खालिस्तान के खतरे के पुन: उत्थान को दबा देना चाहिए

punjabkesari.in Tuesday, Mar 14, 2023 - 06:18 AM (IST)

पंजाब में भले ही खालिस्तानी अलगाववाद की हार हुई हो लेकिन वह अपने पीछे ङ्क्षहसक, खून से लथपथ और यादों का दर्दनाक निशान छोड़ गया है। विनाशकारी आप्रेशन ब्ल्यू स्टार, 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या और बाद में पाकिस्तान समॢथत विद्रोह जिस पर के.पी.एस. गिल और अन्यों ने 1980 के दशक में नियंत्रण पाया उसके घाव इतने ताजा हैं कि ये फिर से खुल जाएंगे।

ठीक ऐसा ही होता दिख रहा है।  ‘वारिस पंजाब दे’ का नया अभिषिक्त  प्रमुख अमृत पाल सिंह, जो पहले अज्ञात होकर दुबई में रहने वाला क्लीनशेव युवक था, अचानक ही दूसरे जरनैल सिंह भिंडरांवाला के रूप में सूर्खियों में आ गया। पुलिस के साथ हाल ही की झड़पें, अजनाला पुलिस थाने पर धावा बोलना और भारत के शीर्ष सत्ताधारी दल के नेताओं को खुली धमकियां देना खालिस्तानी समर्थक बयानबाजी के बढ़ते जवार के ताजा उदाहरण हैं।

अपने एक प्रसारण में अमृत पाल सिंह ने चेतावनी दी, ‘‘अगर सरकार हमारी मांगों को नहीं सुनती है और सिखों को जेल से रिहा नहीं करती है तो हम अपनी कार्रवाई को बदल देंगे।’’ अधिक हिंसा का पालन करना निश्चित है। अब तक राज्य और केंद्र दोनों ही सरकारों ने इस घातक जवार को रोकने के लिए कुछ खास नहीं किया है। ताजा उठापटक इस व्यापक धारणा की पृष्ठभूमि में है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी की चुनावी सफलता के पीछे खालिस्तानी लॉबी का हाथ है जो दिल्ली में साल भर चलने वाले किसानों के विरोध के हवा के झोंके पर सवार होकर आई थी।

साथ में कनाडा और आस्ट्रेलिया में खालिस्तानी अपने भारत विरोधी आंदोलन को तेज कर रहे हैं। यहां तक कि आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने भारत में एक अत्यधिक प्रचारित राजकीय यात्रा का समापन किया जिस दौरान आस्ट्रेलिया में हिन्दू मंदिरों पर बढ़ते खालिस्तानी हमलों पर ङ्क्षचता जतार्ई। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यू.पी.ए.) सरकार के दौरान भारत ने कनाडा में आधार खो दिया। वहां के ओंटारियो विधायिका ने 1984 के सिख विरोधी दंगों को ‘नरसंहार’ कहते हुए एक भारत विरोधी प्रस्ताव भी पारित किया।

न तो हमारा उच्चायोग जिसने वर्षों से लिखा देखा होगा और न ही इतनी बड़ी संख्या में भारतीय समुदाय खालिस्तानियों का मुकाबला करने के लिए कुछ कर सका। उत्तराद्र्ध में संयोग से कनाडा में सिख वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा है जो सत्ता में उदारवादी विरोध नहीं करना चाहता है। आस्ट्रेलिया में इसी तरह के भारत विरोधी आतंकवाद का बढऩा एक गंभीर ङ्क्षचता का विषय है लेकिन इस बार जो बात अलग है वह यह है कि जब आस्ट्रेलिया की बात आती है तब सरकार और स्थानीय समुदाय दोनों ही चीजों को हल्के में नहीं लेते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने समकक्ष अलबानिया के साथ ङ्क्षहदू मंदिरों के हमलों पर चिंता व्यक्त की है। फ्लैश प्वाइंट विक्टोरिया ऐसा राज्य है जिसमें मेलबोर्न सबसे बड़ा शहर है। खालिस्तानियों के नेतृत्व वाली ‘सिख फॉर जस्टिस’ खालिस्तान का एक स्वतंत्र राज्य बनाने के लिए जनमत संग्रह आयोजित कर रही है। परिचालित खालिस्तानी के नक्शे में उत्तर भारत का अधिकांश हिस्सा शामिल है जिसमें पंजाब से लेकर यू.पी., राजस्थान, कश्मीर, हरियाणा और दिल्ली शामिल हैं। इसकी अनुपस्थिति में प्रसिद्ध पाकिस्तान के क्षेत्र हैं जिनमें लाहौर जोकि महाराजा रणजीत सिंह की तत्कालीन राजधानी थी और श्री गुरु नानक देव जी की जन्मस्थली ननकाना साहिब शामिल हैं।

यह शरारत करने में ‘पाकिस्तानी हाथ’ की ओर इशारा जाता है। भारत के कूटनीतिक और रणनीतिक विकल्प असीमित नहीं हैं। खासकर जब लोकतांत्रिक और खुले समाजों में अपने हितों को आगे बढ़ाया जा रहा है। बोलने की आजादी और अन्य कानूनी सुरक्षा की आड़ में भारत विरोधी और असामाजिक तत्व अक्सर पनपते हैं। अतीत में खालिस्तानी आंदोलन के शिखर के दौरान यह अनुभव रहा है। ऐसा  लग रहा है कि जैसे इतिहास अपने आपको एक बार फिर दोहरा रहा है।

आस्ट्रेलिया में  हिन्दू मंदिरों पर हमले, तोड़-फोड़ और हिन्दुओं और सिखों के बीच दुश्मनी पैदा करने के एक समयबद्ध प्रयास हैं। खालिस्तानी अशांति के दौरान कई हिन्दुओं को बसों से बाहर खींच लिया गया और गोलियों से भून दिया गया। अब हिन्दुओं के मंदिरों पर हमले हो रहे हैं। व्यापक सांस्कृतिक और सभ्यतागत दृश्य में धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दोनों तरह का सिख अलगाववाद पहले से ही बहुत दूर चला गया है जिसे आसानी से सुधारा जा सकता है।

जरूरत इस बात की है कि भारत और विदेशों में सिखों को कट्टरपंथ से मुक्त किया जाए। हालांकि इसके लिए सभी संबंधित दलों को राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए राजनीति को अलग रखना होगा। दुर्भाग्य से ऐसा होने की संभावना नहीं है। यह देखते हुए कि भारतीय राजनीति आज युद्ध की स्थिति के समान है। सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्ष के बीच समझौता न करने की दुश्मनी है।

भारत के शत्रुओं को शायद इस बात का एहसास हो कि भारत एक शक्तिशाली देश है जिसे पराजित नहीं किया जा सकता, आसानी से कम आंकने की तो बात ही छोड़ दें। जब तक कि यह निष्क्रिय और आंतरिक रूप से विभाजित होने का विकल्प नहीं चुनता जैसा कि पहले का मामला था।

अमृतपाल और उसके सहयोगियों को धार्मिक बयानबाजी का इस्तेमाल कर भावनाओं को भड़काने के लिए समानांतर प्रशासन चलाने की इजाजत नहीं दी जा सकती। भारत को अपने नियंत्रण में सभी प्रशासनिक, कूटनीतिक, आॢथक, रणनीतिक और सैन्य साधनों का उपयोग करके शत्रुतापूर्ण खालिस्तानी गुर्गों को बंद करना चाहिए। हमें एक बार फिर से देश और विदेश में भारत के आकर्षण को बढ़ाना होगा। -मकरंद आर. परांजपे


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