मोदी के नए भारत में सिखों के लिए न्याय का उदय
punjabkesari.in Saturday, May 27, 2023 - 05:57 AM (IST)

‘‘राजीव गांधी गुस्से में आ गए। उन्होंने मेरे साथ कभी अपना आपा नहीं खोया था लेकिन चूंकि मुझे चेतावनी दी गई थी, मैं भी तैयार था। उन्होंने (राजीव ने) कहा कि वह नहीं चाहते कि मैं इस मुद्दे को दोबारा उठाऊं। वह सज्जन कुमार पर मुकद्दमा चलाने को राजी नहीं हो सकते, जो एक निष्ठावान कांग्रेसी वफादार हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि उनके खिलाफ कुछ झूठे आरोप लगाए गए हैं।’’भारत के सर्वाधिक प्रतिष्ठित पुलिस अधिकारी जूलियो रिबेरो ने अपनी आत्मकथा में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ अपनी बैठक के बारे में यही कहा है; जहां उन्होंने दिल्ली सिख विरोधी दंगों के कथित अपराधियों पर मुकद्दमा चलाने के लिए उन पर दबाव बनाने का प्रयास किया।
अनुमान लगाया जा सकता है कि सज्जन कुमार सहित सिख विरोधी हिंसा करने वालों को सत्ता के शीर्ष गलियारों से किस तरह का समर्थन प्राप्त था। इन परिस्थितियों को देखते हुए यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि सिख विरोधी हिंसा के दोषी लम्बे 38 वर्षों तक न्याय से बचते रहे। यद्यपि उनके नाम विभिन्न आयोगों की रिपोर्टों में सामने आए, लेकिन रिपोर्टों तथा उसके बाद क्लीन चिटों का निर्दयी खेल असहाय सिख पीड़ितों के दुखों को और बढ़ाता रहा।
नवम्बर 1984 में दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों में नाम उभर कर सामने आने के बाद सज्जन कुमार तथा जगदीश टाइटलर कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए। यहां तक कि टाइटलर विभिन्न विभागों में मंत्री पदों पर रहे। ये सब तब हुआ जब सिख विरोधी हिंसा में बचे हुए लोग अपने जीवन की गाड़ी पुन: पटरी पर लाने तथा न्याय प्राप्त करने के लिए प्रयास कर रहे थे। अन्याय को लेकर सिखों की मानसिकता में निराशा तथा गुस्से का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि जब 2009 में सी.बी.आई. द्वारा जगदीश टाइटलर को क्लीन चिट दी गई, इस घटनाक्रम के खिलाफ नई दिल्ली में प्रदर्शन किए गए।
2014 में, जब भाजपा सरकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्ता में आई, तीन दशकों से अधिक समय से दर्दनाक प्रतीक्षा के बाद न्याय की उम्मीद जगी। जांचों ने रफ्तार पकड़ी, जिसके परिणामस्वरूप सज्जन कुमार को सजा सुनाई गई, वही कांग्रेस सांसद जिन पर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी मुकद्दमा भी नहीं चलाना चाहते थे। मई 2019 में होशियारपुर में बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने सिख विरोधी दंगों को एक ‘वीभत्स नरसंहार’ करार दिया। सिख संगठन बड़े लम्बे समय से नवम्बर 1984 की दिल्ली सिख विरोधी ङ्क्षहसा को नरसंहार के रूप में पहचान दिलाना चाहते थे, जिसे पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा महज ‘दंगे’ बताकर दर-किनार कर दिया जाता था।
भीड़ को सिखों को मारने के लिए उकसाने हेतु 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा सज्जन कुमार को सजा सुनाने तथा हाल ही में सी.बी.आई. द्वारा जगदीश टाइटलर के खिलाफ चार्जशीट पेश करना नवम्बर 1984 के पीड़ितों के लिए न्याय की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण पल है। इन घटनाक्रमों को कांग्रेस के सत्तासीन होने के समय के साथ तुलना करके देखा जाना चाहिए। इसे वर्तमान मोदी सरकार द्वारा दोषियों को न्याय के तले लाने तथा लम्बे समय से चले आ रहे मुद्दे को सुलझाने के तौर पर भी देखा जाना चाहिए जो प्रत्येक सिख की भावनात्मक तारों को छूता है।
दिलचस्प बात यह है कि जो आवाजें धार्मिक अल्पसंख्यकों के हितों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के विरुद्ध उड़ती थीं, हमेशा चुप हो जातीं जब भी मोदी सरकार सिखों के हितों की रक्षा करती। किसी भी संगठन ने अभी तक नवम्बर 1984 की सिख विरोधी ङ्क्षहसा के आरोपियों को सजा दिलाने में इसकी व्यावसायिक तथा कुशलता के लिए सरकार की कार्रवाई की प्रशंसा नहीं की। दुर्भाग्य से इस नैरेटिव को उन शक्तियों द्वारा हाईजैक कर लिया गया जो नफरत तथा नकारात्मकता पर फलती-फूलती है। ऐसा दिखाई देता है कि नरेंद्र मोदी को गालियां देने तथा अनुचित तरीके से आलोचना करना कुछ लोगों के लिए एक धंधा बन गया है। इस ‘उद्योग’ से उनकी रोजी-रोटी चल रही है।
ऐसा दिखाई देता है कि कुछ लोगों के इस पाखंडी व्यवहार से विचलित हुए बिना मोदी सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ के अपने रास्ते पर चलना जारी रखेगी। विश्व भर में सिखों को मोदी सरकार से बहुत आशाएं हैं कि इसने जो शुरू किया है उसे समाप्त करेगी। बिना और देरी के दोषियों को कानून की ताकत का सामना करना चाहिए। नवम्बर 1984 में बचे लोगों को इसके समाप्त होने की प्रतीक्षा है क्योंकि उनके प्रियजनों की दर्दनाक चीखें अभी भी उनके कानों में गूंजती हैं।-मनिन्द्र सिंह गिल