बोलने का अधिकार और सुनने का कर्तव्य

punjabkesari.in Sunday, Dec 19, 2021 - 04:41 AM (IST)

संसद के शीतकालीन सत्र की शुरूआत 29 नवम्बर 2021 को हुई। लोकसभा में प्रतिदिन विधेयकों, प्रस्तावों पर बहस हो रही है। कई विषयों पर चर्चा की गई है। मगर राज्यसभा में शोर-शराबा है। राज्यसभा पर जो मुद्दा काली घटाओं की तरह छाया है वह है सत्र के पहले दिन विभिन्न विपक्षी दलों से संबंधित 12 सदस्यों को 24 दिसम्बर तक चलने वाले सत्र के अंत तक निलंबित करने का। 

सम्पूर्ण विपक्ष क्षुब्ध है, कुछ कम, कुछ ज्यादा। सभी विपक्षी दलों ने मिलकर प्रदर्शन किया, मिलकर रोष मार्च निकाला तथा सभी ने मिलकर मीडिया को संबोधित किया। यद्यपि राज्यसभा के अंदर जहां कुछ ने किसी भी तरह से प्रतिभागिता करने से इंकार किया, कुछ ने प्रश्रकाल के दौरान प्रश्र पूछे या विशेष उल्लेख किए। लॉबीज तथा केंद्रीय कक्ष में एक-दूसरे के विपरीत विचार प्रकट किए जा रहे हैं। सदन के बाहर 12 निलंबित सदस्य महात्मा गांधी की प्रतिमा के चरणों में धरने पर बैठे हैं और नाराज हैं। यह एक अप्रत्याशित स्थिति है। 

उद्भव तथा हैरानी
इस विवाद का मूल 11 अगस्त 2021 को पूर्ववर्ती सत्र के आखिरी दिन अस्तित्व में आया। उस दिन के संसदीय बुलेटिन पार्ट-1 के अनुसार कुछ सदस्य ‘सदन के ‘वैल’ में प्रविष्ट हुए, तख्तियां दिखाईं नारेबाजी की तथा जानबूझ कर सदन की कार्रवाई को बाधित किया।’ बुलेटिन में 33 सदस्यों के नाम दिए गए। कोई कार्रवाई नहीं की गई और न ही इस संबंध में कोई संकेत दिया गया है। जो हुआ, यदि सच है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन अप्रत्याशित नहीं है। राज्यसभा में तत्कालीन विपक्ष के नेता (भाजपा) ने घोषणा की थी कि सदन की कार्रवाई को बाधित करना एक वैध संसदीय युक्ति है। पूर्ववर्ती सत्र के अंतिम दिन  11 अगस्त को शाम 7.46 बजे हुई उस घटना के बाद सदन को अनिश्चितकाल के लिए बिना कोई कार्रवाई के स्थगित कर दिया गया। 

जो 29 नवम्बर को शुरू हुआ वह एक नया सत्र था। कार्रवाई सुबह 11 बजे शुरू हुई। श्रद्धांजलियां भेंट करने के बाद सम्मान के तौर पर सदन को एक घंटे के लिए स्थगित कर दिया गया जो दोबारा दोपहर बाद 12.20 बजे बैठा तथा सामान्य कामकाज शुरू हुआ। दोपहर के भोजन के ब्रेक के बाद 2 बजे कृषि कानून वापस लेने संबंधी विधेयक का मामला उठाया गया तथा बिना किसी चर्चा के दोपहर बाद 2.06 बजे पारित कर दिया गया (इस संबंधी मैं अपने विचारों को आरक्षित रखूूंगा)। सदन को स्थगित कर दिया गया तथा पुन: दोपहर बाद 3.08 बजे फिर बैठा। अप्रत्याशित तौर पर एक मंत्री ने सत्र के बाकी बचे समय के लिए 12 सदस्यों को निलंबित करने का प्रस्ताव आगे बढ़ाया जिसे स्वीकार कर लिया गया, सदस्यों ने विरोध किया लेकिन सदन को बाद दोपहर 3.21 बजे स्थगित कर दिया गया (29 नवम्बर के संसदीय बुलेटिन पार्ट-1 के अनुसार)। 

विवादास्पद नियम 
अगले दिन निलंबित सदस्यों ने धरना शुरू कर दिया। यह 3 सप्ताहों से जारी है। सरकार झुकने को तैयार नहीं, अध्यक्ष नहीं चाहते कि सरकार डगमगाए ताकि फायदा हो। निलंबन के लिए जिस नियम का सहारा लिया गया वह है नियम 256, जो स्पष्ट है। राज्यसभा का अक्षरश: रिकार्ड नहीं दिखाता कि 11 अगस्त को किसी भी सदस्य का नाम सूचीबद्ध किया हो, ऐसा केवल तब हुआ जब 29 नवम्बर को बाद दोपहर 3.08 बजे राज्यसभा पुन: बैठी तो संसदीय कार्य मंत्री ने 12 सदस्यों के निलंबन का प्रस्ताव पेश किया और बुलेटिन में यह बताया  है कि प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। प्रस्ताव को सदन में रखने अथवा मत विभाजन का कोई भी प्रयास नहीं किया गया। विपक्षी सदस्य एकमत हैं कि इस पर मतदान नहीं करवाया गया। ट्रैजरी बैंचों ने उस स्थिति का खंडन किया। 

सदन में कई प्रश्र उठाए जाने वाले थे। क्या सदस्यों को पूर्ववर्ती सत्र में उनके कथित खराब व्यवहार के लिए एक नए सत्र में निलंबित किया जा सकता है? क्या सदस्यों को निलंबित किया जा सकता है जब 11 अगस्त को किसी को भी नामित नहीं किया गया था? क्या सदस्यों को एक ऐसे प्रस्ताव पर निलंबित किया जा सकता था जिस पर सदन में मतदान नहीं हुआ? जहां खराब व्यवहार के लिए 33 सदस्यों पर आरोप लगाया गया तो क्यों केवल 12 को निलंबित किया गया? एलामारान करीम, जिनका नाम 33 सदस्यों की सूची में नहीं था, को निलंबित क्यों किया गया? यह प्रश्र सदन में नहीं उठाने दिए गए और इसलिए इन्हें जनता के सामने उठाने के अलावा अन्य कोई विकल्प नहीं बचा था। 

लोकतंत्र का हनन
16 दिसम्बर को विपक्ष ने नियम 256 (2), जो सदस्यों के निलंबन को खारिज करने के लिए ‘किसी भी समय’ प्रस्ताव पेश करने की इजाजत देता है, के अंतर्गत एक प्रस्ताव पेश किया गया। प्रिजाइडिंग ऑफिसर ने तकनीकी तथा संदिग्ध आधार पर प्रस्ताव को खारिज कर दिया। यदि जिन लोगों के पास बोलने का अधिकार है (विपक्ष) को बोलने नहीं दिया जाता तथा जिनका कत्र्तव्य सुनना है (सरकार), अपने कान बंद कर लें तो लोकतंत्र का हनन होता है।-पी. चिदम्बरम


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