण कर उन्हें दिन में 5 बार नमाज पढऩे के लिए मजबूर किया जा रहा है। यहां तक कि रोङ्क्षहग्या मुस्लिम राहत शिविरों में रह रही हिन्दू विवाहित महिलाओं का सिंदूर मिटा रहे हैं और चूडिय़ां तोड़ रहे हैं। इन्हीं शिविरों में मजहबी जुनून की शिकार हुईं पूजा मल्लिक (राबिया) और रीका धार (सादिया) ने इसका खुलासा किया है। 

पूजा (राबिया) के अनुसार, वह रोहिंग्या हिन्दू है और शरण की आस में म्यांमार से पलायन करके बंगलादेश आई थी किन्तु यहां उसके साथ सब कुछ उम्मीद के विपरीत हुआ। पूजा बताती है कि यहां आने से पूर्व रोहिंग्या आतंकियों ने उसके पति सहित परिवार के सभी लोगों को मौत के घाट उतारकर उसे बंधक बना लिया। बकौल पूजा, ‘रोहिंग्या मुस्लिम मुझे जंगल ले गए और कहा कि मुझको नमाज पढऩी होगी। उन्होंने मेरा सिंदूर मिटाकर चूडिय़ां तोड़ दीं। साथ ही कहा गया कि यदि मैं जीवित रहना चाहती हूं तो मुझे इस्लाम अपनाना पड़ेगा। मुझे बुर्का पहनाया गया और लगभग 3 सप्ताह तक इस्लामी रीति-रिवाज सिखाया गया। मुझे नमाज पढऩा सिखाया गया। मुझसे अल्लाह कहलवाया गया  लेकिन मेरा दिल भगवान के लिए धड़कता है। जब मेरे पड़ोसियों ने मेरी तलाश की, तब उनको पता चला कि मैं मुस्लिम शिविर में रह रही हूं।’’ 

कुछ ऐसी ही स्थिति 18 वर्षीय रीका धार (सादिया) की भी है। रीका के अनुसार ‘‘25 अगस्त की रात अचानक हिन्दुओं के घरों पर नकाबपोश लोगों ने हमला कर दिया। पहले मोबाइल फोन छीन लिया, फिर पुरुषों को बांधकर बुरी तरह से पीटा। हिन्दुओं को चिन्हित कर निकट के एक पहाड़ पर ले जाकर उन सभी की हत्या कर दी। 8 महिलाओं को जीवित रहने दिया और कहा गया कि वे सभी इस्लाम अपनाकर उनसे निकाह कर लें, तभी उनकी जान बच सकती है।’’ बात केवल रीका और पूजा तक सीमित नहीं है। इन दोनों के अनुसार रोहिंग्या मुस्लिम शिविरों में अब भी कई हिन्दू महिलाएं बंधक बनी हुई हैं।

इस खुलासे से पूर्व, म्यांमार की सेना ने हिंसाग्रस्त रखाइन में रोहिंग्या मुस्लिमों द्वारा 45 निरपराध हिन्दुओं की हत्या का खुलासा किया है। इन सभी की सामूहिक कब्र मिली है, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। म्यांमार सेना के अनुसार, इनकी हत्या रोहिंग्या इस्लामी आतंकी संगठन अराकन रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी (ए.आर.एस.ए.) ने की है। गत 25 अगस्त को भड़की हिंसा में लगभग 100 से अधिक हिन्दू लापता हो गए थे। एक आंकड़े के अनुसार, हिंसा में 30 हजार से अधिक हिन्दू -बौद्ध बेघर हुए हैं। भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दाखिल कर स्पष्ट किया है कि रोहिंग्या मुस्लिम देश की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए गंभीर खतरा हैं। क्या उपरोक्त रिपोर्ट की पृष्ठभूमि में सरकार की चिंता और देश के भीतर रह रहे हजारों रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस भेजने का उसका निर्णय ताॢकक नहीं है? 

देश-विदेश के कई स्वघोषित बुद्धिजीवी-उदारवादी भारत को उन यूरोपीय देशों (जर्मनी, बैल्जियम, फ्रांस, ब्रिटेन) से सीख लेने का परामर्श दे रहे हैं, जिन्होंने मानवता और उदारवाद के नाम पर गृहयुद्ध से ग्रसित सीरिया, ईराक, लीबिया, सोमालिया, सूडान आदि मुस्लिम देशों के लोगों को आसरा दिया। क्या यह सत्य नहीं कि विस्थापितों को शरण देने के बाद इन्हीं यूरोपीय देशों में  कानून-व्यवस्था का स्वरूप अकस्मात बिगड़ गया है और लूटपाट, छेडख़ानी, बलात्कार, हत्या के मामलों में बढ़ौतरी हुई है? हाल के कुछ वर्षों में यूरोपीय शहरों में जितने भी आतंकवादी हमले हुए हैं, उनके पीछे अधिकतर वही मुस्लिम शरणार्थी हैं, जिनके प्रति उदारवादियों ने मानवता दिखाई गई थी। 

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मदद मांग रहे रोहिंग्या  मुस्लिम स्वयं को म्यांमार में उत्पीड़ित और असुरक्षित बता रहे हैं। वास्तविकता तो यह है कि मुसलमानों का बड़ा वर्ग न तो म्यांमार, न ही भारत में और न  ही शेष विश्व के किसी भी कोने में सुरक्षित अनुभव करता है। वर्ष 1947 में हिन्दुओं से जिस ‘असुरक्षा की भावना’ के कारण भारत का रक्तरंजित विभाजन हुआ, उसी भावना के शिकार म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिम भी हैं। विश्व में जहां भी मुस्लिम बहुसंख्यक हैं या फिर अल्पसंख्यक-उनमें से अधिकतर गैर-मुस्लिमों के बराबरी के साथ बैठने में ‘असुरक्षा’ का अनुभव करते थे। अंततोगत्वा संबंधित क्षेत्र की स्थिति कालांतर में तनावपूर्ण और हिंसक हो जाती है। रखाइन में हिंसा इसका स्पष्ट उदाहरण है। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News